उस मामले में अनुसंधानकर्ता द्वारा 10 अक्तूबर 1998 को शहाबुद्दीन, अजय तिवारी, मनोज सिंह के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया था. इस मामले में रेल थानाध्यक्ष पशुपति सिंह, आरक्षी निरीक्षक चंद्रदेव कुमार, रामराज मिश्र, भूदेव तिवारी, रामजनम शर्मा, नंद किशोर सिंह, विजय कुमार, नलेंद्र सिंह, देवेंद्र सिंह, घटना के अनुसंधानकर्ता एएन हैदर व आरक्षी निरीक्षक वीपी सिंह की गवाही होनी थी. न्यायालय व अभियोजन द्वारा एसपी के माध्यम से समन व डीओ लेटर भेजे जाने के बाद भी जिला प्रशासन द्वारा इन साक्षियों को साक्ष्य के लिए प्रस्तुत नहीं किया गया. इसलिए कोर्ट ने 20 वर्ष से चल रहे मामले में साक्ष्य बंद कर दिया.दूसरे मामले में तत्कालीन मंडल काराधीक्षक ललन सिन्हा के साथ कारा के अंदर शहाबुद्दीन द्वारा जान मारने की धमकी व गाली-गलौज करने के मामले में अभियोजन साक्षी नहीं आने के कारण कोर्ट ने साक्ष्य बंद कर दिया है. यह मामला 17 जून 2006 का है.
11 साल से चल रहे मुकदमे में अभियोजन द्वारा साक्ष्य प्रस्तुत नहीं करने पर कोर्ट ने साक्ष्य बंद कर दिया. तीसरा मामला आंदर थाने के बेलवासा गांव के सुभाष यादव का है. सुभाष ने अपनी प्राथमिकी में कहा है कि चार जुलाई 1999 को माले विधायक अमरनाथ यादव के नेतृत्व में 25 समर्थकों के साथ प्रखंड कार्यालय पर धरना कर रहा था कि शहाबुद्दीन ने अपने नौ समर्थकों के साथ हथियार के बल पर चारों ओर से घेर लिया.
मामले में थानाध्यक्ष ने इनलोगों पर सभी अनुज्ञप्ति रद्द करने का आवेदन जिला पदाधिकारी को दे दिया. इस मामले में तत्कालीन पदाधिकारी सोमेश बहादुर माथुर, सअनि रवींद्र खान, सअनि रमेशचंद्र झा, थानाध्यक्ष रणविजय सिंह न्यायालय में साक्ष्य देने के लिए उपस्थित नहीं हुए. इस कारण कोर्ट ने साक्ष्य बंद कर दिया. कोर्ट द्वारा बिना सर्विस रिपोर्ट आये साक्ष्य बंद कर बयान बनवा दिया गया. उच्च न्यायालय का निर्देश है कि पुराने मामलों का त्वरित निष्पादन किया जाये. यह भी निर्देश है कि बिना सर्विस रिपोर्ट आये कोर्ट को साक्ष्य बंद नहीं करना है.
अन्य चार मामलों में आंशिक सुनवाई की गयी. न्यायालय में अभियोजन की ओर से विशेष अभियोजक जयप्रकाश सिंह, विशेष सहायक अभियोजक रघुवर सिंह व रामराज सिंह उपस्थित थे. बचाव पक्ष के अधिवक्ता अभय कुमार राजन, मोबिन, उत्तम मियां भी उपस्थित थे.