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प्रखंडों में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया पारंपरिक पर्व कोजागरा

त्रेतायुग से है कोजागरा की परंपरा रंगोलियों से सजे आंगन में जीजा-साला के बीच कौड़ी का खेल खास आकर्षण सीतामढ़ी/बोखड़ा : सदियों से चली आ रही मिथिला का अद्भुत त्योहार कोजागरा शनिवार को जिले भर में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया. प्रतिवर्ष आश्विन पूर्णिमा की शाम मनाया जाने वाला यह त्योहार संपूर्ण मिथिला में ब्राह्मण […]

त्रेतायुग से है कोजागरा की परंपरा

रंगोलियों से सजे आंगन में जीजा-साला के बीच कौड़ी का खेल खास आकर्षण
सीतामढ़ी/बोखड़ा : सदियों से चली आ रही मिथिला का अद्भुत त्योहार कोजागरा शनिवार को जिले भर में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया. प्रतिवर्ष आश्विन पूर्णिमा की शाम मनाया जाने वाला यह त्योहार संपूर्ण मिथिला में ब्राह्मण व कायस्थ समाज के नवविवाहित दूल्हे के परिवारों में मनाया जाता है.
इस त्योहार का लोगों को खास इंतजार रहता है. नवविवाहित दूल्हे के परिवार में कई दिन पूर्व से ही कोजागरा को लेकर काफी उत्साह रहता है. इस अवसर पर परिवार के सभी सगे-संबंधियों को आमंत्रित कर बुलाया जाता है. घर आये मेहमानों व इस खुशी के मौके पर खुशियां बांटने आये समाज के लोगों के लिए सामर्थवान परिवारों द्वारा विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन की भी प्रथा चली आ रही है.
कन्या पक्ष का मजाक उड़ाने की है परंपरा: बताया जाता है
कि कोजागरा का यह त्योहार त्रेतायुग से ही मनाया जाता है. भगवान राम की सीता संग विवाह हुआ और अयोध्या के राजपुरोहित की सलाह पर राजा दशरथ द्वारा आश्विन पूर्णिमा को कोजागरा का उत्सव मनाया गया. इस पर्व में कन्या पक्ष की ओर से विभिन्न व्यंजनों के साथ-साथ पान, मखान, केला, मिठाइयां व वर के लिए कपड़े व अन्य उपयोगी सामग्रियों से भरा भार भेजा जाता है. भार के साथ कन्या के भाई का अनिवार्य रूप से जाने का रिवाज है,
जिसके साथ मनमोहक अहिपन व रंगोलियों से सजे आंगन में समाज के दर्जनों महिला व पुरुषों की उपस्थिति में चांदी की थाली में चांदी की कौड़ी से जीजा-साले के बीच कौड़ी खेल का मुकाबला होता है. खेल में साले को हर हाल में हराने की पूर्व से ही तैयारी की जाती है. कन्या का भाई जैसे ही कौड़ी का खेल हारता है, उसका व उसके गांव का मजाक उड़ाया जाता है. गालियां भी दी जाती है.
लेकिन यह त्योहार अन्य त्योहारों से अलग इसलिए है कि वर पक्ष की ओर से मिलने वाली गालियां भी खूब भाता है. इस दिन सिर्फ और सिर्फ हंसी-मजाक व खुशियां मनाने का दिन होता है. जानकारों की मानें तो सुखमय वैवाहिक जीवन के लिए श्रेष्ठ महिलाओं द्वारा वर दूभ, धान व हल्दी से चुमावन व श्रेष्ठजनों द्वारा वेदमंत्रोच्चार के साथ दुर्वाक्षत दिया जाता है.

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