सीतामढ़ी : क्या बोलू. पूर्व मंत्री शाहिद अली खान से रिश्ता तो पारिवारिक व पुश्तैनी था. छोटे भाई के रूप में शाहिद से हमेशा सम्मान मिला है. बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी रहे हैं.
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1990 में शाहिद बने सबसे कम उम्र के विधायक
सीतामढ़ी : क्या बोलू. पूर्व मंत्री शाहिद अली खान से रिश्ता तो पारिवारिक व पुश्तैनी था. छोटे भाई के रूप में शाहिद से हमेशा सम्मान मिला है. बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी रहे हैं. कम उम्र से ही एक परिपक्व नेता के रूप में उभरते देखा. इतने कम उम्र में उनका दुनिया से […]
कम उम्र से ही एक परिपक्व नेता के रूप में उभरते देखा. इतने कम उम्र में उनका दुनिया से जाना व्यक्तिगत क्षति है. बिहार के राजनीति क्षितिज से एक हस्ती का पटाक्षेप हो गया. सन 1990 में पहली दफा बिहार विधानसभा का चुनाव जीत कर सबसे कम उम्र का विधायक बनने का गौरव शाहिद को प्राप्त हुआ. उस वक्त उन्होंने शाहिद को कहा भी था कि वे राजनीतिक जीवन में बड़ी-बड़ी उपलब्धियों को हासिल करेंगे. ऐसा हुआ भी. चार बार विधायक बनने के दौरान दो बार बिहार सरकार के मंत्री रहे. अफसोस, किसी ने सोचा भी नहीं था कि वे अचानक दुनिया से चले जायेंगे. उनके मौत की खबर सुन कर हर कोई सन्न व दु:खी है.
सहज विश्वास करना मुश्किल साबित हो रहा है. बिहार की राजनीति व सामाजिक माहौल में शाहिद ने अपनी पूरी जिंदगी एक समरसता का माहौल कायम किया और सफलता भी मिली. धार्मिक व जातीय राजनीति से ऊपर उठ कर उन्होंने इंसानियत का एक मापदंड स्थापित किया. सबों को शायद यह अच्छा न लगे, पर एक बात से इसको मापा जा सकता है कि विधायक व मंत्री बनने के बाद आम नेताओं की हैसियत कई गुणा बढ़ जाती है, परंतु एक हैसियत लेकर पैदा लेने वाले शाहिद के मन में कभी अहंकार पैदा नहीं हुआ. पूरे राजनीतिक जीवन में उन्होंने अपने आर्थिक हैसियत को बढ़ाया हो, ऐसा कोई प्रकट उदाहरण नहीं है. सबसे तकलीफदेह स्थिति यह है कि उनकी मां को अपने पुत्र का शव देखने को मिल रहा है. भगवान शाहिद की मां को दु:ख सहने की क्षमता और दिवंगत आत्मा को शांति दे.
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