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सीतामढ़ी में 300 लोगों की मौत की गुत्थी िवसरा जांच में उलझी

सीतामढ़ी : विसरा जांच को लेकर पुलिस की उदासीनता के कारण 300 से अधिक लोगों की मौत के कारण को लेकर सस्पेंस बरकरार है. जांच की जिम्मेदारी लेने के बाद अनुसंधानकर्ता की लापरवाह कार्यशैली के कारण परिजनों को भी मौत का कारण पता नहीं चल पाया है. वह अपने रिश्तेदार की मौत का कारण जानने […]

सीतामढ़ी : विसरा जांच को लेकर पुलिस की उदासीनता के कारण 300 से अधिक लोगों की मौत के कारण को लेकर सस्पेंस बरकरार है. जांच की जिम्मेदारी लेने के बाद अनुसंधानकर्ता की लापरवाह कार्यशैली के कारण परिजनों को भी मौत का कारण पता नहीं चल पाया है. वह अपने रिश्तेदार की मौत का कारण जानने को बेचैन हैं.

क्या है बेसरा जांचचिकित्सकों व पुलिस से मिली जानकारी के अनुसार किसी तरह की दुर्घटना के बाद पोस्टमार्टम रिपोर्ट से मौत के कारणों का खुलासा नहीं होने पर विसरा जांच का सहारा लिया जाता है. दो स्थितियों में विसरा जांच का सहारा लिया जाता है. पहला जहर खाने की स्थिति में व दूसरा मौत के कारणों की स्थिति स्पष्ट नहीं होने पर. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में चिकित्सक खुद इसकी अनुशंसा करते हैं. मृतक के हृदय, फेफड़ा,अमाशय, पेट, स्पलीन व किडनी के अवशेष निकालते हैं.

जिसे अस्पताल प्रबंधन एक डब्बे में रख देता है. उसके बाद कायदे से अनुसंधानकर्ता को जांच के लिए फोरेंसिक लैब भेजता है. जहां जांच में मौत की वजहों का खुलासा होता है. चार साल से फेंका है 300 से अधिक बेसराप्रभात पड़ताल में यह बात सामने आयी है कि 2012 से अब तक तीन सौ से अधिक विसरा सदर अस्पताल में रखा हुआ है. रखा कम, फेंका ज्यादा महसूस होता है.

यह तस्वीर से स्पष्ट होता है. ऐसी स्थिति में बेसरा के खराब होने की आशंका भी बनी रहती है. इसके कारण विसरा जांच में भी मौत की वजह के खुलासा होने की संभावना समाप्त हो जाती है. सदर अस्पताल के चिकित्सक डॉ केपी देव बताते हैं कि विसरा को लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए कोई विशेष केमिकल विभाग की ओर से उपलब्ध नहीं कराया गया है. इस कारण सोडियम क्लोराइड को रख कर विसरा को सुरक्षित रखा जाता है.

खुलासा
विसरा सुरक्षित रखने के लिए विशेष केमिकल का अभाव
सोडियम क्लोराइड रख कर विसरा को सुरक्षित रखने का प्रयास
विसरा खराब होने पर फोरेंसिक लैब में भी जांच की संभावना समाप्त
सीतामढ़ी सर्किल का 47 बेसरा जांच लंबित
केवल सीतामढ़ी सर्किल में 47 लोगों की मौत की गुत्थी बेसरा जांच में उलझी हुई है. इसमें अचानक मृत्यु, हार्ट अटैक, पानी में डूबने, फांसी लगाने, खाना बनाने के क्रम में आग लगने, जहरीला पदार्थ खाने, सीढ़ी से गिरने, बिजली के करंट, छत से गिरने, ट्रेन से धक्का लगने, नशे के कारण व सर्पदंश का मामला है. प्रभात पड़ताल में यह सामने आया है कि सभी मामले प्रभार के आदान-प्रदान, पोस्टमार्टम रिपोर्ट प्राप्त करने, बेसरा रिपोर्ट प्राप्त करने व जांच के लिए लंबित हैं.
क्या कहते हैं लोक अभियोजकअरूण कुमार सिंह कहते हैं कि अनुसंधान का जो अभिप्राय भारतीय कानून में है, उसका अर्थ है मृत्यु के कारणों का सही-सही तर्कसंगत अंतिम लक्ष्य तक पहुंचना. बेसरा जांच अनुसंधान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. उसमें किसी तरह की देरी, जांच नहीं किया जाना व अविलंब वांछित कानूनी प्रक्रिया का नहीं अपनाया जाना गंभीर बात है. यह केवल अनुसंधान को प्रभावित नहीं करता, बल्कि दोनों ही आहत पक्षों को सही तथ्य का पता नहीं चलने देता.
इस कारण अभियुक्त को न्यायिक प्रक्रिया का लाभ मिल जाता है. अभियोजन वाद सही लक्ष्य पर नहीं पहुंच पाता है. बेसरा का इस तरह रहना निश्चित रूप से न्याय देने की प्रक्रिया में बाधा पहुंचाता है.क्या कहते हैं सदर डीएसपीडॉ कुमार वीर धीरेंद्र कहते हैं कि अनुसंधानकर्ता को समय पर बेसरा जांच के लिए भेजना चाहिए. इतनी बड़ी संख्या में बेसरा का रहना गंभीर बात है. वह मामले की जांच कर आवश्यक कार्रवाई करेंगे.

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