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शहर में जलनिकासी के सभी द्वार बंद

उदासीनता. खनुआ नाले की सफाई को लेकर नहीं शुरू हुई पहल छपरा(नगर) : गत वर्ष सारण जिला बाढ़ की विभीषिका झेल चुका है. वर्ष 2016 में आये बाढ़ ने दियारा क्षेत्रों के साथ-साथ शहरी क्षेत्र को भी प्रभावित किया था. नदी तट से नजदीक के शहरी इलाकों में कई दिनों तक बाढ़ का पानी जमा […]

उदासीनता. खनुआ नाले की सफाई को लेकर नहीं शुरू हुई पहल
छपरा(नगर) : गत वर्ष सारण जिला बाढ़ की विभीषिका झेल चुका है. वर्ष 2016 में आये बाढ़ ने दियारा क्षेत्रों के साथ-साथ शहरी क्षेत्र को भी प्रभावित किया था. नदी तट से नजदीक के शहरी इलाकों में कई दिनों तक बाढ़ का पानी जमा हुआ था. अगर इस बार फिर बाढ़ आ गयी या भीषण जलवृष्टि हुई तो पूरा शहर जलमग्न हो जायेगा. शहरी क्षेत्र से जलनिकासी के सभी रास्ते बंद हो चुके हैं. राजा टोडरमल द्वारा बनवाया गया ऐतिहासिक खनुआ नाला भी 90 प्रतिशत अतिक्रमण का शिकार हो चुका है. शहर में जमा हो रहे पानी के निकासी के लिए बनाया गये नाले के सभी दरवाजे बंद हैं .
संकट में है नाले का अस्तित्व : वर्षों पुराना खनुआ नाला पहले नहर की श्रेणी में आता था.चुकी छपरा शहर नदी के किनारे बसा है जिस कारण बाढ़ के समय में पानी के दबाव को कम करने के लिए इसको खोल दिया जाता था. कालांतर में इसने नाले का रूप ले लिया और शहर के छोटे-छोटे नालों का पानी इसमें ही जमा होने लगा. लाखों की आबादी वाले इस शहर में जलनिकासी का सबसे प्रमुख नाला है. शहर के निचले इलाके से होकर यह नाला दो भागों में बंट कर जाता है और नाले का पानी शहरी क्षेत्र से बाहर चला जाता है.
समय के साथ नाले का कई जगह से अतिक्रमण होना शुरू हुआ. शहर का विस्तार हुआ तो खनुआ नाला पर ही दुकानें बन गयी. वहीं कई जगहों पर तो नाले की जमीन पर ही बड़ी-बड़ी बिल्डिंगे खड़ी कर दी गयी हैं. ऐसी स्थिति में शहर में जमा हो रहे पानी के निकासी के अधिकतर रास्ते बंद हो चुके हैं और कई जगहों पर वर्षों से उड़ाही नही होने के कारण यह नाला पूरी तरह सूख कर बराबर हो चुका है. ऐसे में हल्की बारिश में ही शहर में जलजमाव की स्थित उत्पन्न हो जाती है और अगर फिर से बाढ़ आया या भीषण बारिश हुई तो इस शहर को जलमग्न होने से नहीं बचाया जा सकता.
एनजीटी ने भी जाहिर की है चिंता : खनुआ नाला के नियमित साफ-सफाई नहीं होने से शहर में प्रदूषण का ग्राफ भी काफी तेजी से बढ़ा है.
नाले की उड़ाही नहीं होने से शुद्ध पेयजल का स्तर भी काफी नीचे चला गया है. ऐसे में नाले के आसपास रहने वाले तकरीबन 50 हजार लोग प्रतिदिन गंदा पानी पीने को मजबूर हैं. इस समस्या को लेकर वेटरन फोरम्स द्वारा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में भी अपील दायर की गयी. जिसके बाद नाले की उड़ाही और इसके मेंटेनेंस को लेकर ग्रीन ट्रिब्यूनल ने अपनी चिंता जाहिर करते हुए कई महत्वपूर्ण निर्देश जारी किये. हालांकि नाला उड़ाही की समस्या वृहत पैमाने पर है और कई जगहों से इसे अतिक्रमण मुक्त कराना भी चुनौती भरा काम है. जिसे लेकर सामाजिक संस्थाओं के साथ-साथ आम जनता को भी आगे आने की जरूरत है.अगर समय रहते शहरवासियों ने खनुआ नाले के मेंटेनेंस को लेकर आवाज नही उठाई तो शहर के लिए एक बड़ी समस्या खड़ी हो सकती है.

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