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एपीएचसी होने के बावजूद इलाज नहीं

डोरीगंज (छपरा) : ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए सरकार की चिकित्सा व्यवस्था मजाक बनकर रह गयी है. जिसकी सबसे बड़ी कीमत सदर प्रखंड के दियारा क्षेत्रों में बसे रायपुर बिंदगावां, कोटवापट्टी रामपुर व बड़हारा महाजी आदि पंचायतों के लोगों को चुकानी पड़ रही है. जहां आम नागरिकों के लिए कई मूलभूत सुविधाओं […]

डोरीगंज (छपरा) : ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए सरकार की चिकित्सा व्यवस्था मजाक बनकर रह गयी है. जिसकी सबसे बड़ी कीमत सदर प्रखंड के दियारा क्षेत्रों में बसे रायपुर बिंदगावां, कोटवापट्टी रामपुर व बड़हारा महाजी आदि पंचायतों के लोगों को चुकानी पड़ रही है. जहां आम नागरिकों के लिए कई मूलभूत सुविधाओं का अभाव आज भी बरकरार है.
पक्की सड़कें व बिजली से महरूम आये दिन लोग इन समस्याओं का सामना तो करते ही हैं किन्तु, ऐसे इलाकों में एपीएचसी के निर्माण के बावजूद भी डॉक्टर व समुचित चिकित्सा प्रबंध का न होना इन इलाकों के लोगों के लिए सबसे गंभीर समस्या है. जहां इलाके के इन तीन पंचायतों के कुल आठ गांवों व टोलों में बसे लगभग साढ़े बारह हजार आबादी की जिंदगी स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर बस राम भरोसे ही चलती है. उल्लेखनीय है कि सदर प्रखंड के कोटवापट्टी रामपुर पंचायत के कुतूबपुर गांव जहां लोक संस्कृति के संवाहक व भोजपुरी के शेक्सपियर माने जाने वाले भिखारी ठाकुर जैसे महान लोक कलाकार का जन्म हुआ. उस गांव में लोगों की स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए निर्मित अतिरिक्त उप स्वास्थ्य केंद्र में अकसर ताला ही लटका रहता है. स्थानीय लोगों के मुताबिक दो साल पूर्व इस अस्पताल का निर्माण हुआ, जिसे लेकर लोगों की बड़ी उम्मीदें जगी थी.
लोगों का मानना था कि अब अपने मरीजों के साथ नाव से गंगा नदी पार कर छपरा और आरा नहीं भटकना पड़ेगा. किन्तु, ग्रामीणों की यह उम्मीद उक्त केंद्र के निर्माण के महज कुछ ही दिनों बाद धरासायी हो गया. निर्माण के बाद भी ग्रामीणों को इसका कोई लाभ नहीं मिला. कुतूबपुर निवासी भूषण राय की माने, तो सप्ताह में एक बार कोई कर्मी या डॉक्टर आते है तभी इसका ताला खुलता है बाकी पांच दिन इसमें ताला ही लटका रहता है. हॉस्पिटल में कभी किसी को आया देख, जब लोग उपचार व दवाइयों की मांग करते हैं तो बताया जाता है कि जिला से अभी दवाइयां उपलब्ध नहीं करायी गयी है तो दवा कहां से वितरण किया जाये. जिसके जवाब में ग्रामीणों को कोई उपाय नहीं सूझता. लोगों को कहना है कि इलाज के लिए आरा व छपरा जाना पड़ता है.
बरसात के समय आरा का रूट बंद हो जाता है, तब छपरा ही एक मात्र विकल्प होता है. जिस दौरान लोगों को भारी परेशानी उठानी पड़ती है. बावजूद इस पर प्रशासन का रवैया उदासीन है.
क्या कहते हैं मुखिया
लोगों को समुचित चिकित्सा उपलब्ध कराये जाने के नाम पर इस भवन का इस्तेमाल सिर्फ पोलियो अभियान तक ही सीमित होकर रह गया है. लोग इससे व्यथित व लाचार है उनके मुताबिक हालात तब और गंभीर हो जाता है, जब रात्रि में किसी महिला का प्रसव का मामला हो या किसी की तबीयत एकाएक बिगड़ जाती है. उस वक्त छपरा के लिए नदी पार कराने के नाम पर मरीज से नाविक भी मूंहमांगी रकम वसूल करते हैं.
सुनील सिंह, मुखिया
क्या कहते हैं अधिकारी
लोगों को समुचित चिकित्सा का लाभ मिल रहा है. इसके लिए दो डॉक्टर भी नियुक्त हैं. जिनके द्वारा नियमित केंद्र का संचालन किया जाता है. वैसे अगर ग्रामीणों की शिकायत है, तो जांच करायी जायेगी.
डॉ सूर्यदेव चौधरी, प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी

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