दुखद. रविवार को अगलगी में 891 परिवारों का उजड़ गया था आशियाना
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खानाबदोश हो गये 5,000 परिवार
दुखद. रविवार को अगलगी में 891 परिवारों का उजड़ गया था आशियाना छपरा (सारण) : …और आग की तपिश में पीड़ित के आंख से आंसू भी सूख गये हैं. गड़खा प्रखंड के भगवानी बसंत, झौंवा बसंत तथा बनवारी बसंत के अग्निपीड़ितों की हालत यह है कि वे रो भी नहीं पा रहे हैं. सगे-संबंधियों के […]
छपरा (सारण) : …और आग की तपिश में पीड़ित के आंख से आंसू भी सूख गये हैं. गड़खा प्रखंड के भगवानी बसंत, झौंवा बसंत तथा बनवारी बसंत के अग्निपीड़ितों की हालत यह है कि वे रो भी नहीं पा रहे हैं. सगे-संबंधियों के आने पर घरों की महिलाएं चिल्ला रही हैं. लेकिन, उनकी अांखों से आंसू नहीं निकल रहा है. रविवार को हुई भीषण अग्निकांड में 891 परिवारों का सब कुछ जल कर खाक हो गया. चार लोग जिंदा भी जल गये. आलम यह है कि इस घटना की खबर पाकर आनेवाले सगे-संबंधी यह समझ नहीं पा रहे हैं कि इन्हें किस घर में जाना है. इन तीनों गांवों की पहचान राख की ढेर बन गयी है.
रविवार की सुबह हरा-भरा दिखनेवाला बसंत का नजारा उजड़े चमन की तरह है. झोंपड़ी, खपरैल मकान अग्नि की भेंट चढ़ चुके हैं. सिर छुपाने की भी जगह नहीं बची है. इन गांवों के पांच हजार से अधिक पेड़ भी आग में झुलस कर खराब हो चुके हैं. झुलस कर मरे जानवरों के शव का भी निष्पादन नहीं हो सका है. इस वजह से स्थिति और भयावह होती जा रही है. बुधवार को दिन के दस बजे तक इन तीनों गांवों में मलबा हटाने का कोई उपाय नहीं किया गया है. पीड़ित अब महामारी फैलने की आशंका से भयभीत हैं.
पीड़ितों की सबसे बड़ी समस्या पेयजल की है. अगलगी में करीब ढाई सौ से अधिक चापाकल सूख गये हैं. अगलगी के बाद से चापाकलों ने पानी उगलना बंद कर दिया है. इन गांवों में विद्युत आपूर्ति भी ठप है. प्रशासन द्वारा पीड़ितों के बीच राहत व बचाव के लिए नाम पर भोजन का प्रबंध किया गया है और सिर छुपाने के लिए पॉलीथिन दिया गया है. परंतु सभी पीड़ित परिवारों को नहीं मिला है.
नहीं पहुंची मेडिकल टीम : अगलगी की घटना से प्रभावित लोगों के बीच अब तक मेडिकल टीम नहीं पहुंची है. घटना के दिन एंबुलेंस आयी थी, जो मृतकों के शव को अस्पताल ले गयी. लेकिन, इसके बाद कोई भी चिकित्सा कर्मी नहीं पहुंचे. भगवानी छपरा, बसंत, झौवा बसंत तथा बनवारी बसंत गांव में अगलगी की चपेट में आने से कई लोग झुलसे हैं, जो उपचार के इंतजार में हैं. भागने और आग से बचने के चक्कर में भी कई लोग जख्मी हुए हैं. खुले आसमान के नीचे रह रहे लोग बुखार, सिरदर्द, बदन दर्द से पीड़ित हैं और भीषण गरमी के कारण मौसम जनित बीमारियों के शिकार हो रहे हैं.
राशि के अभाव में राहत कार्य बाधित : राशि नहीं रहने के कारण इन गांवों में राहत कार्य बाधित है. अब तक अग्निपीड़ितों के लिए बने-बनाये भोजन का प्रबंध किया गया है. पीड़ितों को पॉलीथिन दिया गया है, लेकिन खाद्यान्न, बरतन तथा अन्य घरेलू खर्च के लिए 9800-9800 रुपये तत्काल देने का प्रावधान है, जो अब तक पीड़ितों को नहीं मिला है. हालांकि चार मृतकों के परिजनों को चार-चार लाख रुपये की राशि मुहैया करा दी गयी है,
परंतु 891 परिवारों को 9800-9800 रुपये अभी नहीं मिले हैं. प्रशासन द्वारा अगलगी में मरे पशुओं का आकलन भी नहीं किया गया है. राहत व बचाव कार्य के प्रति प्रशासन का रवैया ढीला-ढाला है. इससे पीड़ितों की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं. मकानों की मरम्मत तथा निर्माण के लिए राशि उपलब्ध कराने में भी प्रशासन लापरवाह बना हुआ है.
रिश्तेदार कर रहे हैं सहायता : अग्निपीड़ितों को आसपास के ग्रामीण सहायता तो, कर ही रहे हैं. साथ ही रिश्तेदार भी मदद करने में पीछे नहीं हैं. जिसे अगलगी की खबर मिली, वह खाद्यान्न तथा वस्त्र आदि लेकर अपने-अपने रिश्तेदारों के यहां पहुंचना शुरू कर दिया है. इससे पीड़ितों को काफी राहत मिल रही है. लगातार प्रत्येक घरों में उनके सगे-संबंधी सहायता सामग्री लेकर पहुंच रहे हैं.
चार लोगों की झुलसने से हो गयी थी मौत
पेयजल के लिए मचा हाहाकार
अग्निपीड़ितों में पेयजल के लिए हाहाकार मचा हुआ है. तीनों गांवों के करीब ढाई सौ से अधिक चापाकल सूख गये हैं. प्रशासन द्वारा पेयजल का समुचित व्यवस्था नहीं की गयी है. कुछ चापाकल बचे हैं, वही पीड़ितों का सहारा बना हुआ है. बुधवार की सुबह जन सहयोग से एक टैंकर पानी भगवानी छपा बसंत में लाया गया, जो दो घंटे में ही खाली हो गया. इसके बाद से पीड़ित पानी के लिए भटक रहे हैं. सबसे दुखद स्थिति है कि पीड़ितों के पास पानी भरने, रखने तथा पीने के लिए भी बरतन नहीं है. नतीजा एक-दूसरे से लोटा व गिलास मांग कर काम चला रहे हैं.
सहायता करने में प्रशासन पीछे, ग्रामीण आगे
अग्निपीड़ितों की सहायता करने में आसपास के ग्रामीणों ने प्रशासन को पीछे छोड़ दिया है. प्रशासन के द्वारा महज एक स्थान पर तैयार भोजन उपलब्ध कराने के लिए शिविर लगाया गया है, जबकि आसपास के ग्रामीणों ने तीन स्थानों पर शिविर लगाया है. भगवानी छपरा बसंत के प्राथमिक विद्यालय में प्रशासन का शिविर चलाया जा रहा है,
जबकि उसके पीछे नारायणपुर के ग्रामीणों द्वारा पीड़ितों को खिलाने के लिए पूड़ी-सब्जी तैयार की जा रही है. इसी तरह झौवा बसंत तथा बनवारी बसंत में भी सामाजिक कार्यकर्ताओं ने शिविर लगाया है, जहां पीड़ितों को तैयार भोजन दिया जा रहा है.
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