जग में सुंदर हैं दो नाम, चाहे कृष्ण कहो या राम भौतिकवादी सुविधाओं के चक्कर में ईश्वर को भूल रहा है इनसान: पंडित वशिष्ठप्रवचन व भजन के सहारे हुई ज्ञान की अमृतवर्षा, सराबोर हुए श्रोता पहले दिन भजन पर झूमते दिखे श्रद्धालुनोट: फोटो मेल से भेजा गया है. संवाददाता, दिघवारा भौतिकवादी सुविधाओं के चक्कर में पड़ कर आज का मानव तेजी से ईश्वर की भक्ति से विमुख होता जा रहा है. लिहाजा मन, विचार व व्यवहार को संक्रमण से बचाने के लिए ईश्वर की भक्ति ही सर्वश्रेष्ठ मार्ग है. उपरोक्त बातें नगर पंचायत के मालगोदाम के सामने गीता जयंती समारोह समिति के तत्वावधान में आयोजित गीता जयंती साप्ताहिक समारोह के पहले दिन सोमवार की रात्रि श्रोताओं के बीच प्रवचन की अमृतवर्षा करते हुए कोलकाता से पधारे भागवत कथा मर्मज्ञ पंडित वशिष्ठ नारायण शास्त्री ने कहीं. श्री शास्त्री ने भजनों के सहारे ईश्वर के स्वरूपों की चर्चा की, तो हर कोई ईश्वर की भक्ति में झूम उठा. शास्त्री जी के गाये भजन ‘जग में सुंदर है दो नाम, चाहे कृष्ण कहो या राम” के अलावा ‘गोविंद मेरों हैं गोपाल मेरो हैं वो तो यशोदा के लाल मेरो है’ ने हर किसी को झूमने पर विवश कर दिया. सृष्टि के हर कार्य में ईश्वर की मौजूदगी से संबंधित गाये भजन ‘एक डाल में फूल खिले हैं एक डाल में कांटे, कई कारण होगा’ को भी श्रोताओं की वाहवाही मिली. प्रवचन के दरम्यान मनमोहक झांकियाें ने भी श्रोताओं के अंदर ईश्वर भक्ति के भाव का संचार किया. पहले दिन के प्रवचन में सीताराम प्रसाद, अधिवक्ता मुनिलाल, महेश स्वर्णकार, रवींद्र सिंह, शिक्षक अरुण कुमार, हरिचरण प्रसाद, मोहन शंकर प्रसाद, सुनील सिंह, कुमार रमेश, सूर्यनारायण प्रसाद समेत सैकड़ों लोग ज्ञान गंज्ञा में डुबकी लगाते नजर आये. कथा के श्रवण से दूर होती है मन की व्यथा: वैदेही शरण (बॉक्स के लिए)जनकपुर धाम से पधारीं मानस मंदाकिनी ने प्रवचन के पहले दिन श्रोताओं के बीच प्रवचन की अमृत वर्षा कीदिघवारा. श्रीमद्भागवत गीता तमाम शास्त्रों का सार है एवं गीता में वर्णित हर शब्द ईश्वर के मुख से निकली हुई वाणी है. लिहाजा, इस ग्रंथ के हर शब्द व विचार को अपना कर इनसान मोह, माया, काम, क्रोध व व्यभिचार जैसी बुराइयों पर विजय पा सकता है. उपरोक्त बातें सोमवार की रात गीता जयंती साप्ताहिक समारोह के पहले पहले दिन प्रवचन की अमृतवर्षा करते हुए जनकपुर धाम से पधारी मानस मंदाकिनी वैदेही शरण जी ने कहीं. उन्होंने कहा कि मानव शरीर में पनपने वाला प्रेम चंचल होता है. जीवन के पड़ावों के बीच प्रेम का स्वरूप भी बदलता है. मगर ईश्वर के प्रति प्रेम का भाव चिरस्थायी व एकांकी स्वरूप का होता है. लिहाजा हर इनसान को ईश्वर भक्ति में मन रमाना चाहिए. गीता की प्रासंगिकता की चर्चा करते हुए वैदेही ने कहा कि यह ग्रंथ हर इनसान के बीच कर्म का उपदेश देते हुए पथ प्रदर्शक का काम करता है.
जग में सुंदर हैं दो नाम, चाहे कृष्ण कहो या राम
जग में सुंदर हैं दो नाम, चाहे कृष्ण कहो या राम भौतिकवादी सुविधाओं के चक्कर में ईश्वर को भूल रहा है इनसान: पंडित वशिष्ठप्रवचन व भजन के सहारे हुई ज्ञान की अमृतवर्षा, सराबोर हुए श्रोता पहले दिन भजन पर झूमते दिखे श्रद्धालुनोट: फोटो मेल से भेजा गया है. संवाददाता, दिघवारा भौतिकवादी सुविधाओं के चक्कर में […]
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