दिघवारा : एक जमाना था जब होश संभालने के बाद हाथों में झोला लेकर सरकारी स्कूल या फिर कंधे पर बैग टांग कर प्राइवेट स्कूल में ज्ञान अर्जित करने पहुंचते थे. मगर जमाना बदलने के साथ अभिभावकों के सोच में बदलाव आया है. वर्तमान समय में पढ़ाई की अहमियत को समझते हुए अभिभावक बच्चों की […]
दिघवारा : एक जमाना था जब होश संभालने के बाद हाथों में झोला लेकर सरकारी स्कूल या फिर कंधे पर बैग टांग कर प्राइवेट स्कूल में ज्ञान अर्जित करने पहुंचते थे. मगर जमाना बदलने के साथ अभिभावकों के सोच में बदलाव आया है. वर्तमान समय में पढ़ाई की अहमियत को समझते हुए अभिभावक बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान देने लगे हैं.
शायद यही वजह है कि अभिभावकों के सोच को समझते हुए निजी स्कूल संचालक प्ले स्कूल को चलाने में ज्यादा दिलचस्पी दिखा रहे हैं. अब ग्रामीण इलाकों में भी प्ले स्कूल का डिमांड तेजी से बढ़ा है एवं दिघवारा एवं शितलपुर जैसी छोटी जगहों पर खुले प्ले स्कूलों में नामांकित बच्चों की संख्या सैकड़ों में है. इन स्कूलों से निजी स्कूल संचालकों को अच्छी आमदनी हो रही है. वहीं स्कूलों में नामांकित बच्चों को फायदा भी हो रहा है.
तीन वर्ष से सात वर्षों के बच्चों का होता है नामांकन : प्ले स्कूल में तीन से सात वर्ष आयु वर्ग के बच्चों का नामांकन होता है. जहां प्ले से लेकर यूकेजी वर्ग तक की पढ़ाई की व्यवस्था होती है. बच्चों को खेल-खेल में पढ़ाया जाता है.
शिक्षकों की जगह बच्चे बदलते हैं क्लास : आम तौर पर अन्य स्कूलों में जहां घंटी बजने पर शिक्षक क्लास बदलते हैं. वहीं प्ले स्कूल में घंटी बजने पर बच्चों का क्लास बदला जाता है. ऐसा इसलिए किया जाता है कि ताकि एक ही स्थान पर बैठे बच्चे बोर न हो और पढ़ने से उनका ध्यान हट न सके.
कई क्लास रूमों में रोचकता से होती है पढ़ाई : कमोवेश हर प्ले स्कूल में स्कूल प्रबंधन के अनुसार क्लास रूम की व्यवस्था होती है, जिसमें स्टडी क्लास, एक्टिविटी, बीडीओ क्लास व गेम क्लास होते हैं. स्टडी रूम में पढ़े कंसेप्ट को बच्चे वीडियो क्लास में मॉनीटर पर देख कर अच्छे तरीके से समझ जाते हैं. पढ़ाई रोचक होने से बच्चों का खेल के साथ पढ़ाई में मन रमता है.
खेल व मनोरंजन का होता है भरपूर इंतजाम : इन स्कूलों में कई खूबियां होती हैं. बच्चों के खेल व मनोरंजन की अच्छी व्यवस्था होती है. टीचर गीत गाने, नृत्य करने व एक्टिंग करने की कला भी सिखाते हैं.
गानों के सहारे बच्चे को जिनकी काउंटिंग केवल वर्ड व कविता जैसे कई महत्वपूर्ण चीजों को सुगमतापूर्वक सिखाया जाता है. बच्चों के लंच में पौष्टिकता का ध्यान रखने के साथ-साथ क्लास में बच्चों की हर गतिविधियों पर सीसीटीवी कैमरों के सहारे मॉनीटरिंग की जाती है.
नामांकन के समय लगती है अच्छी राशि : प्ले स्कूलों में नामांकन के वक्त अलग-अलग राशियां लगती हैं. मगर अधिसंख्य ग्रामीण स्कूलों में नामांकन के वक्त अभिभावकों को तीन से छह हजार की राशि खर्च करनी पड़ती है. स्कूल फी तीन सौ से पांच सौ रुपया प्रति महीना लगता है. वहीं वाहन किराया अलग से देने व प्ले स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने में अभिभावकों को प्रति माह 1000 रुपये तक खर्च होता है. अब निम्न व आर्थिक आमदनीवाले अभिभावक भी प्ले स्कूलों में अपने बच्चे को नामांकित कराने में रुचि दिखा रहे हैं.