अभी हेलिकॉप्टर से आते हैं नेताजी, कभी आसमान से गिरा था चुनावी परचा 1952 में निर्दलीय प्रत्याशी ने आसमान से गिरवाया था परचाी1952,1957 व 1962 के चुनावों में बूथों पर प्रत्येक प्रत्याशी के होते थे बक्सेमतदाता अपने पसंदीदा प्रत्याशी के नाम लगे बक्से में डालते थे वोटअतीत के पन्नों से जानें चुनाव की बातसंवाददाता, दिघवारादशहरा व मुहर्रम जैसे आस्था के पर्वों के बीच लोकतंत्र का महापर्व भी आने की दहलीज पर खड़ा है. तीसरे चरण के तहत आगामी 28 अक्तूबर को सोनपुर विाधनसभा क्षेत्र में चुनाव होना है, उसे दिन मतदाता वोट की चोट से प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला करेंगे. मगर चुनाव से पूर्व इन दिनों जनसंपर्क व चुनावी सभाओं का दौर अपने परवान पर है. हर प्रत्याशी अपने वोटरों को समझाने, रिझाने व मनाने में जुटा है. वहीं, विभिन्न राजनीतिक दलों के स्टार प्रचारकों के हेलिकॉप्टर भी ताबड़तोड़ उड़ान भर रहे हैं एवं वोटरों तक अपनी बातों को पहुंचाने का कोई मौका नहीं गंवा रहे हैं. चुनाव के मौसम के बीच ‘प्रभात खबर’ ने क्षेत्र के कुछ बुजुर्ग मतदाताओं से बात कर यह जानने का प्रयास किया कि उनके जमाने में चुनाव कैसे होता था. नेताओं के जनसंपर्क का तरीका कैसा होता था. वोटरों व प्रत्याशियों के बीच कैसा समन्वय था एवं मतदाता किस आधार पर मत डालते थे? आसमान से गिरा था परचा1952 के चुनाव में आमी के गंगा साह ने पहले विधानसभा चुनाव में बतौर निर्दलीय प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमायी थी एवं उस चुनाव में उनको ‘हवाई जहाज’ चुनाव चिह्न मिला था. वोटरों के बीच श्री साह की धाक बने, इसलिए उन्होंने चुनाव के पूर्व अपने प्रचार के लिए चुनावी परचे को आसमान से प्रचार के लिए गिरवाया था. तब से आज तक फिर दोबारा आसमान से परचा नहीं गिरा. मतदान केंद्र पर होती थीं कई मतपेटियां1952 से 1962 तक बूथों पर तमाम प्रत्याशियों से अलग-अलग मत पेटियां होती थी. जिस वोटर को जिस प्रत्याशी को वोट डालना होता था, वे परची सटे प्रत्याशी के नाम वाले बक्से में अपना वोट डाल देते थे. 1962 के चुनाव के बाद एक ही पेटी में सभी वोटों को डालने की प्रक्रिया शुरू हुई. तांगे पर लाउडस्पीकर बांध कर होता था चुनाव प्रचारपहले चुनाव प्रचार में तांगा पर लाउडस्पीकर को बांध कर चुनाव प्रचार किया जाता था एवं प्रत्याशी इन्हीं तांगों से जनसंपर्क करते थे. फिर तांगे से पेट्रोलवाली जीप. वहीं, चमचमाती कारों के अलावा अब हेलिकॉप्टरों का प्रयोग होने लगा है. लाई व बताशा पर कार्यकर्ता साटते थे परचा1952 के चुनाव के बाद कई चुनावों में दीवारों पर परचा साटने का काम शुरू हुआ था, जो पार्टी या प्रत्याशी के समर्पित कार्यकर्ता करते थे. इस कार्य के बदले में परचा साटनेवाले कार्यकर्ताओं को लाई व बताशा मिलता था. चरित्रवान लोग ही लड़ते थे चुनावपहले के चुनावों में चरित्रवान लोग ही चुनवा लड़ते थे एवं पार्टी के सिद्धांतों पर प्रत्याशी भाषण देकर वोट देने की अपील करते थे. दागी प्रत्याशियों को टिकट नहीं दिया जाता था, जिस कारण दागी छविवाले लोगों को जनप्रतिनिधि बनने का मौका नहीं मिलता था. प्रत्याशी डोर-टू-डोर जनसंपर्क करते थे एवं अपने व्यक्तित्व के आधार पर वोट मांगते थे. जनसंपर्क में स्काॅट पार्टी नहीं रखते थे नेताजीजिन नेताओं को सुरक्षा के दृष्टिकोण से पुलिस बल दिया जाता था, वैसे नेताजी भी जनसंपर्क के क्रम में स्काॅट पार्टी व पुलिस को लौटा देते थे एवं बिना किसी भय के क्षेत्र के लोगों से मिलते जुलते थे. जाति पर पर कम ही वोटर देते थे वोटआज के चुनाव में जहां विकास पर जाति हावी होती दिखती है, वहीं चार से पांच दशक पूर्व के चुनावों में मतदाता जाति पर नहीं काम व व्यक्तित्व पर वोट देते थे. क्षेत्रवाद की बातें भी दूर-दूर तक नहीं दिखती थी. पार्टी के लिए काम करते थे नेताजी आज के चुनाव में अगर किसी नेताजी को पार्टी टिकट नहीं देती है, तो नेताजी चोला बदलने में तनिक देर नहीं लगाते हैं. कल को जो जुबान तारीफ करती थी, वही जुबान जहरीले बोल बोलने लगती है, मगर पहले के चुनाव में नेताजी पद से ज्यादा पार्टी के लिए काम करते थे, जिस कारण पार्टी में खूब प्रतिष्ठा मिलती थी.
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अभी हेलिकॉप्टर से आते हैं नेताजी, कभी आसमान से गिरा था चुनावी परचा
अभी हेलिकॉप्टर से आते हैं नेताजी, कभी आसमान से गिरा था चुनावी परचा 1952 में निर्दलीय प्रत्याशी ने आसमान से गिरवाया था परचाी1952,1957 व 1962 के चुनावों में बूथों पर प्रत्येक प्रत्याशी के होते थे बक्सेमतदाता अपने पसंदीदा प्रत्याशी के नाम लगे बक्से में डालते थे वोटअतीत के पन्नों से जानें चुनाव की बातसंवाददाता, दिघवारादशहरा […]
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