छपरा : पवित्र रमजान माह के आखिरी जुमे को जुमातुल विदा के नाम से भी मुसलमान भाई मानते हैं. इस मौके पर शहर की जामा मसजिदों में रोजेदार नमाजियों की भीड़ उमड़ पड़ी. नमाजियों की तादाद के सबब मसजिदों में जगह कम पड़ गयी.
लिहाजा सड़क पर भी सफें लगीं. इतनी बड़ी संख्या में नामाजियों के जुटने व एक साथ अल्लाह की बारगाह में सिर झुकाते हुए सजदा करने के दृश्य से माहौल नूरानी व रूह अफजा हो उठा. मौके पर मुकर्रिर व इमाम हजरात ने खुसूसी खुतबों का एहतमाम किया.
* आखिरी अशरा मगफेरत का
जामा मसजिद अहले हदीस के इमाम मौलाना कादिर ने मुजफ्फरपुर से आये मेहमान मौलाना आमिर सुबहानी को मौका दिया. उन्होंने फरमाया कि ये रमजान का आखिरी आशरा है. इसमें इबादतें बढ़ जाती हैं. लैलतुल कद्र की शबे कदर की इबादत, एतकाफ, जकात एवं सदकतुल फितर सभी इसी अशरे में अदा होते हैं. उन्होंने रमजान में शुरू हुए इबादतों के सिलसिले को पूरे साल कायम रखने की बात कहते हुए इस आशरे में अपने गुनाहों की माफी मांगने की अपील की. उन्होंने कहा कि अल्लाह तआला मगफिरत करता है, यानी माफ फरमा देता है.
उन्होंने जुमे की नमाज की अहमियत कुरआन के हवाले से बयान फरमाया. मौला मसजिद के इमाम मौलाना जाकिर ने अपने खुतबे में फरमाया कि जैसे दीगर जुमे होते है, वैसे ही ये भी जुमा है. मगर इबादत करनेवाले जिन्होंने नमाज पढ़ा, रोजे रखे, तिलावत की, उनके लिए इसकी खास अहमियत है कि उन्हें माह–ए–मुबारक के जाने का मलाल होता है. उन्होंने उम्र के हर दिन को अलविदा समझते हुए अल्लाह और रसूल के बताये रास्ते पर चलने की बात कही. उन्होंने रमजान के आखिरी अशरे में लैलतुल कद्र में शब–ए–कद्र की रातों में जागने व मगफिरत की दुआ करने की अपील की.
* हजार रातों के बराबर एक रात
जामा मसजिद में दारूल ओलूम नइमिया के प्रिंसिपल मौलाना नेसार अहमद मिसबाही ने शब–ए–कद्र की अहमियत बताते हुए कहा कि इस एक रात की इबादत, हजार रातों के बराबर है. पूरी रात फरिश्तों का नुजूल होता है. पूरे साल में यही एक रात है, जब इनसान फरिश्तों के साथ इबादत करता है. इनसान फरिश्तों में व फरिश्ते इनसान में शामिल हो जाते हैं.
यह अहमियत केवल उम्मत–ए–महम्मदिया को ही मिली. उन्होंने जुमातुल विदा को ये पैगाम देनेवाला बताया कि इबादतों का महीना जा रहा है, लिहाजा अदा की गयी इबादतों के मकबुलियत की दुआ करें और जो वंचित रह गये, वे अहद करें व अब से भी इसका एहतराम कर इबादत में लग जाएं.
* इनसान बनेंगे व बनायेंगे
जामा मसजिद, बड़ा तेलपा के इमाम मौलाना रज्जबुल कादरी ने फरमाया कि रमजान के आखिरी सप्ताह के जुमा को जुमातुल विदा कहने के पीछे मकसद है कि ये हमें इनसानियत, मुहब्बत व भाईचारगी की तालीम देनेवाले माह रमजानुल मुबारक के जाने का पैगाम देता है.
इस पर सही मायने में, जिसने रोजा रखा उसे अफसोस होता है कि रहमतों भरा महीना जा रहा है. उन्होंने इस मौके पर यह अहद करने की अपील की कि लोग इनसान बनेंगे व दूसरों को भी बनायेंगे. खुद तालीम हासिल करेंगे व दूसरों को भी इसकी ओर बुलायेंगे. शिया मसजिद के इमाम–ए–जुमा व मोकर्रिर मौलाना सैयद मासूम रजा ने शब–ए–कद्र की अहमियत बयान करते हुए कहा कि इसी रात को कुरआन मुकम्मल हुआ. कुरआन ने जुल्म का खातमा व इंसाफ व अदल को आम करनेवाला बताते हुए कहा कि अल्लाह ने कुरआन में फरमाया कि अगर लोग ईमान लाते व तकवा अख्तियार करते हैं, तो मैं उन पर जमीन व आसमान के दरवाजे खोल देता हूं. उन्होंने रमजान को रहमत बटोरने, गुनाह से परहेज का महीना बताया.
* ग्रामीण क्षेत्र भी हुए गुलजार
अलविदा की नमाज को लेकर ग्रामीण क्षेत्रों के जामा मसजिदों व खास मसजिदों में भी रोजेदार नमाजियों की भीड़ उमड़ी. इसकी वजह से माहौल नूरानी हो उठा. दिघवारा के इशंकरपुर, पुरानी थाना स्थित मसजिदों में नमाज–ए–विदा पढ़ी गयी. वहीं नगरा, इसुआपुर, तरैया, मशरक, मांझी, सोनपुर, रिविलगंज, एकमा, मढ़ौरा, अमनौर आदि प्रखंडों में भी नमाज अदा करने की खबर है.