छपरा : इस्लामी माह शाबान की 15वीं रात शब-ए-बरात 20 अप्रैल को मनायी जायेगी. शब-ए-बरात को लेकर मस्जिदों, कब्रगाहों एवं घरों की साफ-सफाई शुरू हो गयी है. कब्रिस्तानों में भी रोशनी की व्यवस्था को लेकर लाइटिंग का काम चल रहा है.
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शब-ए-बरात 20 अप्रैल को मनेगी, तैयारी शुरू
छपरा : इस्लामी माह शाबान की 15वीं रात शब-ए-बरात 20 अप्रैल को मनायी जायेगी. शब-ए-बरात को लेकर मस्जिदों, कब्रगाहों एवं घरों की साफ-सफाई शुरू हो गयी है. कब्रिस्तानों में भी रोशनी की व्यवस्था को लेकर लाइटिंग का काम चल रहा है. शब-ए-बरात शनिवार को मनायी जायेगी. इसको लेकर शहर के बाजारों में रौनक बढ़ गयी […]
शब-ए-बरात शनिवार को मनायी जायेगी. इसको लेकर शहर के बाजारों में रौनक बढ़ गयी है. खनुआ मस्जिद के मौलाना अब्दुल कादिर ने बताया कि इस्लामी कैलेंडर के आठवें महीने को शाबान कहा जाता है और माहे शाबान की 15वीं रात को शब-ए-बरात कही जाती है.
शब-ए-बरात का अर्थ है, एक बुलंदी रात. इस रात को अल्लाह पाक के दरबार में तोबा कबूल होती है. इस रात को अल्लाह की रहमतों व नेकियों के दरवाजे खुल जाते हैं. बरकतों का नजूल होता है और बंदों की खताएं (गुनाह) बारगाहे इलाही में माफ किये जाते हैं.
मजहबे इस्लाम में शाबान एक मुकद्दश महीना माना जाता है. इस महीने को हजरत मोहम्मद सलल्लल्लाहे अलैहे वसल्लम का महीना करार दिया गया है. उन्होंने कहा कि शब-ए-बरात की पूरी रात अल्लाह की इबादत में गुजारना बहुत बड़ी नेकी है.
इस रात के पहले हिस्से में कब्रिस्तान जाकर पूर्वजों के कब्रों की जियारत करने और दूसरे हिस्से में कुरान पाक की तिलावत, नफल व तहजुद की नमाज अदा कर रो-रो कर अल्लाह से अपनी गुनाहों की मगफिरत मांगने से अल्लाह बंदों के गुनाहों को माफ कर देते हैं. इस रात में अल्लाह की इबादत व दिन में रोजा रखना अफजल माना गया है.
गुनाहों की माफी की रात : जमा मस्जिद बड़ा तेलपा के मौलाना रज्जबुल कादरी ने बताया कि शब-ए-बरात का मतलब छुटकारे की रात है. इस्लाम में इस रात की बहुत अहमियत है.
शब यानी रात, यह रात इबादत की रात है जब अपने गुनाहों की माफी मांगी जाती है और दिन में रोजा रखा जाता है. यह रात सिर्फ-और-सिर्फ इबादत की रात होती है. इस रात अल्लाह की अपनी बंदों की तरफ खास तवज्जो होती है.
बंदों के पास यह एक मौका होता है, अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी मांगने का. उन तमाम लोगों के भी गुनाह माफ कर उन्हें जन्नत में जगह देने की दुआ करने का जो दुनिया से गुजर गये हैं. यही वजह है पूरी रात लोग जग कर इबादत करते हैं और दुआएं मांगते हैं. कब्रिस्तान में जाकर फातिहा पढ़ते हैं.
एक रात की इबादत एक हजार रात की इबादत के बराबर : इस रात भी दो लोगों के गुनाहों की माफी नहीं होती है. एक उनको जो लोगों से दुश्मनी रखते हैं और दूसरी उनको जिन्होंने किसी का कत्ल किया होता है.
हजरत अब्दुल्लाह बिन उमर रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम ने फरमाया, 15वीं शाबान की रात में अल्लाह अपने बंदों की मगफिरत (गुनाहों की माफी) फरमाते हैं सिवाय दो तरह के लोगों के. कई उलेमा तो यहां तक कहते हैं कि इस एक रात की इबादत एक हजार रात की इबादत के बराबर होती है.
रोजा रखने का खास महत्व
शाबान महीने में रोजा रखने का खास महत्व और पुण्य है, इसलिए महीने में कभी भी रोजा रखा जा सकता है.
शाबान महीने के बाद रमजान का महीना शुरू होता है और उसमें पूरे महीने रोजा रखना जरूरी होता है. कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो इस रात को जश्न की रात समझते हैं. खूब आतिशबाजी करते हैं या जश्न मनाने के दूसरे तरीकों से हंगामा करते हैं, लेकिन उलेमा ऐसा करना हराम मानते हैं.
यह जश्न की रात नहीं, बल्कि इबादत की रात है. शबे बरात में स्टंटबाजी करना इस रात की अहमियत के खिलाफ है. शबे बरात में हर साल सड़कों पर होनेवाले हुड़दंग और बाइक पर स्टंटबाजी से मुसलमानों को बचना चाहिए. कुछ नौजवान सड़कों पर निकल कर हुड़दंग मचाते हैं और बाइक पर स्टंटबाजी करते हैं.
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