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बैंकिंग कारोबार ठप

मोरवा : जनवितरण प्रणाली की बात अगर छोड़ दी जाय तो पंचायतों की पैक्स व्यवस्था अपने लक्ष्यों से भटकती हुयी जान पड़ती है. जिस ताम-झाम से इसका चुनाव और फिर इसका गठन होता है उतनी सुस्त चाल से इसकी गतिविधि होती है. किसानों का वरदान माने जाने वाला यह संगठन किसानों की समस्याओं के प्रति […]

मोरवा : जनवितरण प्रणाली की बात अगर छोड़ दी जाय तो पंचायतों की पैक्स व्यवस्था अपने लक्ष्यों से भटकती हुयी जान पड़ती है. जिस ताम-झाम से इसका चुनाव और फिर इसका गठन होता है उतनी सुस्त चाल से इसकी गतिविधि होती है. किसानों का वरदान माने जाने वाला यह संगठन किसानों की समस्याओं के प्रति पूरी तरह उदासीन नजर आ रही है.
साल दर साल बीत रहे हैं लेकिन इसकी दशा सुधरने का नाम नहीं ले रहा है. किसान अपनी विभिन्न जरूरतों के लिए इस संगठन का आस लगाये रहते हैं लेकिन पैक्स की व्यवस्था ऐसी कि जरूरत यूरिया की तो डीएपी मिलता है और जब डीएपी की मांग होती है तो यूरिया की खेप पहुंचती हैं.
बैंकिंग व्यवसाय तो पैक्सों के लिए सपना हो चुका है. एकाध पैक्स को छोड़ किसी पैक्सों द्वारा बैंकिंग व्यापार नहीं चलाया जा रहा है. किसानों के धान और गेहूं की खरीद पैक्सों द्वारा तब शुरू किये जाते हैं जब सारे किसानों के अनाज औने पौने दामों पर बिचौलियों के हाथों बिक चुके होते हैं. सभी पंचायतों में दस से बारह लाख की लागत से गोदाम तो बन गये लेकिन इसका उपयोग ही नहीं हो रहा. पैक्सों की गतिविधि ही ऐसी है कि इसकी कभी जरूरत ही नहीं पड़ती है. वर्तमान समय तक गेहूं खरीद की अधिसूचना तक जारी नहीं किया गया है.
इस बावत इंद्रवारा के पैक्स अध्यक्ष सुनीत वर्मा बताते हैं कि साल 2014 में इस पैक्स का गठन होने के बाद विभागीय सहायता कुछ मिली ही नहीं जिससे किसानों को थोड़ी राहत मिलती. गेहूं के खरीद में पेच ही पेच नजर आ रहे हैं. सूत्रों की मानें तो इसके लिए तो पैक्सों को राशि ही उपलब्ध नहीं करायी गयी है.

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