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राजा, रंक व फकीर सभी पहुंचे बूढ़ी गंडक नदी के तीर

समस्तीपुरः कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाये, ई बहंगी छठी मइया के जाये, अब लिहि सुरुजमल अरघिया, करी न दया.. . आदि गीतों की इस गूंज में विगत चार दिनों से निष्ठा, समर्पण, श्रद्घा दिखी. छठी माता की पूजा में न एश्वर्य का बोध, न धन का. न चेहरे पर कोई अहं, न […]

समस्तीपुरः कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाये, ई बहंगी छठी मइया के जाये, अब लिहि सुरुजमल अरघिया, करी न दया.. . आदि गीतों की इस गूंज में विगत चार दिनों से निष्ठा, समर्पण, श्रद्घा दिखी. छठी माता की पूजा में न एश्वर्य का बोध, न धन का. न चेहरे पर कोई अहं, न कोई ताव, बस एक ही ललक कि छठी मइया सबका कल्याण करो.

जिनके घरों में रोजमर्रा का काम करने के लिए नौकर चाकर होते हैं वे भी छठी मइया के पूजन के लिए सिर पर दउरी लिए नंगे पाव चल जा रहे थे नदी तालाबों की ओऱ क्या राजा, क्या रंक और फकीर सभी बूढ़ी गंडक के तीर की ओर जा रहे थ़े बूढ़ी गंडक तट पर एक तरफ करोड़पति का परिवार पूजन में व्यस्त तो ठीक बगल में रोज कुआं खोदने और पानी पीने वालों का परिवार पूजन में मगन थ़े बूढ़ी गंडक तट पर यह सनातनी विरासत यह बता रही थी कि मान्यताएं, परंपराएं, श्रद्घा, निष्ठा भौतिकता की चकाचौंध में भी अपना राग नहीं तोड़ती, साथ नहीं छोड़ती.

हमारी सनातनी विरासत का मजबूत नमूना या यह कहें कि पूर्वजों की यह थाती गाती है, यह राग सुनाती है कि न कोई छूत है, न अछूत है, न अमीर है, न गरीब है क्योंकि हम सब भगवान के करीब है. बूढ़ी गंडक तट पर लाखों की भीड़, बच्चों, बूढ़ों, जवानों की जुटान, दउरी में फल और पकवान, मांग में चमकता सिंदूर, बहुत सुकून देती बूढ़ी गंडक जल की बूंद, माथे में ईख का बोझ, समर्पण की सोच़ बस यही राग है, आलाप है, जिंदगी है. इसी रूप में छठ मईया की आराधना व बंदगी है. छठ घाटों पर सौहार्द ऐसा था कि कई मुस्लिमों ने वहां पहुंच कर लोगों को पर्व की शुभकामनाएं दी.

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