मोरवा : यहां मान्यता है कि सपदंश से लोगों की मौत नहीं होता है. तपोवन कहे जाने वाले इस क्षेत्र की महिमा तो अपरम्पार है ही लोगों की आस्था अटूट है. प्रो. अवधेश झा बताते हैं कि मुगल काल की बात है सारंगपुर पश्चिमी पंचायत के सूर्यपुर गांव में घनघोर जंगल था. एक बेल के पेड़ के नीचे एक सिद्घ पुरूष भाणवानन्द उर्फ अन्हुबाबा समाधि लगाते थे जो कि बाद में यति बाबा के नाम से प्रसिद्ध हुये.
एक दिन बाबा ध्यान में मग्न थे कि मुगल राजा के कुछ सिपाही वहां आ धमके. पेड़ काटने के उद्देश्य से बाबा को समाधि से हटाने लगे. पहले तो बाबा ने इसका विरोध किया लेकिन बाद में वे स्वयं एक तरफ हो नजारा देखने लगे. पेड़ काटते ही उससे खून की धारा बहने लगी. कुल्हाड़ी उलट कर सिपाही को लगा और वह वहीं ढेर हो गया. मुगल शासक को भी इसका पता चला. उसने भी इसका जायजा लिया. धीरे घीरे यह जगह यति स्थान के रूप में प्रचलित हो गया. अंग्रेजों के शासनकाल में यहां एक मंदिर का निर्माण कराया गया.
व्यास बाबा के नाम पर व्यासपुर गांव
यतिबाबा के एक शिष्य का नाम व्यास बाबा था जिसके नाम पर आज व्यासपुर गांव है. काफी दिनों के बाद यति बाबा ने समाधि लेने की इच्छा की. लोगों को आर्शीवाद स्वरूप उन्हाेंने कहा कि व्यासपुर गांव के लोगों की मौत कभी सर्पदंश से नहीं होगी. अवधेश झा, रामस्वार्थ झा, रामजी झा, हजारी जी समेत ऐसे दर्जन भर उदाहरण हैं जिसे सांप ने डसा तो जरूर लेकिन उनका बाल बांका नहीं हो सका. उनकी समाधि फट जाय तो समझ लेना चाहिए कि उनकी मौत हो गयी है
. लोग बताते हैं कि तीन चार साल पूर्व उनकी समाधि अचानक फट गया है. पुराना मंदिर तो धाराशयी हो चुके हैं. नया विशाल मंदिर बनाया गया है. मंदिर प्रांगण में मां दुर्गा की भव्य प्रतिमा स्थापित कर पूजा अर्चना की जाती है. यहां पर्यटन स्थल विकसित कोने के तमाम संसाधन मौजूद हैं लेकिन प्रशासनिक उदासीनता का शिकार हुआ यह एतिहासिक धरोहर गुमनामी के अंधेरे में समाया हुआ है.
पट खुलते ही उमड़ी भीड़
मोरवा. शारदीय नवरात्रा के अवसर पर इस बार दो रात हुई महानिशा पूजा. अन्य पंचागों के अनुसार अनेक स्थानों पर महानिशा पूजा के साथ भगवती कालरात्रि के पूजन के बाद पट खुलते ही श्रद्वालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी. वहीं मिथिला पंचाग के अनुसार कई स्थानों पर मंगलवार की रात महानिशा पूजा का धूमधाम से आयोजन किया गया है. आज देर रात कई मंदिरों व पूजा मंडप में मां भगवती का पट खुलेगा.