सिमरी बख्तियारपुर : अाब हम केकरा लेल जीबै हो बाबू के क्रंदन व चीत्कार से पूरा माहौल गमगीन होता जा रहा था. जवान की पत्नी आशा देवी अपने चार माह के पुत्र दिव्यांशु को गोद में लेकर कभी बेहोश हो जाती. ग्रामीण आशा को संभालते. लेकिन एक बार फिर वह अपने बच्चे को गोद में लेकर रोने लगती है. जिसे देख कर ग्रामीणों के आंखों में भी आंसू की धारा बहने लगती है. वहीं दूसरी ओर जवान के पिता विलास यादव, माता मंजुला देवी का रो-रो कर बुरा हाल था. ग्रामीण कविता को चुप कराने का प्रयास करते हैं तो कभी मां को. 4 माह का दिव्यांशु अपने पिता के गुजर जाने के अंजाम से बेखबर एक दूसरे के गले से लगकर खेलता रहा.
संजीव कुमार की शादी 4 वर्ष पूर्व हुई थी. शादी के 4 साल के बाद दिव्यांशु का जन्म हुआ. घर में खुशियों की लहर दौड़ गयी थी. जब दिव्यांशु का जन्म हुआ, गांव में पूरे धूमधाम से भोज कराया गया था. पिता की खुशी देखने लायक थी. तब किसे पता था कि चार माह का दूध पीता दिव्यांशु अपने पिता के कंधे पर खेलने के बजाय खुद अपने कंधे पर ले जायेगा. मालूम हो कि जवान संजीव कुमार अपने पीछे पिता विलास यादव, माता मंजुला देवी, पत्नी आशा देवी, भाई सहिन चार बहन को छोड़ गये हैं.