निश्चय यात्रा के क्रम में सीएम नीतीश कुमार अभयारण्य की कर सकते हैं घोषणा
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आरण बनेगा अभयारण्य, मयूर पर बन रही डॉक्यूमेंटरी फिल्म
निश्चय यात्रा के क्रम में सीएम नीतीश कुमार अभयारण्य की कर सकते हैं घोषणा 500 से अधिक मोर हैं इस गांव में वन विभाग की ओर से कराया जा रहा फिल्मांकन सहरसा : शहर से चार किलोमीटर उत्तर बसे आरण गांव में वहां सामान्य रूप से रहने वाले मोरों पर डॉक्यूमेंटरी फिल्म का निर्माण शुरू […]
500 से अधिक मोर हैं इस गांव में
वन विभाग की ओर से कराया जा रहा फिल्मांकन
सहरसा : शहर से चार किलोमीटर उत्तर बसे आरण गांव में वहां सामान्य रूप से रहने वाले मोरों पर डॉक्यूमेंटरी फिल्म का निर्माण शुरू हो गया है. राज्य सरकार के निर्देश पर वन विभाग की ओर से फिल्मांकन कराया जा रहा है. पटना के साक्षी कम्यूनिकेशन द्वारा तैयार करायी जा रही फिल्म में गांव से मोर का संबंध दिखाने का प्रयास किया जा रहा है. संभावना जतायी जा रही है कि अगले महीने के पहले सप्ताह में निश्चय यात्रा के क्रम में सहरसा आ रहे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आरण गांव जायेंगे आरण गांव को मयूर अभयारण्य बनाने की घोषणा करेंगे.
गांव से मोर का संबंध बता रही रुचि: साक्षी कम्यूनिकेशन के निर्देशक आरबी सिंह के निर्देशन में बन रही फिल्म में जिले सभी महत्वपूर्ण स्थानों को दिखाते आरण गांव की विशेषता पर फोकस किया जा रहा है.
एंकर रुचि कुमारी गांव में मोर का इतिहास व उसके सामान्य रूप से रहन-सहन का बड़े ही रोचक ढंग से विश्लेषण कर रही है. वह बता रही है कि शहर से सटे इस छोटे से गांव में मोर कब और कैसे आया. उसका रहन-सहन व खान-पान कैसा है. गांव वालों के साथ उसका व्यवहार कैसा है. उसकी संख्या बढ़ने के बाद गांव वालों को परेशानी हुई अथवा नहीं. अभी भी लोगों के घर मोरों के प्रवेश पर उनकी क्या प्रतिक्रिया है. इसे शूट किया जा रहा है. स्क्रिप्टराइटर चंद्रभूषण झा हैं. कैमरामैन राजेश राठौर भी आरण के घर-आंगन में आते-जाते मोरों का बड़ी तन्मयता से फुटेज ले रहे हैं.
‘जंगल में नहीं, गांव में नाचते हैं मोर’ शीर्षक से छपी थी खबर
दो से पांच सौ की हुई संख्या
25 वर्ष पूर्व गांव के कारी झा उर्फ अभिनंदन यादव ने पंजाब से एक जोड़ा मोर लाया था. जिसे पाल-पोस कर बड़ा किया. कुछ वर्षों के बाद मोरनी ने छह अंडे दिए. जिससे कुल आठ मोर हो गए. साल दर साल मोरों की संख्या बढ़ती चली गई और कारी झा का दरवाजा मोरों से भर गया. कोई उसके कमरे में घुस जाता तो कोई उसके अनाज के बोरों में चोंच डाल देता. मोरों के इस हरकत से वह परेशान हो सभी को घर से भगा गांव के जंगल में छोड़ आया. गांव का वातावरण मोर के अनुकूल होने के कारण वे आरण को छोड़ कहीं नहीं गये. धीरे-धीरे उनकी संख्या आज पांच सौ तक जा पहुंची है. उस गांव में उतना कौआ नहीं है. जितनी मोरों की संख्या है. वे हर घर के छत पर, दरवाजे पर, पेड़ों की डाल पर, खेतों में, पगडंडियों पर, मुख्य सड़क पर विचरते आसानी से देखे जा सकते हैं.
छपी खबर, तो जगी सरकार
प्रभात खबर के चार सितंबर के अंक में पहली बार ‘जंगल में नहीं, गांव में नाचते हैं मोर’ शीर्षक से खबर छपी तो सरकार सजग हुई. सीएम के निर्देश पर सितंबर में डीएम ने वन विभाग के अधिकारी को मोरों की वास्तविक संख्या सहित अन्य जानकारी जुटाने आरण गांव भेजा. रिपोर्ट सौंपे जाने के कुछ दिनों के बाद डीएम बिनोद सिंह गुंजियाल खुद गांव जा लोगों से मोर के संबंध में ग्रामीणों से बात की. कुछ दिनों के बाद वन विभाग द्वारा आरण में पेड़-पौधे लगाये जाने लगे व उसकी देखभाल की जाने लगी. अक्टूबर महीने के अंत में छठ के बाद डाक्यूमेंट्री फिल्म बनाये जाने की बात कही गई थी. जिसकी बीते कुछ दिनों से शूटिंग की जा रही है. संभावना जतायी जा रही है कि दिसंबर में निश्चय यात्रा के क्रम में आ रहे सीएम आरण जायेंगे व मयूर अभयारण्य की घोषणा करेंगे.
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