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बदली बलि की अवधारणा, उपासना में बढ़ी आस्था

पिछले वर्षों की तुलना में 40 फीसदी आयी कमी सहरसा : ‘अश्वं नैव गजं नैव व्याघ्रं नैव च नैव, अजा पुत्रं बलि दधात दैवौ दुर्बल घातक:’ अर्थात् घोड़ा नहीं, हाथी नहीं और न ही बाघ के बच्चे की बलि दी जाती है. ईश्वर भी बकरे के बच्चे को ही कमजोर जानकर उसकी बलि लेते हैं. […]

पिछले वर्षों की तुलना में 40 फीसदी आयी कमी

सहरसा : ‘अश्वं नैव गजं नैव व्याघ्रं नैव च नैव, अजा पुत्रं बलि दधात दैवौ दुर्बल घातक:’ अर्थात् घोड़ा नहीं, हाथी नहीं और न ही बाघ के बच्चे की बलि दी जाती है. ईश्वर भी बकरे के बच्चे को ही कमजोर जानकर उसकी बलि लेते हैं. संभवत: संस्कृत के इस श्लोक का प्रभाव अब शुरू हो गया है. दुर्गापूजा के दौरान होने वाले बलि प्रदान की संख्या में पिछले वर्षों की तुलना में इस वर्ष भारी कमी आयी है. शहर से लेकर गांव तक ऐसे सभी भगवती स्थलों में इस बार बलि प्रदान की संख्या में 40 फीसदी तक की गिरावट आयी.
खोआ व दही की बढ़ी बिक्री: इधर उग्रतारा मेला कमेटी के सचिव चंदन पाठक ने बताया कि महिषी का विश्वप्रसिद्ध उग्रतारा स्थान में इस बार खोआ व मिठाई की अप्रत्याशित बिक्री हुई. उन्होंने बताया कि मंदिर परिसर में स्थायी रूप से खुले पांच दुकानों में सामान्य दिनों में ढाई क्विंटल दूध की खपत होती है. दुर्गापूजा के दौरान यह खपत दो से ढ़ाई गुनी हो जाती थी.
लेकिन इस बार परिसर के इन पांच दुकानों में दूध की खपत पांच गुना तक बढ़ गयी. इस बार अष्टमी, नवमी एवं दशमी तीन दिनों में यहां पांच क्विंटल खोआ की बिक्री हुई यानी इन तीन दिनों में ढ़ाई हजार किलोग्राम दूध की खपत हुयी. इसके अलावे प्रतिदिन एक क्विंटल के हिसाब से दही की भी बिक्री हुई.
बलि देने बाहर से कम आये लोग
धार्मिक आस्था, भगवती की उपासना, नौ दिनों के लंबे अनुष्ठान के पर्व दुर्गापूजा का दूसरा पहलू बलिप्रदान से भी जुड़ा हुआ है. कहते हैं बलिप्रदान से भगवती प्रसन्न होती है और भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी करती हैं. दुर्गासप्तशती में भी इस बात का उल्लेख है. लोग भी संकट की घड़ी में भगवती को बलिप्रदान करने का संकल्प ले लेते हैं और उस संकट से उबरने के साथ ही भगवती के समक्ष पशु की बलि चढ़ा देते हैं. लेकिन समय के साथ लोगों की यह अवधारणा बदलती जा रही है. वे पशु बलि देने की जगह देवी को तरह-तरह की मिठाई व फल चढ़ा प्रसाद के रूप में वितरण कर देने में विश्वास बढ़ाने लगे हैं. जिले के महिषी स्थित उग्रतारा शक्तिपीठ में हर वर्ष हजारों पशुओं की बलि दी जाती रही है. इस वर्ष बलिप्रदान में 40 फीसदी तक की गिरावट आयी. न्यास समिति के सचिव पीयूष रंजन ने बताया कि गांव से बलिप्रदान करने वाले लोगों की संख्या लगभग यथावत रही. लेकिन बाहर से आकर यहां पशु बलि देने वालों की संख्या में भारी कमी आयी. उन्होंने बताया कि बलिप्रदान से न्यास को होने वाली आमदनी में इस बार 70 हजार रुपये की कमी हुई. इसी तरह शहरी क्षेत्र के पंचवटी स्थित दुर्गास्थान में भी 40 फीसदी कम बलिप्रदान हुआ. पिछले वर्ष तक यहां 750 से आठ सौ तक पशुओं की बलि दी गयी थी. जबकि इस बार यह संख्या 550 पर आकर सिमट गयी.

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