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कबीर ने दोहे के माध्यम से कुरीतियों पर की चोट कबीर जयंती पर कवि गोष्ठी आयोजित सहरसा : अखिल भारतीय लेखक संघ द्वारा शुक्रवार को प्रमंडलीय पुस्तकालय ऑडिटोरियम में एंबीशन कैरियर जंकशन एवं बापू बाल विद्यालय की सहयोग से कबीर जयंती सह कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया. मुक्तेश्वर सिंह मुकेश की अध्यक्षता में हुई […]

कबीर ने दोहे के माध्यम से कुरीतियों पर की चोट

कबीर जयंती पर कवि गोष्ठी आयोजित
सहरसा : अखिल भारतीय लेखक संघ द्वारा शुक्रवार को प्रमंडलीय पुस्तकालय ऑडिटोरियम में एंबीशन कैरियर जंकशन एवं बापू बाल विद्यालय की सहयोग से कबीर जयंती सह
कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया. मुक्तेश्वर सिंह मुकेश की अध्यक्षता में हुई कवि गोष्ठी में कोसी शक्ति पीठ के आचार्य स्वामी दुर्गानन्द सरस्वती, महिला कॉलेज की प्रधानाचार्या डॉ रेणु सिंह, जैन कॉलेज आरा के पूर्व प्राचार्य डॉ जटाशंकर ठाकुर, समाहरणालय की वरीय उपसमाहर्ता किरण सिंह, जिभनि पदाधिकारी मनोज कुमार सहाय एवं कबीर पंथ के अनुआयी नारायण यादव, रमण कुमार झा ने दीप जला एवं कबीर की तसवीर पर पुष्पांजलि कर कार्यक्रम की शुरुआत की.
आज भी प्रासंगिक हैं कबीर के दोहे
मुक्तेश्वर सिंह ने विषय प्रवेश कराते कहा कि कबीर दास मूलत: भक्त थे. भगवान पर उनका अटल विश्वास था. ब्रह्म तत्व की व्याख्या करते हुए उन्हें अर्थहीन आचार और पाखंड जैसे जंजालों को साफ करने की जरूरत पड़ी. उन्होंने वाह्याचार की जड़ प्रकृति को विशुद्ध चेतन तत्व की उपलब्धि में बाधक माना.
कबीर द्वारा कुरीतियों पर किये गये प्रहार वाणियों और उक्तियों के रूप में जन-जन की जुबान पर है. जिस बात को उन्होंने जिस रूप में प्रकट करना चाहा उसी रूप में प्रकट किया. प्रधानाचार्या डॉ रेणु सिंह ने कहा कि कवि के रूप में संत कबीर दास को काफी दिनों बाद मान्यता मिली. वे जुलाहे के घर पले-बढ़े.
जहां सूत से कपड़े बनाये जाते थे. उन्होंने तंगी में पलकर सच्चाइयों का अवलोकन किया और भगवत भक्ति के दौरान पाखंड एवं समाज में व्याप्त कुरीतियों के खिलाफ खुलकर आवाज उठायी. नारायण यादव ने कहा कबीर की जन्म तिथि नौ जून 1398 को अभी तक सर्वमान्य स्वीकारोक्ति नहीं मिली, पर उनके निर्वाण की तिथि को सही माना गया. उनकी चिता पर के फूल हिंदू-मुसलिमों ने आपस में बांट लिया था. डॉ दुर्गानन्द सरस्वती ने काफी विस्तार से चर्चा की.
उन्होंने कहा गीता के कर्मवाद और कबीर के यथार्थवाद में काफी साम्यता है. उन्होंने अंधविश्वास और जटिल पूजन पद्धति को नकार दिया था. डॉ जटाशंकर ठाकुर ने कबीर की उक्तियों का विष्लेषण किया. किरण सिंह ने कहा कि कबीर के दोहे आज की परिस्थिति में प्रासंगिक हैं. विज्ञान को संदर्भित कर रमण कुमार झा ने भी कबीर दास के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला.
नटराज कैसे करूं अर्चन…
दूसरे सत्र में कवि सम्मेलन की शुरुआत महेन्द्र बंधु ने कविता पाठ से की. सियाराम यादव मयंक ने अपनी गजल तलवारों की धार पर चलना सबके वश की बात नहीं सुनायी. विवेकानन्द सिंह की कविता चूल्हा जले न जले, घर जरूर जल जायेगा सुनाया. मुक्तेश्वर सिंह मुकेश ने अंग्रेजी कविता सुनाकर कबीर दास की आध्यात्मिक खोज को जिसमें सबद का महत्व था, समर्पित किया. प्रो शंकर कुमार ने जब तक साफ न हो मन का कूड़ा, कहां मिलेगा हीरा की प्रस्तुति दी.
सचिव आनन्द कुमार झा ने अपनी नयी कविता से सामयिक व्यवस्था पर चोट की. सुमन शेखर आजाद ने भी रे मनमा भटक रहा क्यों, तेरे पीछे भी कोई साया है सुनाया. प्रधानाचार्य कवयित्री डॉ रेणु सिंह नटराज करूं कैसे अर्चन, माताएं आज बिलखती हैं, नवजात शिशु करते क्रंदन सुनाकर भाव विभोर कर दिया. कार्यक्रम में गौतम कुमार सिंह, प्रो शंकर कुमार, मनोज मनोहर, विवेकानन्द सिंह, प्रो राजाराम सिंह, चक्रधर झा विमल, दिलीप कुमार चौधरी, अनिल कुमार मिश्र, सुभाष चन्द्र झा, सियाराम यादव मयंक, महेन्द्र बंधु, सुमन शेखर आजाद, सोमू आनंद, सिंकू आनन्द, शिवानी, अविनाश शंकर एवं अन्य विद्वानों ने भाग लिया.अखिल भारतीय लेखक संघ के सचिव आनन्द कुमार झा, उपाध्यक्ष, संदीप कष्यप, पुस्तकालय के लायब्रेरियन राजीव कुमार, राजेष कुमार एवं अमित कुमार तथा केयर टेकर भोगीलाल यादव ने कबीर जयंती सह कवि सम्मेलन के आयोजन को सफल बनाने की व्यवस्था संभाली.

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