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4 लाख 63 हजार लोग शौचालय विहीन

जागरूकता का अभाव . खुले में शौचमुक्ति की राह में परंपरावादी मानसिकता है रोड़ा निम्नस्तरीय जीवनशैली जिले को ओडीएफ फ्री बनाने की राह में बाधक बना हुआ है. इसके अलावा सबसे बड़ा रोड़ा लोगों की परंपरावादी मानसिकता है, जिसे बदलने के लिए जन जागरूकता की आवश्यकता है. पूर्णिया : खुले में शौचमुक्ति की राह जिले […]

जागरूकता का अभाव . खुले में शौचमुक्ति की राह में परंपरावादी मानसिकता है रोड़ा

निम्नस्तरीय जीवनशैली जिले को ओडीएफ फ्री बनाने की राह में बाधक बना हुआ है. इसके अलावा सबसे बड़ा रोड़ा लोगों की परंपरावादी मानसिकता है, जिसे बदलने के लिए जन जागरूकता की आवश्यकता है.
पूर्णिया : खुले में शौचमुक्ति की राह जिले में अब भी काफी दूर है. जिले में औसतन प्रतिवर्ष पंद्रह हजार के आस पास शौचालय का निर्माण हो रहा है. जिससे सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि यदि शौचालय निर्माण की गति नहीं बढ़ायी गयी तो जिले को ओडीएफ फ्री बनने में 30 वर्ष से अधिक समय लग जायेंगे.
विभागीय आकड़ों के मुताबिक चालू वित्तीय वर्ष में लोहिया स्वच्छ बिहार अभियान के तहत कुल 12 हजार 832 शौचालय का ही निर्माण संभव हो पाया है. जिले के आधा दर्जन ऐसे प्रखंड हैं,जहां शौचालय निर्माण की गति निम्नतम स्तर पर है.जागरूकता का अभाव व निम्नस्तरीय जीवनशैली जिले को ओडीएफ फ्री होने की राह में बाधक बना हुआ है. इसके अलावा सबसे बड़ा रोड़ा लोगों की परंपरावादी मानसिकता है, जिसे बदलने के लिए जनजागरूकता की आवश्यकता है.
लोगों में जागरूकता का अभाव :
जागरूकता का अभाव और परंपरावादी मानसिकता खुले में शौचमुक्त पंचायत और गांव के निर्माण में सबसे बड़ा बाधक बना हुआ है. आज भी एक बड़ी आबादी खुले में शौच करना अधिक पसंद करती है. ऐसी धारणा आज भी है कि आवासीय परिसर में शौचालय नहीं होना चाहिए, क्योंकि वहीं देवता का घर भी होता है. इसके अलावा लोग घर बनाने से लेकर अन्य चीजों के निर्माण में या खरीदारी में अधिक दिलचस्पी दिखाते हैं. ऐसे लोगों की नजर में शौचालय निर्माण की कोई अहमियत नहीं है. यही कुछ पुरानी सोच है,जो स्वच्छता के मार्ग में बड़ी बाधा साबित हो रही है. अभी भी जिले में लगभग 4लाख 63 हजार के आसपास लोग शौचालय विहीन हैं. इन शौचालय विहीन लोगों के बीच शौचालय की महत्ता को बताने की आवश्यकता महसूस की जा रही है.
चार प्रखंडों की स्थिति संतोषजनक
जिले के चार प्रखंड केनगर,रुपौली,भवानीपुर व कसबा में शौचालय निर्माण की गति को संतोषजनक कहा जा सकता है.इन प्रखंडों में शौचालय निर्माण का आंकड़ा एक हजार को पार कर चुका है. चालू वित्तीय वर्ष में सर्वाधिक शौचालय का निर्माण केनगर प्रखंड में हुआ है.जबकि दूसरे स्थान पर रुपौली,तीसरे स्थान पर भवानीपुर व चौथे स्थान पर कसबा प्रखंड है. शेष दस प्रखंड हजार के आंकड़े को भी पार नहीं कर पाया है. निर्माण में सबसे फिसड्डी डगरुआ प्रखंड है. अमूमन शेष सभी प्रखंडों की कमोवेश यही स्थिति है. ऐसा माना जा रहा है कि जिन प्रखंडों में शौचालय निर्माण की गति धीमी है, वैसे प्रखंड पिछड़ेपन से ग्रस्त हैं. जानकारों की माने तो विभाग को सबसे पहले इन प्रखंडों पर ध्यान केंद्रित कर जागरूकता अभियान चलाना होगा. तब कहीं ओडीएफ फ्री का सपना साकार हो सकता है.
प्रदूषित होता है वातावरण
मल से वातावरण तो प्रदूषित होता ही है, साथ ही लोग संक्रामक रोग के भी शिकार जाने-अनजाने में हो जाते हैं. जिले में डायरिया, उल्टी, दस्त आदि की बीमारी इन्हीं मल प्रदूषण की वजह से होती है. खुले में शौच के कारण शौच विहीन लोग तो रोगों के शिकार तो होते ही हैं,साथ ही वैसे लोग भी इस मल के कारण रोग ग्रस्त होते हैं, जिनके पास शौचालय होते हैं.अस्पतालों में अधिकांश मरीज डायरिया,दस्त आदि के मरीज देखने को मिल रहे हैं. जानकारों के अनुसार निर्धारित समय समय सीमा में पूर्णिया को स्वच्छ बनाना है तो प्रति वर्ष औसतन 1 लाख 15 हजार से अधिक शौचालय निर्माण कराना होगा और शौचालय के प्रयोग के लिए प्रोत्साहित करना होगा. विभाग ऐसा करने में कहां तक सफल हो पाती है, यह कह पाना कठिन है.
निर्मित शौचालय
प्रखंड संख्या
बैसा 680
अमोर 525
बायसी 699
डगरुआ 385
जलालगढ़ 446
कसबा 1091
पूर्णिया पूर्व 551
केनगर 2440
श्रीनगर 496
बनमनखी 757
धमदाहा 909
बी कोठी 489
भवानीपुर 1556
रुपौली 1808
कुल 12832
अनुदान पर शौचालय निर्माण का कार्य जारी है. लेकिन जागरूकता के अभाव के कारण निर्माण की रफ्तार मध्यम है. राज्य को निर्मल बनाने की दिशा में लोगों को आगे बढ़ कर शौचालय निर्माण में दिलचस्पी लेनी होगी.
विनय कुमार झा,जिला समन्वयक,लोहिया स्वच्छ बिहार अभियान,पूर्णिया.

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