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दर्शकों को झंकझोर गये कलाकार

आयोजन. दो दिवसीय युवा उत्सव का समापन, कलाकारों ने मोहा मन दूसरे दिन वक्तृता, नाट्य, समूह लोकगीत व समूह लोकनृत्य का हुआ मंचन राज्य स्तरीय प्रतियोगिता के लिए हुआ कलाकारों का चयन पूर्णिया : कला, संस्कृति एवं युवा विभाग तथा जिला प्रशासन के संयुक्त तत्वावधान में मुख्यालय के कला भवन आयोजित दो दिवसीय युवा उत्सव […]

आयोजन. दो दिवसीय युवा उत्सव का समापन, कलाकारों ने मोहा मन

दूसरे दिन वक्तृता, नाट्य, समूह लोकगीत व समूह लोकनृत्य का हुआ मंचन
राज्य स्तरीय प्रतियोगिता के लिए हुआ कलाकारों का चयन
पूर्णिया : कला, संस्कृति एवं युवा विभाग तथा जिला प्रशासन के संयुक्त तत्वावधान में मुख्यालय के कला भवन आयोजित दो दिवसीय युवा उत्सव बुधवार को संपन्न हुआ. इस दौरान चाक्षुष व प्रदर्श कला की 16 विधाओं में एकल व समूह प्रतियोगिताओं का आयोजन हुआ. प्रदर्शन के आधार पर सभी विधाओं में अलग-अलग शीर्ष तीन प्रतिभागियों का चयन हुआ, जिन्हें जिला प्रशासन द्वारा सम्मानित किया गया. इसके अलावा सभी प्रतिभागियों को प्रशस्ति पत्र भी प्रदान किया गया. बताया गया कि प्रत्येक विधा में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले प्रतिभागी राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में शामिल होंगे. यह प्रतियोगिता दिसंबर माह के प्रथम सप्ताह में वैशाली जिला में आयोजित होगी.
इससे पूर्व प्रतियोगिता के दूसरे दिन वक्तृता, नाटक, समूह लोकगीत तथा समूह लोकनृत्य विधा में प्रतियोगिता हुई. जिसमें कलाकारों दर्शकों का खूब मन मोहा. प्रदर्शन के दौरान दर्शक तालियों की गूंज से कलाकारों का उत्साहवर्धन करते नजर आये.
सवा सेर गेहूं का मंचन कर कलाकारों ने बतायी िकसानों की समस्या
रेणु रंगमंच संस्थान के कलाकरों ने मुंशी प्रेमचंद द्वारा रचित सवा सेर गेहूं नाटक का मंचन राज कुमार के निर्देशन में किया. इस नाटक के माध्यम से ग्रामीण परिवेश में किसानों की समस्या को प्रदर्शित किया गया. बताया कि एक ओर जहां दूनिया लगातार विकास के पथ पर अग्रसर है, वही ग्रामीण किसान आज भी साहुकारों से कर्ज लेकर ही किसानी कर रहे हैं. कई किसानों की हालत तो इतनी बदतर हो जाती है कि कई पुश्तों तक कर्ज के एवज में उन्हें बंधुआ मजदूरी करनी पड़ती है. नाटक में युवा किसान शंकर एक महात्मा को भोजन कराने के लिए सवा सेर गेहूं एक साहुकार से लेता है और उसे चुकाने में उसकी स्थिति लगातार बद से बदतर होती चली जाती है. विजय म्यूजिक एकेडमी के कलाकारों ने सुमित कुमार व प्रवीण कुमार द्वारा रचित तथा उनके ही निर्देशन में जननी नाटक का मंचन किया. नाटक के माध्यम से आधुनिकता के बीच रिश्तों में आ रही दरार को प्रदर्शित किया गया. इसमें एक मां अपने बेटे को किसी प्रकार मेहनत मजदूरी कर पढ़ाती-लिखाती है. बाद में बेटा शहर कमाने जाता है और उसे एक लड़की से प्रेम हो जाता है. लड़की के प्रेम में पहले वह खुद को बर्बाद कर लेता है और बाद में अपनी मां की हत्या भी कर देता है. अपनी मां का दिल निकाल कर वह उस लड़की को दे देता है, लेकिन ठीक होने के बाद लड़की उस युवक से शादी से इनकार कर देती है. इसके बाद लड़के को अपनी मां का प्यार आता है. मां के अंतिम संस्कार के बाद वह लड़का भी पागल हो जाता है. प्रदर्श कला की विधाओं में निर्णायक पंडित उदय नारायण राय, पंडित अमरनाथ झा तथा अशोक सिंह राज थे. जबकि अनिल तिवारी व चंद्रकांत राय नाटक, वक्तृता और लोकगाथ विधा के निर्णायक थे. चाक्षुष कला में राजीव राज व किशोर कुमार उर्फ गुल्लू दा ने निर्णायक की भूमिका निभायी. मौके पर वरीष्ठ रंगकर्मी विश्वजीत कुमार सिंह, कुंदन कुमार सिंह आदि मौजूद थे
नाटक िवधा प्रतियोगिता में शािमल हुए चार दल
आयोजित प्रतियोगिता के दौरान नाटक विधा में कुल चार दल शामिल हुए. शकुंतला सेवा सदन धमदाहा के कलाकारों ने रामाशंकर स्वर्णकार के निर्देशन में लेखक डा रामनरेश भक्त द्वारा रचित चार बांस चौबीस गज नाटक का मंचन किया. नाटक के माध्यम से कलाकारों ने सन 1191 में पंजाब के भटिंडा के समीप तराइन मैदान में गोर के युद्ध तथा सन 1192 में तराइन मैदान में पृथ्वीराज चौहान व मो गौरी के बीच युद्ध को प्रदर्शित किया. युद्ध में गौरी बुरी तरह घायल हो गया, जिसके बाद पृथ्वी राज चौहान को दया आ गयी. उसने गौरी की मरहम-पट्टी भी करायी. पृथ्वीराज की पत्नी संयोजिता अपने पति को हमेशा खुश देखना चाहती है. वही युद्ध के बाद मिली हार के कारण गौरी अन्न-जल भी त्याग देता है. उसने कन्नौज के राजा जयचंद व पृथ्वीराज के मंत्री चंद्रचूड़ के साथ मिल कर अपने कुटिल चाल से दोबारा हमला किया और जीतने के बाद इस्लाम का झंडा गारते हुए पृथ्वीराज की आंखें निकलवा लीं.

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