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न्यायालय परिसर में नहीं है शौचालय

पूर्णिया कोर्ट : न्यायालय परिसर तथा उससे संबंधित संपूर्ण क्षेत्रों में आम जनता के लिए खास कर मुकदमागिरों के वास्ते एक भी शौचालय की व्यवस्था नहीं है बल्कि एक मूत्रालय है भी तो वह पांच वर्षों से काम के लायक है ही नहीं. इसके लिए बाहर जाकर समाहरणालय के बगल में शुल्क देकर जाते हैं […]

पूर्णिया कोर्ट : न्यायालय परिसर तथा उससे संबंधित संपूर्ण क्षेत्रों में आम जनता के लिए खास कर मुकदमागिरों के वास्ते एक भी शौचालय की व्यवस्था नहीं है बल्कि एक मूत्रालय है भी तो वह पांच वर्षों से काम के लायक है ही नहीं. इसके लिए बाहर जाकर समाहरणालय के बगल में शुल्क देकर जाते हैं सुलभ शौचालय. केंद्र की अथवा राज्य की सरकारें स्वच्छता अभियान की लाख दावा करे लेकिन हकीकत बहुत ही भयानक है.

खास कर पूर्णिया जैसे कमिश्नरी का दर्जा प्राप्त स्थानों पर अवस्थित न्यायालय जो करीब 9 से 10 एकड़ के विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है. यहां आज तक कोर्ट-कचहरी में मुकदमा लड़ने वाले तथा मुकदमागिरों के प्रतिनिधि के लिए अदद एक शौचालय व मूत्रालय तक मयस्सर नहीं जिससे लोगों की मूलभूत सुविधाओं की पूर्ति हो सके. गौरतलब है कि मुख्यमंत्री ने भी कुछ समय पहले सभी सार्वजनिक जगहों तथा प्रत्येक घर में सभी मूलभूत सुविधा जिसमें शौचालय खास थी बहाल करने की घोषणा की थी लेकिन पूर्णिया कोर्ट के लिए यह महज कागजी खानापूर्ति के अलावा कुछ भी नहीं है.

न्यायालय परिसर जैसे जगह में जहां हजारों-हजारों की संख्या में लोग रोजाना आते रहे हैं. उनके द्वारा जहां सरकार को रोज कम से कम 2 लाख रुपया प्रतिदिन से लेकर 5 लाख तक की राजस्व प्राप्त होती है वहीं उनके लिए सुविधा के नाम पर कुछ भी नहीं है. ना तो मूत्रालय है. एक मूत्रालय सीजेएम कोर्ट परिसर में है भी तो वह जगह-जगह से टूटा उखड़ा व उसका एक भी अंग काम करने में सक्षम नहीं है. ना ही कोई शौचालय और ना ही पीने के स्वच्छ पानी की कोई व्यवस्था है ना ही नाश्ता व खाने के लिए कोई भी सरकारी कैंटीन है. जबकि 2 वर्ष पूर्व एक कैंटीन बन कर तैयार भी है परंतु आज तक इसकी विधिवत शुरुआत भी एक यक्ष प्रश्न बन कर खड़ा हो गया है. कहने के लिए तो कहा जाता है कि इस कैंटीन के चालू होने से वकीलों व अन्य स्टाफो को रियायती दर पर सामान उपलब्ध होंगे पर वह आज तक शुरू ही नहीं किया गया जिससे न्यायालय परिसर के बाहर के होटलों व ढाबों की बल्ले-बल्ले है और वे चांदी काट रहे हैं. क्योंकि अगर न्यायालय परिसर के स्टाफ, अधिवक्ताओं तथा मुकदमागिरों को बाहर जाकर खाना अथवा नाश्ता करना पड़ता है अथवा पानी बोतलबंद खरीद कर पीना पड़ता है. इस मामले में हाल में आये मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी अवधेश कुमार ने मामले को देखते हुए शौचालय की व्यवस्था के प्रति जिला एवं सत्र न्यायाधीश को अवगत कराया वहीं जिला जज ने मामले की गंभीरता को देखते हुए भवन निर्माण विभाग के इंजीनियर को शौचालय निर्माण के दिशा में कदम उठाने के लिए कहा है जिससे मुकदमागिरों को मूलभूत सुविधा प्राप्त हो सके.

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