भूकंपीय तबाही के निशाने पर है सीमांचल का इलाका
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सावधान. भूकंप के प्रति पूरी तरह असंवेदनशील हैं लोग
भूकंपीय तबाही के निशाने पर है सीमांचल का इलाका खतरनाक : चौथे व पांचवें जोन में रखा गया है सीमांचल का इलाका कभी भी दिख सकता है यहां तबाही का मंजर, सिस्मिक जोन 5 में अररिया और किशनगंज है शामिल जोन 4 में पूर्णिया और कटिहार है अवस्थित, गत वर्ष अप्रैल और मई माह में […]
खतरनाक : चौथे व पांचवें जोन में रखा गया है सीमांचल का इलाका
कभी भी दिख सकता है यहां तबाही का मंजर, सिस्मिक जोन 5 में अररिया और किशनगंज है शामिल
जोन 4 में पूर्णिया और कटिहार है अवस्थित, गत वर्ष अप्रैल और मई माह में लगे थे कई झटके
बेतरतीब भवन निर्माण से स्थिति विस्फोटक
भूगोलवेत्ता हैरी हेस के अनुसार पृथ्वी के ऊपरी दृढ़ भूखंड को प्लेट कहा जाता है. दुनिया के सभी महाद्वीप इस प्लेट पर अवस्थित है. प्लेटों का हमेशा प्रवाह होते रहता है. प्रवाह की वजह से जब दो प्लेट आपस में टकराते हैं तो प्लेट के किनारे भूकंपीय घटनाएं घटित होती है. लगभग 85 फीसदी भूकंपीय घटनाएं प्लेट के टकराने से ही होती है
जो विनाशकारी होता है. जबकि प्लेटों के दूर जाने एवं रगड़ खाने से भी भूकंप आता है लेकिन इसकी तीव्रता कम होती है. बहरहाल जो भूकंप की घटनाएं हो रही है उसे यूरेशिया प्लेट और भारतीय प्लेट की टकराहट का नतीजा माना जाता है.
प्लेटों के टकराव से आता है भूकंप
भूगर्भशास्त्रियों ने भूकंपीय तीव्रता के आधार पर देश को पांच हिस्से में विभाजित किया है. भूकंप की तीव्रता सीसमोग्राफ नामक यंत्र पर मापी जाती है और तीव्रता की इकाई रिक्टर होती है. तीव्रता के आधार पर सीमांचल का इलाका पांचवें और चौथे जोन में रखा गया है. पांचवां और चौथा जोन महाभूकंप का इलाका कहलाता है. जोन पांच में अररिया और किशनगंज शामिल है. जबकि चौथे जोन में पूर्णिया और कटिहार का हिस्सा शामिल है.
जबकि पड़ोस का मधेपुरा, सहरसा और सुपौल जोन पांच में अवस्थित है. आशय यह है कि सीमांचल के इलाके में कभी भी बड़ी तबाही मच सकती है और वर्ष 1934 और वर्ष 1988 का मंजर दोबारा देखने को मिल सकता है. वर्ष 15 जनवरी 1934 में आये भूकंप में सीमांचल के इलाके में बड़ा नुकसान हुआ था. उस समय इसकी तीव्रता 8.4 आंकी आयी थी. जबकि 21 अगस्त 1988 को आये भूकंप में तीव्रता 6.6 आंकी गयी थी.
पूर्णिया : दिन बुधवार, तारीख 13 अप्रैल 2016, समय :7:28 शाम, भूकंपीय रिक्टर स्केल पर जिले में 6.8 का झटका महसूस किया गया. झटका ने महज 15 सेकेंड तक ही अपनी उपस्थिति दर्ज करायी, लेकिन अफरा-तफरी मच गयी और लोग अपने घरों से निकलने को बाध्य हुए. देर रात होते-होते स्थिति सामान्य हो गयी और गुरुवार को लोग भूकंप की घटना को भूल गये. यह हर बार की कहानी है, जब धरती कांपती है तो हम भी कांपते हैं और धरती सो जाती है तो हम भी सो जाते हैं.
यही वजह है कि कभी भी भूकंप से आगे की बात नहीं होती है. सीमांचल का इलाका भूकंपीय रिक्टर स्केल के निशाने पर है और सीमांचल वासी भूकंप के प्रति पूरी तरह असंवेदनशील हैं. यह विडंबना है और भविष्य में किसी बड़ी तबाही का संकेत भी है. दूसरी ओर इस आपदा के प्रति सरकारी स्तर पर केवल कागजी खानापूर्ति ही नजर आती है.
बिना योजना भवन निर्माण है बड़ा खतरा : सीमांचल में बीते एक दशक में कंक्रीटों का जाल तेजी से फैला है. सबसे बड़ी समस्या यह है कि बिना योजना के अवैज्ञानिक तरीके से भवनों का निर्माण हो रहा है. तमाम कवायद के बावजूद आज भी इस इलाके में 80 फीसदी लोड बियरिंग भवन का ही निर्माण हो रहा है जो बिना किसी गणना और वैज्ञानिक आधार के तैयार होता है. ऐसे भवन भूकंपीय रूप से संवेदनशील सीमांचल के इलाके के लिए असुरक्षित माना जाता है.
सिविल इंजीनियर विनोद कुमार के अनुसार इस इलाके के लिए फ्रेम स्ट्रक्चर आधारित भवन ही सुरक्षित है जो वैज्ञानिक और रिक्टर स्केल के आधार पर डिजाइन किया जाता है. श्री कुमार के अनुसार एक अन्य समस्या इस इलाके में यह है कि भवन निर्माण से पहले मिट्टी की जांच कराने की परिपाटी नहीं है. तीन मंजिल और उससे अधिक ऊंचे मकान के लिए मिट्टी जांच आवश्यक है ताकि उसके आधार पर सुरक्षित नींव का निर्माण किया जा सके.
लोगों में है जागरूकता का अभाव : सीमांचल के इलाके में जब भी भूकंप आया है जान-माल को नुकसान पहुंचा है. लेकिन इतिहास से सबक लेने की जरूरत ना तो आम लोग और ना ही प्रशासनिक अमला ही आवश्यक समझता है. प्रशासनिक उदासीनता का आलम यह है कि मौसम विभाग के पास भूकंप की तीव्रता मापने के लिए भूकंपमापी यंत्र भी नहीं है. जानकारी अनुसार पूर्णिया कॉलेज में दो दशक पूर्व सीसमोग्राफ यंत्र लगाया गया था. जो लगाने के कुछ महीने बाद ही खराब हो गया जो आज भी खराब पड़ा हुआ है.
प्रशासनिक स्तर पर वर्ष में एक बार 15 जनवरी से 20 जनवरी तक भूकंप सुरक्षा सप्ताह मना कर यह मान लिया जाता है कि लोग जागरूक हो गये हैं और भूकंप का खतरा काफी हद तक टल गया है. लेकिन 15 जनवरी के मतलब क्या हैं और उस दिशा में अब तक लोग खुद को कितना सुरक्षित कर पाये हैं यह जानने और इस पर विचार करने की जरूरत कोई नहीं महसूस करता. जबकि सुरक्षा सप्ताह का आशय सुरक्षा के प्रयासों को गतिशील बनाये रखने से है.
लेकिन यहां गतिशीलता पर खानापूर्ति हावी है.
फिर भूकंप का आया मौसम : वर्ष 1934 और 1988 से आगे बढ़कर अगर वर्ष 2015 की बात करें तो ऐसा प्रतीत होता है कि एक बार फिर भूकंप का मौसम आ गया है. इस मौसम से निबटने के लिए और इसका सामना करने के लिए हम कितना तैयार हैं, यह बहस का विषय हो सकता है. याद कीजिए वर्ष 2015 का 25 अप्रैल और 26 अप्रैल जब सीमांचल के साथ-साथ कोसी के इलाके में भी धरती कांपी थी और पड़ोस के नेपाल में तबाही का ऐसा मंजर आया कि लोग सदियों उसे भूला नहीं पायेंगे.
25 अप्रैल को भूकंप की तीव्रता 7.9 और 26 अप्रैल को तीव्रता 6.7 मापी गयी थी. इसके बाद 12 मई, 13 मई और 16 मई को भी आये भूकंप के झटके में साबित कर दिया कि सीमांचल का यह इलाका भूकंपीय तबाही के निशाने पर है. 12 मई को भूकंप की तीव्रता 7. 3, 13 मई को 4.2 और 16 मई को 5.7 अंकित हुई थी.
अब 13 अप्रैल को 6.8 की तीव्रता इस बात की ताकीद कर रहा है कि विकास की अंधी दौड़ में हम महाप्रलय की दहलीज पर खड़े हैं, यह दीगर बात है कि उसकी आहट को हम अनसुनी कर रहे हैं.
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