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नकली खाद प्रकरण. विभाग को उठाने होंगे कड़े कदम, नहीं तो

यही हाल रहा, तो बंजर हो जायेंगे पूिर्णया के खेत कृिष भूमि में लगातार हो रहे खाद के इस्तेमाल से िमट्टी की उर्वरा शक्ति घटती जा रही है. मुसीबत तो यह है िक खाद के धंधे में काले कारोबारियों ने असली की जगह नकली खाद बेचनी शुरू कर दी है. पूर्णिया : अगर नहीं थमा […]

यही हाल रहा, तो बंजर हो जायेंगे पूिर्णया के खेत

कृिष भूमि में लगातार हो रहे खाद के इस्तेमाल से िमट्टी की उर्वरा शक्ति घटती जा रही है. मुसीबत तो यह है िक खाद के धंधे में काले कारोबारियों ने असली की जगह नकली खाद बेचनी शुरू कर दी है.
पूर्णिया : अगर नहीं थमा नकली खाद व कीटनाशक का कारोबार तो अगले पांच वर्षों में जिले की अधिकांश कृषि योग्य जमीन बंजर हो जायेगी. किसान खेती तो करेंगे, लेकिन उन्हें अंतत: निराशा ही मिलेगी. इस असर की शुरूआत अब हो चुकी है. न केवल इस जिले में, बल्कि आसपास के जिलों में भी नकली खाद का असर कम उत्पादकता के रूप में सामने आने लगी है. कृषि
वैज्ञानिकों के अनुसार मौसम में बदलाव के साथ फसलों के नुकसान में नकली खाद का होना भी एक बड़ा कारण है. जिले में खेतिहर जमीन की जो स्थिति है, उसमें अम्लीय स्वभाव वाले मिट्टी की अधिकता है. उपर से अगर खेतों के मिट्टी में नमक, रंग व बालू मिलता है तो इस तत्वों का बढ़ना स्वाभाविक है. ऐसे में खेती में उत्पादन क्षमता घटेगी और जमीन की उर्वरा शक्ति भी क्षीण होगी, जो खेतिहर जमीन एवं किसानों के हित में नहीं होगा.
तेलहन की फसलें पहले से ही है प्रभावित
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार जिले की खेती मिट्टी में अम्लीयता की वजह से, खासकर दलहन की खेती प्रभावित होती रही है. उपर से खादों के नकली होने और उसके प्रयोग से खेतों में मौजूद पोषक तत्व जो 16 से 17 प्रतिशत होना चाहिए, वह भी क्षीण हो रहा है. बालू, रंग और नमक के मिश्रण से बने खाद का प्रयोग मौजूद पोषक तत्वों को और प्रभावित करेगा. इसका परिणाम यह होगा कि दलहन की फसल का उत्पादन तो दूर, अन्य फसलें भी प्रभावित हो जायेगी.
कई हो गये करोड़ी, रखते हैं रसूख
नकली खाद के खेल में भले ही किसान विवश व लाचार हो रहे हो, लेकिन इस खेल के कई खिलाड़ी करोड़पति बन गये हैं. इनके रसूख के आगे तमाम तरह का काला धंधा वक्त के साथ ठंडे बस्ते में चला जाता है. बीच-बीच में कार्रवाई तो होती है, लेकिन बलि का बकरा प्यादे बनते हैं और कानून के लंबे हाथ इन सफेदपोशों तक पहुंचने से पहले ही रूक जाते हैं. अलबत्ता इनका खेल जारी है और कई मोर्चे पर अपना साम्राज्य फैला रखा है. वहीं ईमानदारी से काम करने वाले कारोबारियों को भी शक के घेरे में भी गुजरना पड़ता है और कारोबारी क्षति उठानी पड़ती है.
कई बार उठी आवाज फसलें हुईं प्रभावित
बीते एक दशक में मक्का, गेहूं, धान, सब्जी आदि फसलों के पौधों में बढ़ोतरी, दाना नहीं आना तथा अंकुर नहीं आने को लेकर कई बार आवाजें उठी है. यह आवाज कभी मुद्दा नहीं बन सका. दरअसल किसानों की यह समस्या कभी राजनीतिक दलों के लिए भी आंदोलन का विषय नहीं बन सका है. किसान की शिकायतें महज बीज की गुणवत्ता और मौसम के परिवर्तन के साथ खेती के तरीकों तक ठहर गया. विडंबना तो यह है कि समस्या के एक महत्वपूर्ण घटक नकली खाद पर कभी किसी की नजर नहीं गयी है.
काले कारोबािरयों पर नकेल नहीं
नहीं लगी रोक, तो िकसान खेती तो करेंगे, पर हाथ लगेगी महज निराशा ही
नकली खाद की वजह से आयेदिन फसलों के पौधों में बढ़ोतरी न होना, दाना न आना, अंकुर न आने जैसी आती हैं शिकायतें
कृषि क्षेत्र में सरकार जैविक खाद से लेकर सब्सिडी और वैज्ञानिक पद्धति से उन्नत कृषि और अधिकतम उत्पादन पर करोड़ों खर्च कर रही है. किसानों को फसल बीमा, क्रेडिट कार्ड के साथ खेतों की मिट्टी जांच के बाद खेतों की उत्पादन क्षमता बढ़ाने पर करोड़ों-अरबों रूपये खर्च किये जा रहे हैं.
लेकिन नकली खाद के कारोबारियों पर मजबूत नकेल नहीं कसे जाने से सभी प्रयास कहीं न कहीं प्रभावित हो रहे हैं. बड़ा सवाल यह है कि कृषि रोड मैप के तहत कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा माथापच्ची तो की जाती है, लेकिन नकली खाद के कारोबारियों पर नकेल कसने का प्रयास अब तक सिफर रहा है. जानकार इसकी वजह यह बताते हैं कि इस धंधे में कई सफेदपोश शामिल हैं, जो लंबे समय से राजनीति से भी जुड़े हुए हैं.

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