दवा के काले कारोबार में औषधि नियंत्रण विभाग मालामाल ! खास बातें-जिले में लगभग 300 फार्मासिस्ट चलाते हैं 2500 दवा दुकान-मुंह मांगे दामों में बेची जाती है दवा दुकान का लाइसेंस-उगाही राशि का होता है बंदर बांट-प्रशासनिक जांच से खुलेगी विभाग की कलई—————–पूर्णिया. लाइसेंस आवंटन और फार्मासिस्ट के जुगाड़ में पूर्णिया औषधि नियंत्रण विभाग अव्वल है. विभाग ने हर एक काम के लिए अलग-अलग रेट निर्धारित कर रखा है. इससे विभाग को हर महीने लाखों रुपये की काली कमाई होती है. इसकी वजह यह ही है कि औषधि नियंत्रण विभाग पर स्वास्थ्य विभाग का सीधा नियंत्रण नहीं होता है. इस वजह से उसकी मनमानी पर अंकुश नहीं लग पाता है. जानकारी के अनुसार जिले में मात्र तीन सौ के आस-पास फार्मासिस्ट है. ऐसे में अब सवाल उठना लाजिमी है कि जिले में 2500 के आस-पास दवा दुकानें कैसे संचालित हो रही हैं. वहीं जानकारों का मानना है कि अवैध और प्रतिबंधित दवा की बिक्री का सबसे बड़ा संरक्षक औषधि नियंत्रण विभाग ही है. इसकी वजह यह है कि औषधि निरीक्षकों को प्रति छह माह पर एक निर्धारित रकम दवा दुकानदारों से सुविधा शुल्क के रूप में प्राप्त होती है. लाइसेंस बिकता है, बोलो खरीदोगेऔषधि निरीक्षण विभाग में बहुत ही खुल्लम खुल्ला दवा का लाइसेंस बेचा जाता है. दवा दुकान खोलने के इच्छुक लोगों से अस्पताल गेट के समक्ष एक पान दुकान से फार्म खरीदने को कहा जाता है. दुकान खोलने की अहर्ताओं को पूरी नहीं करने के बावजूद उन्हें लाइसेंस ऑथोरिटी से लाइसेंस बना कर दे दिया जाता है. जानकारों के अनुसार एक नये दुकान का लाइसेंस बनाने में 21 हजार रुपये खर्च करने होते हैं. इस 21 हजार रुपये में तीन हजार सरकारी शुल्क , दस हजार यहां के आला अधिकारी,पांच हजार औषधि निरीक्षक एवं तीन हजार रुपये में कार्यालय के लिपिक एवं चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी शामिल होते हैं. यदि इच्छुक दुकान दार के पास फार्मासिस्ट धारक नहीं है तो उसके लिए भी अलग से छह हजार रुपये खर्च करने होते हैं. 300 फार्मासिस्ट और दुकान 2500जानकारी अनुसार पूरे जिले में महज 300 फार्मासिस्ट ही है. विभागीय व्यवस्था से जिले में छोटे-बड़े 2500 के आस-पास दवा दुकानें संचालित हैं. यदि आंकड़ों पर गौर करें तो एक फार्मासिस्ट के लाइसेंस पर जिले के लगभग आठ से अधिक दुकानें चल रही हैं. जबकि प्रावधानों के अनुसार एक फार्मासिस्ट को एक ही दुकान में सदेह दवा का रख रखाव करना है और स्टॉक की कमान संभालनी है. लेकिन ऐसा प्रत्यक्ष रूप से नहीं होता है. दरअसल दवा दुकानों को इस तरह की सुविधा के मामले में छूट औषधि निरीक्षकों की ओर से ही प्रदान की जाती है और इसी एवज में सुविधा शुल्क भी लिया जाता है. जांच तो बहाना, उद्देश्य माल कमाना विभाग की ओर से नियमित जांच तो अक्सर होती है. जानकार बताते हैं कि खुदरा दुकान के जांच के दौरान दुकान का आधा शटर गिरा रहे तो समझे औषधि निरीक्षक की जांच चल रही है. इस जांच का उद्देश्य भय दिखा कर सिर्फ और सिर्फ माल कमाना होता है. सभी औषधि निरीक्षक जिले में चल रहे दवा दुकानों से लाखों रुपये की उगाही कर लेते हैं. एक दवा दुकानदार ने नाम नहीं छापने के शर्त पर बताया कि सभी अहर्ताओं को पूरी करने के बावजूद भी तब तक लाइसेंस नहीं दिया गया,जब तक कि लाइसेंस के लिए 21 हजार रुपये जमा नहीं किया जाता है. प्रशासन करे जांच तो कई रहस्य होंगे उजागरजानकारों के मुताबिक प्रतिबंधित एवं नकली दवाओं के माफियाओं पर नकेल डालने से पहले औषधि नियंत्रण विभाग पर नकेल डालने की आवश्यकता है. अन्यथा प्रशासन की ओर से चलाया जा रहा छापामारी अभियान केवल खानापूर्ति बन कर रह जायेगा. दवा कारोबार के जानकारों ने बताया कि औषधि नियंत्रण विभाग के काले कारनामों पर से परदा हटाने के लिए सबसे पहले प्रशासन को एक टीम बना कर जांच करानी चाहिए . जिसमें स्पष्ट हो जायेगा कि जिले में सात गुणा दुकान विभागीय मेहरबानी से चल रही है. चर्चा तो यह भी है लूट के इस खेल में बड़े-छोटे सबों की भागीदारी है. कहते हैं अधिकारीलाइसेंसिंग ऑथोरिटी का संपर्क नंबर हम नहीं दे सकते हैं. अच्छा होगा इस संबंध में सिविल सर्जन से बात कर लें. नीरज कुमार मानस,औषधि निरीक्षक,पूर्णियाकहते हैं सिविल सर्जनइस बात का जवाब ड्रग नियंत्रण विभाग के लाइसेंसिंग ऑथोरिटी ही दे सकता है. यह विभाग हमारे नियंत्रण में नहीं है. डॉ एमएम वसीम,सिविल सर्जन,पूर्णियाफोटो 18 पूर्णिया 8परिचय-दवा अपराधी का प्रतीकात्मक तस्वीर
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दवा के काले कारोबार में औषधि नियंत्रण विभाग मालामाल !
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