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लॉटरी के काले कारोबार में मालामाल हो रहे सफेदपोश
पूर्णिया: दशकों से जारी गेसिंग के कारोबार पर क्या सचमुच पूरी तरह अंकुश लग पायेगा! या फिर कुछ दिनों के हंगामे के बाद मामला ठंडे बस्ते में चला जायेगा, यह लोगों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है. क्योंकि अवैध लॉटरी के कारोबारियों की लंबी फौज है और इस फौज में सैकड़ों लोग शामिल […]
पूर्णिया: दशकों से जारी गेसिंग के कारोबार पर क्या सचमुच पूरी तरह अंकुश लग पायेगा! या फिर कुछ दिनों के हंगामे के बाद मामला ठंडे बस्ते में चला जायेगा, यह लोगों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है. क्योंकि अवैध लॉटरी के कारोबारियों की लंबी फौज है और इस फौज में सैकड़ों लोग शामिल हैं. वहीं पूरे नेटवर्क को सफेदपोशों का संरक्षण प्राप्त है, जो लॉटरी के काले कारोबार में मालामाल हो रहे हैं. पुलिस की हालिया सफलता से लोगों की उम्मीदें बंधी हैं, लेकिन संशय बरकरार है. क्योंकि काले कारोबारियों के हाथ लंबे हैं.
कारोबार से जुड़े हुए हैं कई गुट
लॉटरी के कारोबार में खुश्कीबाग में ही कई गुट सक्रिय हैं. इस धंधे से जुड़ने वाले लोगों की संख्या में हर रोज इजाफा हो रहा है. वजह यह है कि इस कारोबार ने कई सड़क छाप लोगों की लाइफ स्टाइल ही बदल डाली है. इस धंधे से जुड़े कई लोग महंगे लग्जरी वाहनों के मालिक बन बैठे हैं. बीते दिनों गिरफ्तार सन्नी सिन्हा के अलावा मामले में फरार विकास चौहान के अपने-अपने गुट हैं. इसके अलावा कई लोग पर्दे के पीछे से भी इस धंधे में शामिल हैं.
मुजफ्फरपुर-बंगाल से आती है लॉटरी
विभिन्न नामों की लॉटरी पश्चिम बंगाल के रायगंज, सिलीगुड़ी और इस्लामपुर से पूर्णिया पहुंचती है. खुश्कीबाग इस काले कारोबार का मुख्य केंद्र है. यहां से जिले के विभिन्न हिस्से में लॉटरी को भेजा जाता है. रविवार को जो लाखों रुपये मूल्य की लॉटरी पुलिस ने जो बरामद की वह मुजफ्फरपुर से लायी गयी थी. जानकारों के अनुसार मुजफ्फरपुर में लॉटरी की छपायी हुई है. लॉटरी का खुदरा कारोबार शहर में बस स्टैंड, टैक्सी स्टैंड, फारबिसगंज मोड़, गिरजा चौक, राम बाग, जीरो माइल आदि क्षेत्रों में भी होता है.
हथियार बने हैं बेरोजगार युवक
इस धंधे से जुड़े सरगना सोची-समझी साजिश के तहत शिक्षित बेरोजगारों को अपना हथियार बना रखा है. एक गुट में सैकड़ों युवक शामिल रहते हैं. जानकारी अनुसार पहले इन युवकों को गेसिंग का चस्का लगाया जाता है और फिर धीरे-धीरे उसे वितरण के धंधे से जोड़ दिया जाता है. अच्छी खासी आमदनी होने के कारण इससे जुड़ने वाले लोग फिर वापस नहीं लौटना चाहते हैं.
सफेदपोशों का है संरक्षण प्राप्त
कम लागत में अधिक मुनाफा गेसिंग धंधे का मूल फंडा है. यही वजह है कि धंधे से जुड़े कारोबारियों के संरक्षक सफेदपोश बने हुए हैं. ऐसा नहीं है कि पुलिस कार्रवाई नहीं करती है. लेकिन जेल से कुछ दिनों के बाद बाहर आ कर धंधा का संचालन पूर्ववत होने लगता है. वहीं धंधे से जुड़े लोगों के ऐसे नेटवर्क हैं कि पुलिस की कार्रवाई से पहले ही उन्हें इसकी भनक लग जाती है. इस प्रकार उनका धंधा सदा बहार बना हुआ है.
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