पूर्णिया : वक्त बीतने के साथ-साथ जिला मुख्यालय स्थित आरकेके कॉलेज मधुबनी के कॉलेज प्रबंधन की कलई खुलती जा रही है. अब तक कॉलेज से जुड़ी जो भी जांच रिपोर्ट सामने आयी है, उससे साफ होता है कि आरकेके कॉलेज शिक्षा माफियाओं का गढ़ बना हुआ था, जहां से कई अन्य महाविद्यालयों में नामांकन से लेकर पास कराने तक का कारोबार फल-फूल रहा था. कुल मिला कर कहा जाये कि आरकेके कॉलेज की हैसियत मिनी विश्वविद्यालय की थी तो अतिश्योक्ति नहीं होगी.
स्नातक पार्ट वन की परीक्षा दूसरी बार स्थगित होने के बाद पूर्णिया के जिलाधिकारी प्रदीप कुमार झा ने विश्वविद्यालय के कुलपति को जो पत्र भेजा है, उससे विश्वविद्यालय और कॉलेज प्रबंधन सवालों के घेरे में है. सच भी है कि जिस तरह का फर्जीवाड़ा महाविद्यालय में संचालित हो रहा था, वह बिना विश्वविद्यालय कर्मियों की संलिप्तता के बिना संभव नहीं है. वहीं डीएम के निर्देश पर जिला शिक्षा पदाधिकारी मिथिलेश कुमार ने जो पूरे प्रकरण की जांच की है,
उसमें भी विश्वविद्यालय और कॉलेज प्रबंधन की मंशा पर सवाल उठाये गये हैं. दूसरी तरफ शिक्षा माफियाओं के इस खेल में छात्रों का भविष्य बर्बाद हो रहा है. विडंबना यह है कि इस कारगुजारी के लिए जिम्मेदार कौन है, यह सवाल आज भी हाशिये पर है.
डीएम ने विश्वविद्यालय की मंशा पर उठाये सवाल
29 अक्तूबर को बीएन मंडल विश्वविद्यालय के कुलपति को भेजे गये पत्र में डीएम प्रदीप कुमार झा ने बिंदुवार जानकारी देते हुए कहा है कि सबसे पहले 14 अक्तूबर और 15 अक्तूबर को प्रवेश पत्र नहीं मिलने पर छात्रों ने हंगामा किया था और परीक्षा की तिथि बढ़ायी गयी थी. परंतु आरकेके कॉलेज के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की गयी और न ही छात्रों की समस्या का हल निकाला गया. बिना छात्रों की समस्या को हल किये बगैर 30 अक्तूबर से परीक्षा की तिथि निकाल दी गयी.
जिस वजह से 29 अक्तूबर को फिर 800 से अधिक प्रवेश पत्र से वंचित छात्रों ने हंगामा किया, जिससे विधि-व्यवस्था की समस्या उत्पन्न हुई. डीएम कहते हैं कि अब तक की जांच-पड़ताल से स्पष्ट है कि उक्त मामले में विश्वविद्यालय के कर्मियों के मिलीभगत होने से इनकार नहीं किया जा सकता है.
अधर में लटका पड़ा है छात्रों का भविष्य
बीएनएमयू हमेशा से विलंब सत्र की वजह से जाना जाता रहा है. स्याह सच यह है कि स्थापना के ढ़ाई दशक बाद भी शैक्षणिक सत्र नियमित नहीं हो सका है. जिस स्नातक प्रथम पार्ट की परीक्षा दूसरी बार स्थगित की गयी है, उसका शैक्षणिक सत्र वर्ष 2015-16 है. अर्थात नियमित रूप से अगर सत्र का संचालन होता तो जुलाई 2018 में इस सत्र के परीक्षार्थी स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण कर लेते. लेकिन विडंबना यह है कि जुलाई 2018 तक इस सत्र के छात्र प्रथम पार्ट की परीक्षा भी पास कर सकेंगे कि नहीं, इस पर संशय बरकरार है. खास बात यह है कि इस सत्र के बाद प्रथम पार्ट में सत्र 2016-17 और सत्र 2017-18 के छात्रों का भी नामांकन हो चुका है. ऐसे में इन छात्रों का भविष्य क्या होगा, सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है.
आरकेके कॉलेज बना रहा मिनी विश्वविद्यालय
आरकेके कॉलेज प्रकरण की जांच के लिए जिलाधिकारी ने 16 अक्तूबर को जिला शिक्षा पदाधिकारी मिथिलेश प्रसाद को जांच का जिम्मा सौंपा. डीइओ ने आरकेके कॉलेज पहुंच कर मामले की जांच की. डीइओ ने अपने जांच प्रतिवेदन में कहा है कि जब वे कॉलेज पहुंचे तो कॉलेज के कर्मियों द्वारा छात्र-छात्राओं को प्रवेश पत्र उपलब्ध कराया जा रहा था. हैरानी की बात यह थी कि महाविद्यालय में आरकेके महाविद्यालय के प्रवेश पत्र के अलावा रतिक लाल इंद्रानंद कॉलेज खुश्कीबाग, एससीबी इवनिंग कॉलेज पूर्णिया और किसान डिग्री कॉलेज सिसौना जोकीहाट अररिया का भी प्रवेश पत्र बांटा जा रहा था.
डीइओ के अनुसार जांच के दौरान प्राचार्य को बुलाने पर भी वे महाविद्यालय में उपस्थित नहीं हुए.
जहां कराया नामांकन, वहीं हुआ परीक्षा केंद्र : यह बात पहले ही स्पष्ट हो चुका है कि आरकेके कॉलेज प्रबंधन द्वारा क्षमता से अधिक छात्रों का नामांकन लिया जाता था और उसे फिर दूसरे कॉलेजों के माध्यम से परीक्षा का फॉर्म भरवाया जाता था. जांच के क्रम में डीइओ को मुन्ना उरांव नाम के छात्र ने बताया कि उसने आरकेके कॉलेज में अपना नामांकन कराया था और यहीं आकर परीक्षा का फॉर्म भी भरा था. जबकि जब प्रवेश पत्र मिला तो उसमें महाविद्यालय का नाम किसान डिग्री कॉलेज सिसौना जोकीहाट अररिया अंकित था और उसका परीक्षा केंद्र आरकेके महाविद्यालय मधुबनी था. डीइओ अपने जांच प्रतिवेदन में कहते हैं कि इस प्रकार स्पष्ट है
कि कॉलेज प्रबंधन द्वारा छात्र-छात्राओं से अपने महाविद्यालय में नामांकन, परीक्षा आवेदन पत्र भरने तथा अन्य महाविद्यालय से मिलीभगत कर नामांकन और परीक्षा आवेदन पत्र भरा कर अपने महाविद्यालय में परीक्षा केंद्र निर्धारित करवा कर फर्जीवाड़ा करने से इनकार नहीं किया जा सकता है. डीइओ कहते हैं कि पूरे मामले के सुक्ष्म अनुसंधान के साथ-साथ कॉलेज प्रबंधन के विरुद्ध अनुशासनिक कार्रवाई की भी अनुशंसा विश्वविद्यालय से की जा सकती है.