पटना: जिस महादलित व्यक्ति के उत्पीड़न को लेकर आरोपित के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया. उस उत्पीड़ित व्यक्ति को भी पता नहीं था कि उसकी शिकायत पर कोई मुकदमा भी चल रहा है. हद तो तब हो गयी जब उक्त थानेदार और दारोगा ने इस मामले में फर्जी आरोप पत्र भी कोर्ट में दायर कर दिया. यह सनसनीखेज मामला बिहार मानवाधिकार आयोग के समक्ष आया है.
बिहार मानवाधिकार आयोग के सदस्य नीलमणि ने बुधवार को राज्य के गृह सचिव आमिर सुबहानी और डीजीपी अभयानंद को पत्र लिखकर पूछा है कि क्यों नहीं दोनों पुलिस पदाधिकारियों के खिलाफ फर्जी हस्ताक्षर कर फर्जी मुकदमा चलाने और कोर्ट में फर्जी आरोप पत्र दायर करने के मामले में आपराधिक मुकदमा दर्ज कराया जाये.
कोर्ट में आरोपपत्र भी दाखिल
दरअसल, जहानाबाद के घोसी थाना के तत्कालीन थानाध्यक्ष उमेश सिंह और जांच अधिकारी सह दारोगा धरमपाल ने फर्जी हस्ताक्षर पर कपिल मोची नामक व्यक्ति को शिकायतकर्ता बनाया और थाने में मामला दर्ज कर लिया. इस मामले में तत्कालीन थानाध्यक्ष ने धनेश्वर शर्मा उर्फ बुधन शर्मा समेत कुल चार लोगों को अभियुक्त बनाया था और इस मामले में कोर्ट में आरोप पत्र भी दाखिल कर दिया.
बिहार मानवाधिकार आयोग के सदस्य नीलमणि ने बताया कि इस मामले में जब अरवल के एएसपी से सुपरविजन रिपोर्ट मांगी गयी तो कपिल मोची ने मुकदमे पर अपने हस्ताक्षर को ही नकली करार दे दिया.
थानाध्यक्ष व दारोगा निलंबित
आयोग के संज्ञान में इस मामले के आते ही घोसी थाने के तत्कालीन थानाध्यक्ष उमेश सिंह और दारोगा धरमपाल को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है. फिलहाल उमेश सिंह दरभंगा में तथा धरमपाल मधुबनी में पदस्थापित हैं. इस मामले में आयोग ने दोनों पुलिस पदाधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्यवाही शुरू करने तथा इस मामले पर गृह सचिव व डीजीपी को 31 मई तक आयोग के समक्ष अपनी रिपोर्ट पेश करने को कहा है. साथ ही दोनों वरिष्ठ पदाधिकारियों से पूछा है कि क्यों नहीं किसी निदरेष व्यक्ति को गलत ढंग से मुकदमें में फंसाने और उसे मानसिक प्रताडना दिये जाने को लेकर उसे 50 हजार रुपये का मुआवजा दिया जाये.