इसके तहत यह कहा गया है कि सभी सरकारी कार्यालयों में एक महीने के अंदर इलेक्ट्रॉनिक प्री-पेड मीटर लगाये जायेंगे. फिलहाल राज्य के सभी बड़े कार्यालयों में यह पहल शुरू की जायेगी. इसके बाद इसे सभी कार्यालयों में एक समान रूप से लागू कर दिया जायेगा. सरकारी कार्यालयों में करोड़ों रुपये का बिजली बिल बकाया होने की समस्या को लेकर मुख्य सचिव के स्तर पर इसकी गहन समीक्षा की गयी है. इसके बाद यह निष्कर्ष निकाला गया है.
इससे वह जिला फोरम की लंबी और सुस्त न्याय प्रक्रिया से निराश होकर रोने लगे, जब उनसे रोने की वजह पूछा गया, तो उन्होंने बताया कि वह बक्सर जिले के दुलारपुर पंचायत के सिमरी खैरा पट्टी गांव के निवासी है. वर्ष 2000 में बिजली कनेक्शन के उद्देश्य से कार्यालय में आवेदन दिये. जहां, कर्मचारी ने उनके बिजली कनेक्शन के नाम पर 500 रुपया लिया. पर इसके बदले न तो राजनारायण से उनके घर के कागजात मांगें गये और न ही उन्हें 500 रुपये लेने की कोई रशीद दी गयी. इसके बाद उन्हें यह कह कर भेज दिया गया कि बिजली का कनेक्शन कुछ महीने में मिल जायेगा. लेकिन, पांच वर्ष तक उन्हें कनेक्शन नहीं दिया गया.
बिजली कार्यालय के कर्मी यह कह कर टहलाते रहे कि उसके घर तक बिजली के पोल नहीं गये हैं. लेकिन, इसी बीच वर्ष 2005 में राजनारायण को बिजली विभाग ने 6,500 का बिजली बिल भेज दिया. इसकी शिकायत करने पर भी किसी प्रकार की सूचना राजनारायण को नहीं दी गयी, पर बिल लगातार जारी रहा. उन्हें विभाग ने 13,000 का बिल भेज दिया था. इसके बाद 2005 में राजनारायण ने जिला उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज करायी. नौ वर्षों तक जिला फोरम में केस चलने के बाद राजनारायण केस हार गये. इसके बाद उन्होंने अपील फाइल की, जहां उनकी सुनवाई की जा रही है. पर अपील में भी राजनाराण के पास बिजली कर्मी को 500 रुपये देने का कोई सबूत नहीं हो पाने के क्रम में उन्हें निराशा ही हाथ लगती दिखायी दे रही है. उन्होंने बताया कि कोर्ट भी गरीबों की नहीं सुन रही है, जब मेरे घर बिजली कनेक्शन दिया ही नहीं गया, तो मुझे बिल कैसे भेज दिया गया है. इसका जवाब मांगने के बजाय कोर्ट मुझसे ही सवाल कर रही है.