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अब लोग गांव के पते के साथ इंगलिश नहीं जोड़ते

मोकामा की इंगलिश बस्तियां : नाम बदला पर पहचान नहीं बदली मोकामा में चार इंगलिश बस्तियां हैं़ इनमें मरांची इंगलिश, मोर इंगलिश, ममरखाबाद इंगलिश व रैली इंगलिश शामिल हैं. इन बस्तियों का निर्माण अंगरेजों के शासनकाल में हुआ था़ हां, आज इन बस्तियों का स्वरूप बदल गया है़, पर आज भी ये बस्तियांब्रिटिश हुकूमत की […]

मोकामा की इंगलिश बस्तियां : नाम बदला पर पहचान नहीं बदली
मोकामा में चार इंगलिश बस्तियां हैं़ इनमें मरांची इंगलिश, मोर इंगलिश, ममरखाबाद इंगलिश व रैली इंगलिश शामिल हैं. इन बस्तियों का निर्माण अंगरेजों के शासनकाल में हुआ था़ हां, आज इन बस्तियों का स्वरूप बदल गया है़, पर आज भी ये बस्तियांब्रिटिश हुकूमत की याद दिलाती हैं़ आज हम आपको ममरखाबाद इंगलिश और रैली इंगलिश के बारे में बता रहे हैं
ममरखाबाद इंगलिश : 1787 बीघे की थी जागीर
आजादी के बाद ममरखाबाद इंगलिश का नाम बदल कर ममरखाबाद, मेकरा बुजुर्ग, समसी आदि कर दिया गया. अब लोग घर के पते पर गांव के नाम के साथ इंगलिश नहीं जोड़ते, लेकिन इलाके की पहचान आज भी इंगलिश बस्ती के रूप में ही होती है. जानकारी के मुताबिक ममरखाबाद इंगलिश में 1787 बीघे की जागीर थी. रिटायर दर्जनों सैनिकों को यह जागीर उपहार में मिली, लेकिन अधिकतर सैनिक जमीन बेच कर अपने प्रदेश चले गये.
हालांकि, बस्ती में अंगरेज सैनिकों का कैंप लगा रहा. एक-दो सैनिकों के वंशज आज भी बस्ती में मौजूद हैं. 70 वर्षीय शिवबालक प्रसाद ने बताया कि भारतीय लोगों पर अंकुश रखने के लिये अंगरेजों ने प्रमुख गांवों में अपनी बाड़ी बनानी शुरू की थी, जिसको लेकर गांव का वह भाग इंगलिश नाम से जाना जाने लगा. ममरखाबाद डेढ़ हजार से ज्यादा लोग हैं. ज्यादातर लोग बनिया समुदाय से आते हैं. मुख्य पेशा खेती व व्यापार है.

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