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इतने ही आंसर दिये जाते हैं कि सरकारी कॉलेज मिल जाये
135 से 140 अंक देकर नीट में की जाती है सेटिंग पटना : कट ऑफ मार्क्स कितना तक जा सकता है. कितने अंकों के उत्तर देने पर सरकारी कॉलेज में नामांकन हो जायेगा. इसे पता करने के बाद शुरू होता है अांसर देने का खेल. अभ्यर्थी को उतने ही अंक के उत्तर उपलब्ध करवाये जाते […]
135 से 140 अंक देकर नीट में की जाती है सेटिंग
पटना : कट ऑफ मार्क्स कितना तक जा सकता है. कितने अंकों के उत्तर देने पर सरकारी कॉलेज में नामांकन हो जायेगा. इसे पता करने के बाद शुरू होता है अांसर देने का खेल. अभ्यर्थी को उतने ही अंक के उत्तर उपलब्ध करवाये जाते हैं, जिससे उन्हें सरकारी मेडिकल कॉलेज में नामांकन मिल जाये. नीट परीक्षा में भी सेटर कुछ ऐसा ही फॉर्मूला अपनाते हैं. इस बार भी ऐसा ही कुछ किया गया है. सेटर ने 135 से 140 अंक तक के उत्तर तैयार किये थे. उत्तर देने में इसका पूरा ख्याल रखा जाता है कि पूरे प्रश्नों के जवाब नहीं दिये जाये.
पढ़नेवाले ही होंगे टॉपर सेटिंगवाले नहीं
जो पढ़नेवाले अभ्यर्थी हैं, वहीं टॉपर होंगे. इसका पूरा अंदाजा सेटर को होता है. इस कारण परीक्षा के पूर्व ही सेटर अभ्यर्थी से प्रश्नों की डिलिंग कर लेता है. कोडिंग के अनुसार किस प्रश्न का उत्तर उन्हें उपलब्ध करवाया जायेगा. इसकी जानकारी सेटर अभ्यर्थी को पहले ही दे देता है.
अंक देने को लेकर सेटर और अभ्यर्थी में बातचीतकितने अंक का प्रश्न देते हैं आप
हम अधिक-से-अधिक 135 से 140 अंक का ही उत्तर उपलब्ध करवाते हैं. इससे अधिक नहीं देते हैं.
कोडिंग के अनुसार कैसे उत्तर उपलब्ध करवाते हैं.
हां, हम लोग ही एडमिट कार्ड पर कोडिंग करते हैं. यह किसी को पता नहीं चलेगा. पेंसिंल से कोडिंग की जाती है. डॉट में कोडिंग रहता है, जिससे दूसरों को पता नहीं चलता है.
आंसर का कब पता चलता है.
रात में पता चल जाता है. कई बार परीक्षा शुरू होने के दो घंटे पहले भी पता चलता है.
सेंटर पर से कैसे प्रश्नपत्र निकाला जाता है
रेगुलर पढ़ने वाले अभ्यर्थी को एक घंटे पहले भी देते हैं, तो पता चल जाता है. वो एक नजर देखता है, तो और उत्तर उसे समझ में आ जाता है.
क्या आप 180 प्रश्नों का उत्तर उपलब्ध करवाते हैं.
नहीं उतना अंक नहीं दिया जाता है. 135 से 140 तक दिया जाता है. 180 अंक देेंगे, तो फिर पकड़ में आ जायेगा. उसकी जांच करवायी जा सकती है. इस कारण इतना अंक दिया जाता है, जिससे उसे सरकारी मेडिकल कॉलेज में नामांकन मिल जाये.
पटना : बीसीइसीइ (बिहार संयुक्त प्रवेश प्रतियोगिता परीक्षा पार्षद) जिसके ऊपर प्राथमिकी करता है. उस पर मेडिकल की परीक्षा देने पर पांच साल के लिए पाबंदी लगा देता है. लेकिन, वहीं अभ्यर्थी बीसीइसीइ के माध्यम से अगले ही साल मेडिकल की परीक्षा पास करता है और काउंसेलिंग में शामिल होकर सरकारी कॉलेजों में नामांकन ले लेता है.
यह खेल एक साल से नहीं कई सालों से बिहार के तमाम मेडिकल काॅलेजों में चल रहा है. लेकिन, ऐसे अभ्यर्थियों की बीसीइसीइ पहचान नहीं कर पाती है और न ही उसे मेडिकल कॉलेज से निकाल पाती है. इसको लेकर प्रभात खबर की ओर से बीसीइसीइ के परीक्षा नियंत्रक दया निधान पांडेय से बात की गयी. उन्होंने आश्वासन दिया है कि सारी गड़बड़ियां को सही कर लिया जायेगा.
जिस अभ्यर्थी पर प्राथमिकी करते हैं, वही अगले साल परीक्षा देता है, कहां चूक है?
अखबार के माध्यम से आज यह बात पता चली है. हम उसकी जांच करवा रहे हैं.
आप जिस को फर्जी करार देते हैं, उसकी सूची वेबसाइट पर क्यों नहीं जारी करते हैं?
जिस भी अभ्यर्थी के ऊपर प्राथमिकी हुई है और जिसे परीक्षा देने से बैन किया गया है, उन अभ्यर्थियों की सूची वेबसाइट पर डाली जायेगी.
प्राथमिकी और पांच साल के लिए बैन को लेकर बीसीइसीइ ने एक नोटिफिकेशन 2015 में निकाला था. उसका क्या हुआ?
मुझे उस नोटिफिकेशन की जानकारी नहीं है. नोटिफिकेशन को देख कर उसे तुरंत सारे बोर्ड को भेजा जायेगा. साथ में उसे भी बीसीइसीइ की वेबसाइट पर हम डालेंगे. जिससे ऐसे अभ्यर्थियों को पकड़ा जा सकें.
बीसीइसीइ ने प्राथमिकी वाले अभ्यर्थियों को दोबारा परीक्षा कैसे देने दिया.
ऐसा नहीं है,काउंसेलिंग के समय कई तरह से जांच करवायी जाती है. फोटो, हस्ताक्षर व हैंड राइटिंग का मिलान करवाया जाता है. अगर इसके बाद भी अभ्यर्थी मेडिकल कॉलेज तक पहुंचे हैं, तो इसकी हम जांच करवायेंगे.
कैसे पकड़ेंगे फर्जी अभ्यर्थी को इस बार काउंसेलिंग में कई स्तर पर अभ्यर्थियों की जांच होगी. कई एहतियात बरती जायेगी.पटना. मेडिकल की परीक्षा में सेटिंग का खेल पूरा साल चलता है. इसमें उन अभ्यर्थियों को टारगेट किया जाता है, जो पिछले कई सालों से मेडिकल की तैयारी कर रहे होते हैं, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिल रही होती है. कई सालों से तैयारी कर रहे अभ्यर्थियों को खोजने के लिए सेटर कोचिंग संस्थानों से संपर्क करते हैं. पुराने अभ्यर्थियों में वो एक से दो साल पहलेवाले अभ्यर्थी को अधिक टारगेट करते हैं. एक बार अभ्यर्थी नजर में आने के बाद उन्हें फोन और मैसेज के माध्यम से संपर्क करना शुरू किया जाता है.
अभ्यर्थियों को साल भर कोचिंग पर आनेवाले खर्च को बता कर इमोशनल ब्लैकमेल किया जाता है. अभ्यर्थी को एक बार पैसा देकर सेटिंग करके पास करने का फार्मूला बताया जाता है.
इन बातों से कई अभ्यर्थी फंस जाते हैं. इसके बाद अभिभावक से बातचीत शुरू होती है. अभिभावक के पास सेटर ऑप्सन रखते हैं कि किस तरह की सेटिंग वो चाहते हैं. कोचिंग संस्थान में अभ्यर्थियों का प्रोफाइल देखा जाता है. प्रोफाइल देखने के बाद उन अभ्यर्थियों को टारगेट किया जाता है, जाे आर्थिक रूप से मजबूत होते हैं. जिन्हें 20 से 25 लाख रुपये देने में दिक्कते नहीं होती है.
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