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जब पिछड़े क्षेत्रों का नहीं होगा विकास, तो कैसे खत्म होगा नक्सलवाद
समीक्षा बैठक : सीएम ने केंद्र की नीति पर उठाये सवाल पटना : नक्सली समस्या को लेकर नयी दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से आयोजित समीक्षा बैठक में सीएम नीतीश कुमार ने इस संबंध में केंद्र की नीतियों पर सवाल उठाये. केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में हुई बैठक में उन्होंने […]
समीक्षा बैठक : सीएम ने केंद्र की नीति पर उठाये सवाल
पटना : नक्सली समस्या को लेकर नयी दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से आयोजित समीक्षा बैठक में सीएम नीतीश कुमार ने इस संबंध में केंद्र की नीतियों पर सवाल उठाये. केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में हुई बैठक में उन्होंने कहा कि नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई केंद्र और राज्य की संयुक्त लड़ाई है, इसलिए इसका आर्थिक बोझ राज्यों के साथ ही केंद्र को भी वहन करना चाहिए.
अगर सभी कार्य राज्यों को ही करने हैं और अपने ही संसाधन लगाने हैं, तो इस बैठक का मतलब क्या है? साथ ही उन्होंने कहा कि नक्सलियों का उन्मूलन नक्सलवाद का समाधान नहीं है. इसके लिए विकास में क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करना होगा. नक्सली गतिविधियों में शामिल युवकों को समाज की मुख्य धारा से जोड़ना होगा. इसके लिए जरूरी है कि पिछड़े इलाकों में विकास योजनाओं का क्रियान्वयन सही तरीके से हो सके. नक्सलग्रस्त क्षेत्रों में चलनेवाली योजनाओं के बेहतर क्रियान्वयन के लिए केंद्र से सहयोग की सबसे ज्यादा अपेक्षा है. इन क्षेत्रों के लिए पहले से चल रही कई योजनाओं को केंद्र ने बंद कर दिया है.
इससे कई योजनाओं के खर्च का वहन राज्य सरकार को करना पड़ रहा है, जबकि कई योजनाओं में राज्यांश को बढ़ा दिया है, जिससे राज्य पर आर्थिक बोझ गया है. मुख्यमंत्री ने अपने संबोधन में यह भी स्पष्ट किया कि नक्सली हिंसा का समाज में कोई स्थान नहीं है. वामपंथी उग्रवाद की हर घटना इस बात का प्रमाण है कि इस संगठन का उद्देश्य गरीबों की भलाई नहीं, बल्कि अलोकतांत्रिक, असंवैधानिक और हिंसात्मक तरीके का प्रयोग कर गरीबों को उनके वाजिब हक, क्षेत्र का विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएं, संचार के आधुनिक माध्यमों से दूर रखना है. इन्हीं कमियों की दुहाई देकर आम जनता को सरकार के विरुद्ध दुष्प्रेरित करना है, जिससे हिंसा व क्षेत्र की दुर्दशा का दुश्चक्र बन जाता है.
देश के जिन हिस्सों में ये फैले हैं, उनसे यह भी पता चलता है कि इनका उद्देश्य प्रभावित क्षेत्रों में उपलब्ध उत्तम प्राकृतिक संपदा और उससे होनेवाली आय पर प्रभुत्व स्थापित करना है, न कि उस क्षेत्र में आम जनता का सामाजिक और आर्थिक उत्थान करना. बावजूद इसके हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इसमें शामिल लोग हमारे समाज एवं देश के ही अंश हैं. सामाजिक और आर्थिक असमानता, विकास में क्षेत्रीय असंतुलन और भ्रष्टाचार वंचित लोगों में असंतोष के मुख्य कारण हैं. इसी असंतोष और असंतुलन का फायदा उठाने में ये उग्रवादी संगठन सफल रहे हैं. रणनीति बनाने में इस बात का मुख्य ध्यान रखना चाहिए कि इसका केंद्रबिंदु क्षेत्र और समाज का विकास होना चाहिए.
नक्सल के खिलाफ बिहार मॉडल बेहद सफल
मुख्यमंत्री ने कहा कि बिहार लंबे समय से नक्सलवाद से ग्रस्त रहा है. राज्य सरकार शुरू से ही इसके प्रति सजग रही है और द्विपक्षीय रणनीति के जरिये इसका प्रभावकारी ढंग से सामना किया है.
एक तरफ केंद्रीय सशस्त्र बलों के सहयोग से विशेष कार्य बल का गठन करके उग्रवादी गतिविधियों पर लगाम लगायी गयी, तो वहीं दूसरी तरफ प्रभावित क्षेत्र में विकासोन्मुखी एवं कल्याणकारी पहल की गयी है. इस वजह से पिछले पांच वर्षों की तुलना में हिंसा की घटनाओं में 60% (2011 में 316 से घट कर 2016 में 129) की कमी आयी है. इन घटनाओं के कारण हुई मौत में 55% की कमी (63 से 28) भी आयी है.
उन्होंने कहा कि इस समस्या का सामने करने के लिए राज्य सरकार ने बहुमुखी रणनीति बनायी है. न्याय के साथ विकास के सिद्धांत पर आधारित ‘आपकी सरकार, आपके द्वार’ योजना शुरू की गयी, जिसका उद्देश्य प्रभावित क्षेत्रों में विकास के साथ सुरक्षा प्रदान करना है. राज्य में नक्सलग्रस्त आठ जिलों के 25 प्रखंडों की 65 पंचायतों के योग्य लाभार्थियों को उनके द्वार पर ही पूर्ण रूप से लाभान्वित करने के उद्देश्य से आवास, विद्यालय भवन, सामुदायिक भवन, ग्रामीण सड़क के साथ-साथ सामाजिक सुरक्षा एवं कल्याण और कौशल विकास की समेकित योजना का कार्यान्वयन किया गया है.
सीएम ने रखे ये सुझाव और प्रस्ताव
– केंद्र ने विशेष संरचना योजना, एकीकृत कार्ययोजना और सुरक्षा संबंधी व्यय शुरू किया था, जिसके काफी अच्छे परिणाम आये थे. पिछले वर्ष विशेष संरचना योजना और एकीकृत कार्ययोजना बंद कर दी गयी है. इन योजनाओं को फिर से चालू करते हुए 2016-17 की एसआरइ योजना के बकाये राशि का जल्द भुगतान करे.
– प्रत्येक नक्सलग्रस्त राज्यों में हेलीकॉप्टर तैनाती अनिवार्य रूप से की जाये.
– पुलिस के आधुनिकीकरण के लिए वर्ष 2015 तक केंद्र 40 करोड़ सालाना देता था, जिसे पिछले वर्ष से घटा कर 25 करोड़ कर दिया गया है. बिहार के लिए केंद्र और राज्य के अनुपात को बढ़ा कर 90:10 कर दिया है. केंद्र राज्यांश कम करे और केंद्रीय सहायता बढ़ाये.
– नक्सलग्रस्त क्षेत्र के लिए चिह्नित योजनाओं के क्रियान्वयन में तेजी लाने और उन्हें समाज के कमजोर वर्ग तक पहुंचाने के लिए केंद्र अतिरिक्त राशि मुहैया कराये.
– राष्ट्रीय स्तर पर वामपंथी उग्रवाद को ही केंद्र में रखते हुए कोई सांस्थानिक व्यवस्था की जानी चाहिए, जो इस तरह की सभी घटनाओं का रेकॉर्ड रखे और विश्लेषण करे. इसके आधार पर एक रणनीति तैयार की जाये. सीआरपीएफ इसके लिए एक उचित विकल्प हो सकता है.
– आधुनिक तकनीक पर ज्यादा से ज्यादा प्रयोग जरूरी है. अत्याधुनिक हथियार, ड्रोन, रोबोटिक यंत्र, संचार माध्यमों पर निगरानी समेत अन्य तकनीकें मुहैया करायी जाएं.
– केंद्र ने बिहार में 2010 से संचालित तीन ‘काउंटर इंसर्जेंसी एंड एंटी-टेरेरिस्ट स्कूल’ को वर्ष 2015-16 से आर्थिक सहायता देना बंद कर दिया है. इन स्कूलों का संचालन राज्य सरकार अपने खर्च पर कर रही है. इसके लिए केंद्र से पहले की तरह आर्थिक सहायता मुहैया कराये
बिहार में नक्सली हिंसा में कमी
हिंसा की घटनाएं : 60%
मौतों की संख्या : 55%
(2011 से 2016 तक में )
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