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बहुत कठिन है गांधी की डगर : शिवानंद

पटना : पूर्व सांसद शिवानंद तिवारी ने कहा कि गांधी की राह चलना बहुत कठिन है. 1915 में दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद अपने गुरु गोपाल कृष्ण गोखले की सलाह पर गांधी ने साल भर का देश भ्रमण कार्यक्रम बनाया. भ्रमण का मकसद देश और जन को समझना था. रेल के साधारण डिब्बे में […]

पटना : पूर्व सांसद शिवानंद तिवारी ने कहा कि गांधी की राह चलना बहुत कठिन है. 1915 में दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद अपने गुरु गोपाल कृष्ण गोखले की सलाह पर गांधी ने साल भर का देश भ्रमण कार्यक्रम बनाया. भ्रमण का मकसद देश और जन को समझना था. रेल के साधारण डिब्बे में अकेले सफर से देश के आम जन को बेहतर ढंग से जाना-समझा जा सकता है. लेकिन, यह सफर साधारण नहीं था. गांधी अपनी आत्मकथा में सुनाते हैं. करांची से भाया लाहौर कोलकाता जाना था. गाड़ी में काफी भीड़ थी. कहीं जगह नहीं थी. अधिकांश डिब्बों के दरवाजे बंद थे.
कुछ खिड़की के रास्ते किसी-किसी तरह डिब्बों घुस रहे थे. गांधी इस नजारे को देखकर हताश थे. कोलकाता का कार्यक्रम छूट जाने की चिंता थी. तबतक एक कुली ने पूछा जगह चाहिए, बारह आने लगेंगे.
गांधी चट से तैयार हो जाते हैं. क़ुली इधर से उधर लोगों से गांधी को बैठा लाने की गुज़ारिश करता रहा. लेकिन सफलता नहीं मिली. किसी ने कहा जगह नहीं मिलने वाली है. खिड़की के रास्ते इनको घुसा दो. अंत में क़ुली ने खिड़की के रास्ते गांधी को डिब्बे में घुसा कर अपना बारह आना लेकर चला गया. गाड़ी में खड़े-खड़े गांधी पस्त हो गये. सिर चकराने लगा. दो-ढाई घंटे बाद एक यात्री ने उनपर तरस खाकर बैठने की जगह दी. तब उनके जान में जान आयी. शिवानंद ने कहा कि गांधी पर भाषण देना आसान है. लेकिन उनके रास्ते पर चलना तो एक तपस्या है.

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