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विचाराधीन केस की शीघ्र सुनवाई को सुप्रीम कोर्ट की पहल सराहनीय

सुरेंद्र किशोर राजनीतिक िवश्लेषक सुप्रीम कोर्ट ने देश के सभी उच्च न्यायालयों से कहा है कि वे एक निदेश जारी करें. उस निर्देश के जरिये वे अधीनस्थ अदालतों से कहें कि वे जमानत की याचिकाओं का निबटारा सामान्यतः एक सप्ताह के भीतर कर दें. यदि आरोपित जेल में हो तो उसके मामले की सुनवाई दंडाधिकारी […]

सुरेंद्र किशोर
राजनीतिक िवश्लेषक
सुप्रीम कोर्ट ने देश के सभी उच्च न्यायालयों से कहा है कि वे एक निदेश जारी करें. उस निर्देश के जरिये वे अधीनस्थ अदालतों से कहें कि वे जमानत की याचिकाओं का निबटारा सामान्यतः एक सप्ताह के भीतर कर दें. यदि आरोपित जेल में हो तो उसके मामले की सुनवाई दंडाधिकारी स्तर पर छह माह के भीतर पूरी हो जाये.
ऐसे ही मामलों में सत्र न्यायालय में सामान्यतः दो वर्षों में सुनवाई पूरी कर ली जानी चाहिए. यह भी कोशिश होनी चाहिए कि पांच साल पुराने सभी मामलों की सुनवाई 2017 के अंत तक कर ली जाये. याद रहे कि पांच साल से अधिक पुराने 43 लाख मामले इस देश की अदालतों में विचाराधीन हैं. दस साल से अधिक पुराने मामलों की संख्या करीब 22 लाख है. इस बीच पटना हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन ने भी कहा है कि विचाराधीन मुकदमों के निबटारे का काम अधिक जरूरी है. हाइकोर्ट का काम रोड और नाला साफ करवाना नहीं. याद रहे कि इस देश की विभिन्न अदालतों में करीब तीन करोड़ मुकदमे लंबित हैं.
भारत सरकार और कॉलेजियम के बीच पिछले कुछ समय से जारी गतिरोध अब समाप्त हो गया है. इसलिए उम्मीद की जानी चाहिए कि न्यायाधीशों की बहाली के काम में भी तेजी आयेगी. पर केंद्र सरकार को विधि आयोग की इस सिफारिश पर भी ध्यान देना होगा जिसमें यह कहा गया है कि विभिन्न स्तरों पर न्यायाधीशों की संख्या बढ़ायी जानी चाहिए. खैर कुल मिलाकर अब यह उम्मीद जगी है कि अदालतों के काम काज में तेजी आयेगी. सुप्रीम कोर्ट ने इसी महीने यह भी कहा है कि देश की अदालतों को चाहिए कि वे अगंभीर जनहित याचिकाकर्ताओं से इतना अधिक खर्च वसूलें ताकि ऐसे लोगों को सबक मिले और वे दोबारा कोर्ट का समय बरबाद न कर सकें. ऐसी तुच्छ याचिकाएं अदालतों का बहुमूल्य समय जाया करती हैं. इससे अदालतें अन्य जरूरी मामलों की सुनवाई समय पर नहीं कर पाती.
एग्जिट पोल पर बेमतलब बखेड़ा
उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव नतीजे आने से एक दिन पहले समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष किरण नंदा ने मीडिया को बताया कि एग्जिट पोल के नतीजे न सिर्फ पूर्वाग्रहग्रस्त हैं, बल्कि खरीदे हुए भी हैं.
इसमें भारी चालबाजियां भी होती हैं. सपा नेता राम गोपाल यादव ने तो यहां तक कह दिया कि यूपी में हमारी सरकार बनेगी. हमारे पास पुख्ता सूचना है कि न्यूज चैनलों ने भाजपा के दबाव में आकर असली एग्जिट पोल को बदल दिया है. यादव और नंदा के बयानों के अगले दिन ही वास्तविक रिजल्ट भी आ गये. उसके अनुसार उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस गठबंधन को 403 में से मात्र 54 सीटें मिलीं. अब यह जानिए कि नंदा ने जिन एग्जिट पोल को खरीदा हुआ बताया था, उसने इस गठबंधन के लिए कितनी सीटों की भविष्यवाणी की थी? एग्जिट पोल आयोजित करने वाले छह संगठनों के आंकड़े मेरे सामने हैं. एग्जिट पोल के पूर्वानुमान के अनुसार सपा-कांग्रेस के लिए कम से कम 103 और अधिक से अधिक 169 सीटों का अनुमान किया गया था. यानी सपा-कांग्रेस गंठबंधन को जितनी सीटें मिलीं, उससे दुगुनी से भी अधिक सीटें एग्जिट पोल के अनुमान में थीं. क्या इतनी अधिक सीटों का अनुमान प्रकाशित करने के लिए नंदा जी के दल ने किसी को खरीदा था? नहीं खरीदा. फिर भी सपा पर एग्जिट पोल खरीदने का सपा विरोधी नेता आरोप लगाएं तो नंदा जी क्या जवाब देंगे? एग्जिट पोल या ओपिनियन पोल पर उटपटांग बयान देने वाले नेताओं से एक अपील है.
आम तौर पर किसी ओपिनियन पोल या एग्जिट पोल का नतीजा सीटों की संख्या के मामले में बिलकुल सटीक नहीं होता. हो भी नहीं सकता. पर अपवादों को छोड़ दें तो वे हवा रुख जरूर बता देते हैं. यानी उनसे यह पता चल जाता है कि कौन दल आगे हैं और कौन दल पीछे. मतगणना से पहले लोगबाग यह जानना चाहते हैं कि चुनाव में कौन जीतेगा. सही बात तो नेता बताएंगे नहीं. अधिकतर ज्योतिषियों का रिकॉर्ड भी इस मामले में खराब है. फिर ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल ही तो उत्सुकता को शांत करने का एक कमजोर सहारा है. 1989 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले एक मशहूर अंगरेजी साप्ताहिक पत्रिका ने देश के दस जाने माने ज्योतिषियों की भविष्यवाणियां छापी थीं. दस में से नौ ने कहा था कि राजीव गांधी फिर से सत्ता में आयेंगे.
सिर्फ एक ज्योतिषी ने सटीक भविष्यवाणी की थी. याद रहे कि 1989 के चुनाव के बाद वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने थे. अब खुद नेताओं का हाल भी जान लीजिए. कई साल पहले की बात है. शरद यादव मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र में उम्मीदवार थे. चुनाव में धांधली का आरोप लगाते हुए शरद यादव अनशन पर बैठ गये. उन्हें लग रहा था कि वे हार रहे हैं. पर जब मतगणना शुरू हुई और वे जीतने लगे. तो उन्होंने अनशन समाप्त कर दिया. यानी कई बार जब खुद उम्मीदवार को भी सटीक स्थिति का पता नहीं चलता है तो ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल वालों पर गुस्सा क्यों? उन्हें अपना काम करने दीजिए. इस बार उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के सभी एग्जिट पोल नतीजे यही बता रहे थे कि भाजपा आगे है.
मणिशंकर अय्यर का सामयिक सुझाव
पूर्व केंद्रीय मंत्री मणि शंकर अय्यर ने सुझाव दिया है कि कांग्रेस गैर भाजपा दलों का एक सतरंगी गठबंधन बनाने की दिशा में काम करे और उस गठबंधन का नेतृत्व खुद करने का मोह छोड़ दे.
2019 के लोकसभा चुनाव के संभावित परिणामों को लेकर चिंतित अय्यर ने कहा है कि कांग्रेस अकेले भाजपा को पराजित नहीं कर पायेगी. इसलिए एक बार फिर उसी तरह का गठबंधन बनना चाहिए जिस तरह सोनिया गांधी ने 2004 में बनाया था. उस गठबंधन को दो बार चुनावी सफलता मिली थी. उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भाजपा की बड़ी जीत से चिंतित मणि शंकर ने कहा है कि अगले चुनाव में भाजपा की पराजय जरूरी है, क्योंकि वह इस देश को खतरनाक रास्ते पर ले जा रही है. ऐसी सलाह देकर मणि शंकर संभवतः अपनी गलती का प्रायश्चित कर रहे हैं.
क्योंकि गत लोकसभा चुनाव से ठीक पहले अय्यर के एक विवादास्पद बयान से नरेंद्र मोदी को राजनीतिक लाभ मिला था. सत्ता के गरूर में चूर मणि ने तब कहा था कि नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री की कुर्सी तो नहीं ही मिलेगी. हां, यदि वे चाहें तो मैं उनके लिए चाय की एक दुकान जरूर खोलवा दूंगा.
..और अंत में
पंजाब के मतदाताओं ने अरविंद केजरीवाल की पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं दिया तो उसका कारण अब समझ में आ रहा है. केजरीवाल का आरोप है कि आप के खाते में आने वाले लगभग 20 से 25 प्रतिशत वोट संभवतः अकाली दल-भाजपा के खाते में चले गये हैं.
हमें सत्ता से बाहर रखने की साजिश के तहत इवीएम में गड़बड़ी की गयी. दरअसल, पंजाब में आप को जो 20 सीटें मिलीं, वे उसकी ईमानदारी और कर्मठता कारण मिलीं. पर पंजाब के मतदाताओं ने यदि उसे पूर्ण बहुमत नहीं दिया, उसका कारण यह लगता है कि वे अकसर गैरजिम्मेवार ढंग से बयान देने और आरोप लगानेवाले दल को सत्ता नहीं सौंपना चाहते थे. कभी किरण बेदी ने कहा था कि आप के नेता लर्नर्स लाइसेंस के सहारे पार्टी की गाड़ी चला रहे हैं. लगता है कि अब भी यही हाल है.

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