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अस्पताल पहुंचने के रास्ते में फ्लाइओवर की सख्त जरूरत
कल्पना कीजिए कि किसी सड़क पर एम्बुलेंस में पड़ा मरीज जीवन और मृत्यु के बीच झूल रहा हो और एम्बुलेंस रोड जाम में फंस गया हो. मरीज के परिजन जाम करने वालों के सामने हाथ जोड़कर गिडगिड़ा रहे हों. फिर भी उसे अस्पताल के लिए कोई रास्ता नहीं दे रहा हो. कैसा लगा यह पढ़कर? […]
कल्पना कीजिए कि किसी सड़क पर एम्बुलेंस में पड़ा मरीज जीवन और मृत्यु के बीच झूल रहा हो और एम्बुलेंस रोड जाम में फंस गया हो. मरीज के परिजन जाम करने वालों के सामने हाथ जोड़कर गिडगिड़ा रहे हों. फिर भी उसे अस्पताल के लिए कोई रास्ता नहीं दे रहा हो. कैसा लगा यह पढ़कर? किसी भी सहृदय व्यक्ति को यह काल्पनिक दृश्य भावुक कर देगा.
पर यह कल्पना नहीं. हकीकत है. गांधी सेतु और पीएमसीएच के रास्ते में आये दिन ऐसे दृश्य देखे जा सकते हैं. यही समस्या कुछ दिनों के बाद अब पटना एम्स के पास भी उपस्थित होने वाली है. पटना एम्स का निर्माण तो अभी एक-तिहाई ही हो सका है. जिस दिन निर्माण पूरा हो जायेगा, उस दिन मरीजों की संख्या काफी बढ़ जायेगी. औरंगाबाद की ओर से एम्स पहुंचने वालों के लिए एनएच-98 उपलब्ध है. उत्तर बिहार से आनेवाले मरीजों के लिए एम्स-दीघा एलिवेटेड रोड निर्माणाधीन है. वह जल्दी ही पूरा हो जायेगा.
इस बीच चार किलोमीटर लंबी चकमुसा-जमालुद्दीन चक ग्रामीण सड़क का चैड़ीकरण हो जाये तो एक और इलाके से एम्स पहुंचना आसान हो जायेगा. यह सड़क पटना एम्स के पास के दो नेशनल हाइवे को जोड़ती है. पर पूरब और दक्षिण से आने वाले मरीजों को फुलवारीशरीफ नगर के अनवरत जाम से फिर भी पाला पड़ेगा. इस बीच एयरपोर्ट एडवाइजरी कमेटी ने पटना एयरपोर्ट से पटना एम्स तक फ्लाइ ओवर बनाने की सलाह दी है.
यह एक अच्छी और समयानुकूल सलाह है. पर उन मरीजों का क्या होगा जो मोकामा और गया की ओर से बाइपास के रास्ते पटना पहुंच कर एम्स तक जाना चाहते हैं? उनको फुलवारीशरीफ नगर की अतिक्रिमणयुक्त संकड़ी सड़क से गुजरना पड़ेगा. इस सड़क पर अक्सर जाम रहता है. पुलिस पैसे लेकर ट्रकों को मनमानी करने की छूट देती रहती है. वहां ह्यनो इंट्री नियम का पालन नहीं होता. इस देश की पुलिस को कर्तव्यनष्ठि बनाना इस देश की किसी भी सरकार के लिए असंभव काम लगता है. तो फिर जनता को राहत देने के लिए सरकार कम से कम इस मामले में फिलहाल कोई अन्य रास्ता ही अपनाये.
एक आसान रास्ता फ्लाइओवर निर्माण का है. यदि एम्स से अनिसाबाद तक फ्लाइओवर बन जाए तो पूरब और दक्षिण बिहार के लोग भी आसानी से एम्स पहुंच जाएंगे. याद रहे कि अभी दिल्ली एम्स के कुल मरीजों में 48 प्रतिशत मरीज बिहार के ही होते हैं. पटना एम्स के निर्माण का कार्य पूरा हो जायेगा तो इस अस्पताल में जुटने वाली भीड़ की कल्पना की जा सकती है. उसे ध्यान में रखते हुए पहले से ही योजना बनानी होगी. बिहार सरकार ने पटना में अनेक फ्लाइ ओवर बनाये हैं. और कई निर्माणधीन भी हैं.
पर आए दिन सड़क जाम में फंस रहे मरीजों को ध्यान में रखते हुए कुछ और फ्लाइ ओवर बनाने होंगे. एक्जिविशन रोड फ्लाइ ओवर को पीएमसीएच तक पहुंचाना होगा. आश्चर्य है कि केंद्र सरकार पहले के एम्स के कामों को अधूरा छोड़कर नये नये एम्स का प्रस्ताव कर रही है. पटना एम्स का शिलान्यास 2004 में हुआ था.
अदालतों से रिहाई को लेकर बुनियादी सवाल : राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने दिल्ली सरकार से सिफारिश की है कि वह मोहम्मद आमिर खान को पांच लाख रुपये का मुआवजा दे. आतंकी हमले के आरोपी के रूप में आमिर को गिरफ्तार किया गया था. पर हाल में सबूत के अभाव में कोर्ट ने उसे दोषमुक्त कर दिया. आयोग ने कहा कि राज्य शासन ने आमिर के जीवन के 14 साल बर्बाद कर दिये. हाल में मध्य प्रदेश की एक अदालत ने जोशी हत्याकांड में सबूत के अभाव में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को भी बुधवार को दोषमुक्त करार दे दिया.
प्रज्ञा को 2011 में गिरफ्तार किया गया था. मालेगांव विस्फोट में एनआइए पहले ही साध्वी प्रज्ञा को निर्दोष मान चुका है. हालांकि अभी उस केस में प्रज्ञा को जमानत नहीं मिली है. अब किसी दिन जेल से निकलकर मुआवजे की मांग के लिए प्रज्ञा सिंह ठाकुर भी राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से गुहार कर सकती हैं. वह मांग करेगी या नहीं, यह तो नहीं मालूम, पर उन्हें मांग करने का पूरा अधिकार होगा. उन्हें आमिर जैसी राहत भी मिल सकती है. भला क्यों नहीं मिलेगी? पर, सवाल सिर्फ आमिर और प्रज्ञा का ही नहीं है. इस देश में आपराधिक मामलों में से सिर्फ 47 प्रतिशत मामलों में ही आरोपितों को अदालत से सजा मिल पाती है. गत साल का यही आंकड़ा है. व्यावहारिक रूप से तो संभव नहीं है, पर सैद्धांतिक रूप से ही एक स्थिति की कल्पना कीजिए. यदि दोषमुक्त हुए सारे 53 प्रतिशत पीड़ित लोग मानवाधिकार आयोग के पास चले जाएं और मुआवजा की सिफारिश करने की मांग करें तो आयोग क्या करेगा?
कब होगा आपराधिक न्याय व्यवस्था में सुधार : जानकार लोग बताते हैं कि अधिकतर आरोपित लोगों के अदालतों से रिहा हो जाने का कारण सिर्फ यही नहीं है कि वे निर्दोष थे. उनमें कुछ लोग अवश्य निर्दोष होंगे. यहां आमिर या प्रज्ञा के दोषी या निर्दोष होने के बारे में कुछ नहीं कहा जा रहा है. सवाल सिस्टम का है. पर रिहाई के बड़े कारण कुछ और भी हैं. उन कारणों को दूर करना होगा. क्या कारण है कि अमेरिका और जापान में आपराधिक मामलों में वहां की अदालतों से होने वाली सजा का प्रतिशत 99 दशमलव 8 है? क्या हमारी सरकारें उन देशों से कुछ सीखेंगी? अपने देश में अधिकतर जांच अधिकारी अक्षम और भ्रष्ट हैं.
दबंग और अमीर अपराधी गवाह और जांच अधिकारी को धमकी और पैसे के जरिये मिला लेते हैं. राजनीतिक दबाव में भी कई बार पुलिस केस कमजोर कर देती है. अदालतों में सुनवाई की रफ्तार अत्यंत धीमी होती है. कुछ अन्य कारण भी हैं. इसलिए अनेक जघन्य अपराधी और देशद्रोही भी आये दिन रिहा हो-होकर एक बार फिर अपने धंधे में लग जाते हैं. यदि देश की सरकारें ईमानदारी से चाहे तो आपराधिक न्याय व्यवस्था को बेहतर बना सकती है. पर इसमें भी क्षुद्र राजनीति बाधक बनी हुई है.
सजा होगी नाव दुर्घटना के कसूरवारों को?
गत जनवरी में पटना के पास नाव दुर्घटना में 29 लोगों की जानें चली गयीं. इस घटना की जांच हो रही है. राज्य सरकार ने घोषणा भी की है कि दोषी लोगों को बख्शा नहीं जाएगा. खुदा करे, ऐसा ही हो! पर क्या ऐसा हो पाएगा? यहां हुई पिछली ऐसी ही दो दुर्घटनाओं में तो किसी को सजा नहीं हुई. दरअसल, ऐसे मामलों में भी दोषियों के प्रति जैसी निर्ममता और निष्पक्षता दिखानी चाहिए, सरकार वह कई कारणों से दिखा नहीं पाती. क्योंकि बचाने वाले, मारने वालों से अधिक ताकतवर साबित होते हैं. नतीजतन ऐसी घटनाएं समय-समय पर होती रहती है. यदि एक बार तौलकर कसूरवारों को कड़ी सजा दे दी जाये तो अगली बार से हर कोई अपनी ड्यूटी मुस्तैदी से निभायेगा.
और अंत में
नोयडा के चीफ इंजीनियर रहे चर्चित यादव सिंह के मामले को किसी दल ने उत्तर प्रदेश चुनाव का मुद्दा नहीं बनाया है. कम से कम मीडिया में कहीं कोई चर्चा नहीं है. लगता है कि ऐसा इसलिए है कि क्योंकि यादव सिंह का मामला बहुदलीय कदाचार का नमूना है. अधिकतर नेताओं को एक यादव सिंह चाहिए. यादव सिंह को उनके कार्यकाल में एक से अधिक दलों की सरकारों से संरक्षण मिला. यादव सिंह के यहां 2014 में पड़े छापे में 10 करोड़ रुपये नकद मिले थे. हीरे और सोने के दो किलो गहने मिले. आयकर महकमे के आकलन के अनुसार यादव सिंह परिवार दस हजार करोड़ रुपये की संपत्ति का मालिक है.
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