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शराब कारोबारियों ने पकड़ी नयी राह, मिला सुकून

राज्य में अप्रैल, 2016 से पूर्ण शराबबंदी लागू होने के बाद इस धंधे में लगे कारोबारियों के जीवन में बड़ा बदलाव आया है. कारोबारी अब इस धंधे को छोड़ कर दूसरे कारोबार में जुट गये हैं. शुरुआती दिनों में इन कारोबारियों को नयी राह तलाशने में कुछ दिक्कतें तो जरूर आयीं, लेकिन अब स्थिति सामान्य […]

राज्य में अप्रैल, 2016 से पूर्ण शराबबंदी लागू होने के बाद इस धंधे में लगे कारोबारियों के जीवन में बड़ा बदलाव आया है. कारोबारी अब इस धंधे को छोड़ कर दूसरे कारोबार में जुट गये हैं. शुरुआती दिनों में इन कारोबारियों को नयी राह तलाशने में कुछ दिक्कतें तो जरूर आयीं, लेकिन अब स्थिति सामान्य हो गयी है. कोई मिठाई की दुकान, तो कोई फुटवेयर या ब्रांड स्टोर खोल कर जीविका चला रहा है. वहीं कुछ कारोबारी सुधा दूध का बूथ भी चला रहे हैं. शराबबंदी से बेरोजगार हुए स्टाफ भी अलग-अलग धंधे में जुटे हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि शराब के पुराने कारोबारी अपने नये धंधे से खुश व संतुष्ट हैं. वे नीतीश सरकार के फैसले को भी सही ठहरा रहे हैं. शराबबंदी के बाद कारोबारियों के जीवन मेें कैसे बदलाव आया, इसकी पड़ताल कर रहे हैं हम आज के बिग इश्यू में.
खुश हूं, अब जूसवाले कहते हैं लाेग
राज्य में शराबबंदी लागू होने के बाद भागलपुर में शराब कारोबारियों के धंधे में बड़ा बदलाव आया है. शहर के निजी बस स्टैंड व लोहिया पुल के नीचे पटल बाबू रोड पर शराब की दुकान से पहचान स्थापित कर चुके अरुण साहा उर्फ बबन दा शराबबंदी के बाद सुधा दूध, जूस, पतंजलि के उत्पाद व दवा की दुकान चला रहे हैं. साहा इस बात को लेकर खुश हैं कि उनकी छवि सुधर गयी है. लोग शराब दुकान को दागी समझते थे. गलत नजर से देखते थे. अरुण बताते हैं कि वह इस बात को लेकर घुटते रहते थे कि उनकी छवि कैसे सुधरेगी. जबकि कभी गलत तरीके से कारोबार नहीं किया. सरकार की ओर से वैधानिक तरीके से ही शराब का कारोबार किया. इस धंधे के नहीं छोड़ने की एक ही मजबूरी थी कि इसमें सालाना एक से डेढ़ करोड़ का कारोबार हो जाता था. अब जब सरकार ने ही शराब बेचने पर वैधानिक रोक लगा दी, तब दूध, जूस, पतंजलि के उत्पाद व दवा की दुकान शुरू किये. ऐसी दुकान शहर की एकलौती है, जिन्हें सुधा दूध व जूस बेचने की स्वीकृति मिली. इससे पांच लाख रुपये का सालाना कारोबार होगा. पहले छवि में सुधार करने के लिए धार्मिक कार्यों में लगे रहते थे.
शराब ठेकेदार से बना हार्डवेयर दुकानदार
बंजारी चौक के उत्तर स्थित पीएस बिल्डिंग मैटेरियल एवं हार्डवेयर दुकान पर लोगों का आना – जाना लगा है. मजदूर गिट्टी-बालू बेचने में लगे हैं, तो मैनेजर हिसाब कर रहा है. दुकान पर बैठे हैं पुरुषोत्तम सिंह, जो लोगों से बात कर रहे हैं. उनका बड़ा बेटा श्रीधर भी अपने पिता से व्यवसाय पर चर्चा कर रहा है. ठीक एक साल पहले बाप-बेटे तो दूर, परिवार का कोई भी सदस्य पुरुषोत्तम सिंह से ठीक से बात नहीं करता था. कारण था उनका शराब का ठेका. शराब की सरकारी दुकानों पर इनका कब्जा था. इनका कारोबार करोड़ों का था. भितभेरवां गांव के संभ्रांत परिवार से आनेवाले पुरुषोत्तम सिंह जिले के सबसे बड़े शराब कारोबारी माने जाते थे.
आमदनी तो थी, लेकिन परिवार वाले इस धंधे से खफा रहते थे. शराबबंदी ने न सिर्फ पुरुषोत्तम सिंह का धंधा बदल दिया, बल्कि नफरत करनेवाले परिवार के सदस्य भी एक साथ बैठ कर आज कहकहे लगा रहे हैं. एक साल में आये इस बदलाव से लोगों में हैरत है. शराबबंदी के बाद कल के शराब के ठेकेदार आज शहर मे हार्डवेयर के बड़े दुकानदार बन गये हैं. इस बदलाव के बाद जब उन्होने शराब के धंधे से नाता तोड़ा तो न सिर्फ हार्डवेयर की दुकान खोल आमदनी को बरकरार रखा है, बल्कि समाज से कट कर रहनेवाले पुरुषोत्तम सिंह अब सामाजिक सरोकार में रच-बस गये हैं. उनसे दिन भर मिलने-जुलनेवालों का तांता लगा रहता है. पुरुषोत्तम सिंह बताते हैं कि शराबबंदी ने कइयों की जिंदगी बदल दी है. इस नये व्यवसाय से मेरी आमदनी नहीं घटी है. लाभ यह हुआ है कि आज परिवार के सभी लोग मुझसे खुश हैं और सभी साथ में हैं.
दूसरी जगहों पर अब हो रहा निवेश
शराब के कारोबारी अब अपनी पूंजी का दूसरी तरफ निवेश करने में लगे हैं. शराब के कारोबार में शहर के कागजी मोहल्ला निवासी टुन्ना जायसवाल ने दो करोड़ रुपये से अधिक की पूंजी लगायी थी. शराबबंदी के बाद टुन्ना निराश नहीं हुए. टुन्ना जायसवाल का कहना है कि शराबबंदी के बाद अब हमने अपनी पूंजी को शिक्षण संस्थान में इनवेस्ट करने की योजना बनायी. अभी शहर के बबुनिया रोड पर हमने मोटर पार्ट्स की एक दुकान खोली है. इसके बाद डेयरी उद्योग स्थापित करने का मन बनाया था. लेकिन उद्यम से संबंधित अनुभवी श्रमिकों की कमी के चलते योजना को स्थगित कर दिया.अब हमने एक शिक्षण संस्थान स्थापित करने का मन बनाया है. जिस पर जल्द ही अमल किया जायेगा. भाजपा एमएलसी टुन्ना जी पांडे का भी शराब निर्माण के कारोबार में गहरी पैठ रही है. दरौली थाने के नेतवार निवासी पांडे बंधु के नाम से चर्चित टुन्नाजी पांडे समेत अन्य चार भाइयों के नाम से अलग-अलग डिस्टलरी प्लांट रहा है. डूल वैली डिस्टलरी, सहरसा को-ऑपरेटिव डिस्टलरी नवादा ,हिंदुस्तान डिस्टलरी बेगूसराय व एसवीजी डिस्टलरी सिक्किम के नाम से प्लांट स्थापित हुआ. ये सभी प्लांट अब शराबबंदी के बाद बंद हो गये हैं. इसके बाद अब यह परिवार अन्य क्षेत्रों में पूंजी निवेश करने में लगा है.
चलाते हैं बिरयानी हाउस व ब्यूटी पार्लर
सूबे में पूर्ण शराबबंदी लागू होने के बाद जिले में कोई ब्यूटी पार्लर का संचालन कर रहा है, तो कोई किराना दुकान का. एक दुकान ऐसी है जहां शराब बिकती थी वहां अब बिरयानी बेचा जा रहा है. जिले में लाइसेंसी शराब की 57 दुकानें थीं, जिसमें अंगरेजी शराब के 16, देसी के 15 और कम्पोजिट शराब की 26 दुकानें संचालित होती थीं. शराब के व्यवसाय से जुड़े कारोबारियों के अलावा सेल्समैन से करीब दो सौ परिवारों का घर चलता था. स्टेशन रोड में शराब का व्यवसाय करने वाले कारोबारी डब्लू कुमार ने उसी दुकान में अब ब्यूटी पार्लर और श्रृंगार स्टोर खोल रखी है. यहीं पर एक अन्य दुकान में बिरयानी हाउस खोलकर खान-पान का धंधा किया जा रहा है. अरवल मोड़ के समीप जिस दुकान में शराब बेची जाती थी ,वहां अब मोबाइल रिचार्ज और इंटरनेट कैफे खुला है. कोर्ट एरिया में संचालित शराब दुकान में इन दिनों तिलकुट का कारोबार किया जा रहा है. शराब के कारोबारियों और सेल्स मैन में कुछ ऐसे हैं जिनके पास खेती योग्य अपनी भूमि है उन्होंने शराबबंदी के बाद कृषि कार्य को अपना मुख्य पेशा बना लिया है. ऐसे कई लोग अब पुराने धंधे के बंद होने के बाद कमाई की भरपाई ठेकेदारी व होलसेल से कर रहे हैं.
कभी थीं शराब की 55 दुकानें, अब कर रहे चप्पल-जूते का व्यापार
कभी पटना और आसपास के इलाकों में शराब की 55 दुकानों के मालिक हुआ करते थे रामाशंकर प्रसाद और उनके भाई अनूप कुमार. लेकिन शराबबंदी के बाद सभी दुकानें बंद हो गयीं और इनके इस पुश्तैनी धंधे पर ताला लग गया. शराब के व्यवसाय में इनका सालाना टर्नओवर करीब 150 करोड़ रुपये तक था. शराबबंदी कानून को इन्होंने सकारात्मक तरीके से लिया और शहर में जिन-जिन प्रमुख स्थानों पर इनकी शराब की दुकानें थीं, वहां जूते-चप्पल का शो-रूम खोल दिया. अब रामाशंकर व उनके भाई ने मिलकर दुकानें खोली हैं. जिन दुकानों में पहले लोग शराब खरीदने आते थे, अब वहां फैंसी जूते-चप्पल की खरीदारी करते हैं. उन्होंने शराब दुकानों में काम करने वाले अधिकतर पुराने स्टाफ को भी अपने नये कारोबार में शामिल कर लिया है. रामाशंकर कहते हैं कि 150 करोड़ के शराब कारोबार के अचानक छूट जाने का कोई खास मलाल नहीं है. बल्कि इस शराबबंदी कानून ने उन्हें इज्जत और सम्मान की जिंदगी दी है. रामाशंकर लोगों से कहते हैं कि शराब बुरी चीज हैं.
शहर के आशियाना मोड़ के पास रामाशंकर ने शराब की दुकान में ही पहली जूते-चप्पल की दुकान खोली. इसके बाद फ्रेजर रोड, महेन्द्रू, फुलवारीशरीफ समेत अन्य स्थानों पर जूते-चप्पल की दुकानें खोल ली हैं. आने वाले समय में कई अन्य स्थानों पर भी दुकान खोलने की योजना है. रामाशंकर और उनके भाई अनूप कुमार कहते हैं कि वह 21 जनवरी को शराबबंदी के समर्थन में बनायी जाने वाली मानव श्रृंखला में भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेंगे.
बिनोद ने शराब के व्यापार को किया शिफ्ट : बिहार के जाने-माने खुदरा शराब व्यापारी बिनोद कुमार शराब के कारोबार में पिछले 25 सालों से हैं. बिहार के कई जिलों में उनका देसी शराब का ठेका और विदेशी शराब तैयार करने की डिस्टिलरी और दर्जनों दुकानें थीं. परंतु शराबबंदी कानून लागू होने के बाद इनका बिहार में सारा व्यापार अचानक से बंद हो गया. बिनोद कहते हैं कि उन्होंने अपना कारोबार तो नहीं बदला है, लेकिन स्थान जरूर बदल लिया है. अब उन्होंने अपना सारा कारोबार कोलकाता में शिफ्ट कर लिया है. पश्चिम बंगाल में उन्होंने शराब की एक नयी फैक्टरी भी खोली है. इसके अलावा झारखंड और पश्चिम बंगाल में उन्होंने अपना कारोबार शिफ्ट कर लिया है.
50 ने दूध के कारोबार में ली रुचि : सीमा
कंफेड की एमडी सीमा त्रिपाठी ने कहा कि राज्य में शराबबंदी के बाद मात्र 50 कारोबारियों ने ही दूध के कारोबार में रुचि ली. उन्होंने कहा कि राज्य के कुल 1960 शराब कारोबारियों से दूध के व्यवसाय के लिए कंफेड ने संपर्क किया. इसमें 306 शराब कारोबारियों ने शराब को छोड़ दूध का कारोबार शुरू करने के लिए सहमति दी. जब दूध के कारोबार के लिए आवेदन लिया गया, तो 64 ने दूध के बूथ शुरू करने के लिए आवेदन दिया.इसमें से अब तक मात्र 50 ने ही दूध का कारोबार शुरू किया. एमडी ने बताया कि अब भी यदि कोई शराब कारोबारी दूध का बूथ शुरू करना चाहते हैं, तो कंफेड उनका स्वागत करेगा.
शराबबंदी के बाद कारोबारियों की स्थिति बदल गयी. कोई खेतों में पहुंच कर किसानी करने लगा, तो कोई मिठाई की दुकान चला रहा है. उत्पाद विभाग के आंकड़ों के अनुसार तीन लोगों ने सुधा मिल्क पार्लर चलाना शुरू किया है. कई शराब विक्रेता मजदूरी भी करने लगे तो कई खेती, ठेकेदारी, सैलून की दुकान, मछली बेचना, ईंट का भट्ठा, कपड़े की दुकान, चप्प्ल की दुकान, ज्वेलरी की दुकान, केले का व्यापार जैसे कार्य को करने लगे. तीन शराब विक्रेताओं ने दूध बेचना शुरू कर दिया है. नगर थाने के बागमली मुहल्ला के निवासी सुकेश्वर प्रसाद सिन्हा, राजेंद्र कुमार सिंह और सुधीर कुमार सिंह ने सुधा का पार्लर खोल लिया . महुआ बाजार के ताजपुर रोड में शराब दुकान चलाने वाले प्रेमशंकर कुमार उर्फ राजा भैया ने मोर्ट्स पार्ट्स की दुकान खोल ली . महनार के गुड्डू किसान बन गये हैं. राकेश रंजन उर्फ गुड्डू किसान परिवार से आते हैं. पहले शराब बेचते थे, लेकिन अब पुश्तैनी बंजर पड़ी भूमि को अपना कर्म भूमि बनाकर मेहनत कर रहे हैं.
अप्रैल 2016 के पहले बक्सर शहर के दुर्गा स्थान के मेन रोड पर स्थित शराब दुकान पर सुबह से लेकर शाम तक सिर्फ हंगामा होता रहता था. शराबबंदी के बाद उसी जगह पर कारोबारी ने एक मिठाई की दुकान खोल दी है. कल तक शराब पीकर एक दूसरे पर छींटाकशी करने वाले लोग आज इस दुकान पर आकर मिठाई का आनंद उठा रहे हैं. इनकी जिंदगी भी काफी बदल गयी है. ऐसे कई कारोबारी हैं जो पहले शराब के धंधे में पूंजी लगायी थी.
ये अब अपनी पूंजी को दूसरी जगह निवेश कर रहे हैं. अहिरौली निवासी मुन्ना यादव ने भी शराबबंदी के बाद पूंजी को कई जगहों पर निवेश किया. अब वह रेलवे की इ-टिकटिंग व साइबर कैफे चला रहा है. वहीं डुमरांव अनुमंडल के आमसारी गांव निवासी शराब कारोबारी मुन्ना सिंह ने शराबबंदी के बाद गांव में ही पत्तल बनाने की फैक्ट्री बैठा ली है. इसके साथ ही इस फैक्ट्री में काम करने वाले लोगों को रोजगार भी मिल रहा है. इनके जीवन में भी काफी बदलाव आया है.
सूबे में शराबबंदी लागू होने के बाद जिले की तसवीर बदल गयी है. जिले के छौड़ाही प्रखंड का बड़ेपुरा गांव देशी शराब बनाने का पहले लघु उद्योग के रूप में जाना जाता था.बड़ेपुरा चौक पर शराब का कारोबार करने वाले युवक उपेंद्र सहनी ने अपनी आपबीती सुनाते हुए बताया कि कुछ लोगों के कहने पर मैंने भी शराब बेचना शुरू किया.अच्छी खासी आमदनी हुई और खुद पीने की लत लग गयी तो बरबादी भी जमकर हुई.सुबह शाम यहां के लोग शराब में डूबे रहते थे,लेकिन एकाएक परिस्थितियां बदल गयीं. सहनी का कहना है कि मैं खुद ही शराब पीता था और इस चक्कर में लाखों रुपये बरबाद हो गये . लेकिन शराबबंदी के बाद मैं विगत 10 माह से एक मिठाई की दुकान चलाता हूं. जिससे परिवार का भरण पोषण हो रहा है. इस कारोबार से जो इनकम हो रहा है उस राशि से इन दिनों लकड़ी और मछली पालन का भी काम शुरू कर दिया है. शराबबंदी के बाद खुद की सेहत तो सुधरी ही अपने परिवार के साथ -साथ बड़ैपुरा गांव की तसवीर भी बदल गयी.
अब बेचने लगे पतंजलि के प्रोडक्ट
जिले में शराब के कारोबारियों में प्रकाश कुमार ज्योति का बड़ा नाम था. शराबबंदी से पहले इनकी देसी-विदेशी दारू की कुल 45 दुकानें यहां चल रही थीं. इसमें करीब तीन करोड़ की पूंजी लगी थी. शराबबंदी के बाद ज्योति कुछ समय तक समझ नहीं पा रहे थे कि अब क्या करें. किसी अन्य धंधे का अनुभव भी नहीं था. सगे-संबंधियों तथा दोस्तों से राय ली. फिर निर्णय लिया, क्यों न पतंजलि का प्रोडक्ट बेचा जाये. फिर करीब 70 लाख रुपये की पूंजी लगाकर पतंजलि के प्रोडक्ट की दुकान उन्होंने खोल ली. कुछ ही दिनों में दुकान चल निकली. अब पतंजलि के चेन स्टोर खोलने की योजना पर काम चल रहा है. ज्योति ने बताया कि शराब के कारोबार में पैसा तो बहुत आता था, पर शांति नहीं थी. अब पैसा कम कमा रहे पर मन को बड़ा सुकून मिल रहा है. इस व्यवसाय से जुड़ने के बाद दिनचर्या बदल गयी है. कारोबार बंद हो जाने के बाद लाखों रुपये डूब जाने की टीस है. अब भी दारू के धंधे के 45 लाख रुपये जगह-जगह फंसे हैं.
स्टाफ चला रहे लिट्टी-चोखा की दुकान
सूबे में शराबबंदी के बाद शराब के कारोबारी अब कमाई के लिए दूसरे रास्ते अपना रहे हैं. कई शराब कारोबारी जमीन बिक्री का धंधा करने लगे हैं. पहले की शराब दुकानों पर कार्य करने वाले स्टाफ अब लिट्टी-चोखा व नाश्ते की दुकान चला रहे हैं. जिले में देसी-विदेशी शराब की 219 दुकानें थीं. बिहारशरीफ में 33 देसी व 10 विदेशी शराब की दुकानें थीं. इन दुकानों में से कई में अब भी ताले लगे हैं, तो कुछ दुकानों में मोटर बाइंडिंग, तो कुछ में टाइल्स की दुकानें खुल गयी हैं. शराबबंदी के बाद बड़े व्यवसायियों में कुछ ने अपना धंधा ही बदल लिया है, जबकि कुछ दूसरे प्रदेश में जाकर अपना व्यवसाय करने लगे हैं. शहर का प्रसिद्ध मिर्ची बीयर बार अब होटल एंड रेस्टोरेंट के रूप में अपनी सेवा दे रहा है. रामचंद्रपुर बस स्टैंड के पास देसी शराब की दुकान में लिट्टी -चोखा व नाश्ते की दुकान चल रही है. नाला रोड मछली मार्केट के पास चाय व नाश्ते की दुकान चल रही है. भराव पर चौक से दक्षिण की दो दुकानों में अब भी ताले लटके हैं. भैंसासुर मोड़ के पास की दुकान में मोटर वाइडिंग की दुकान खुल गयी है. नगर निगम के पास वाली शराब की दुकान में अब भी ताला लटका है. शराब की दुकानें बंद होने से ऐसे कारोबारियों के जीवन में बहुत बदलाव आया है.
खेती-बाड़ी कर चला रहे आजीविका
शराबबंदी के बाद शराब के अधिकतर कारोबारी शराब का व्यवसाय छोड़ कर खेती व अन्य व्यवसाय से जुड़ गये हैं. शराब के पूर्व करोबारी राजीव कुमार सिंह बताते हैं कि मेरे पास पहले कंपोजिट शराब की दो दुकानें थीं. एक दुकान सदर प्रखंड क्षेत्र के अगहरा में थी और दूसरी दुकान खैरा प्रखंड क्षेत्र के गोपालपुर में. शराब का कारोबार बंद होने के बाद कुछ दिनों तक तो परेशानी जरूर हुई लेकिन इसके बाद मैंने खेती और अन्य रोजगार प्रारंभ कर दिया. जिससे अब किसी भी प्रकार की परेशानी नहीं होती है. शराब का कारोबार बंद होने के बाद भी अब परिवार के भरण-पोषण में किसी भी प्रकार की परेशानी नहीं होती है. शराब की दुकान रहने पर शाम होते ही दुकान के पास शराब पीने वालों का जमावड़ा लग जाता था और शराब पीने वालों के बीच में किसी बात को लेकर बहस हो जाया करती थी. लेकिन अब इस झंझट से मुक्ति मिल गयी है और अब किसी भी प्रकार की परेशानी नहीं हो रही है.
बदला रास्ता, जुड़े शिक्षा के व्यवसाय में
शराबबंदी लागू हुई, तो शराब के कारोबार में लगे लोगों ने भी व्यवसाय का एक नया विकल्प ढूंढ़ लिया. औरंगाबाद जिले में जो लोग पहले शराब के व्यवसाय से जुड़े थे या फिर जिनका बड़े पैमाने पर ठेका चलता था, आज वे सामाजिक दायित्वों को निभाते हुए कोई शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रहा है तो कोई अन्य व्यवसाय में लगा है. शराब के व्यवसाय से जुड़े व्यवसायी विनय प्रसाद ने शराबबंदी के बाद रास्ता बदल लिया है. अब बच्चों की शिक्षा की ओर ध्यान दे रहे हैं. इस सोच के तहत औरंगाबाद जिले के ओबरा प्रखंड में अपनी मां की स्मृति में लक्ष्मी पब्लिक स्कूल खोला है. इसके अलावा एक बीएड कॉलेज की स्थापना करने का भी प्लान है. शहर के सबसे पुराने शराब व्यवसायी रामावतार प्रसाद ने भी शराबबंदी के बाद अपना व्यवसाय बदल लिया है. अब वह टाइल्स व मार्बल की दुकान चला रहे हैं.
शीतल पेय के कारोबार में लगायी पूंजी
शहर के गौरक्षणी निवासी और शराब के पूर्व कारोबारी मोहन सिंह बताते हैं कि वह 1990 से शराब का कारोबार करते आ रहे थे. सरकार ने शराबबंदी की घोषणा कर दी. नये काम के बारे में सोचने लगा. अगस्त, 2016 में शराब की दुकान में सब्जी की दुकान खोली. कुछ दिन बाद ही दुकान बंद करनी पड़ी. दिसंबर में मैंने बिग कोला का सीएनएफ ले लिया. वर्तमान में काम चल रहा है. जिले में उनकी शराब की छह दुकानें थीं. करीब तीन करोड़ रुपये का सालाना कारोबार शराब का था. अब नये सिरे से कारोबार खड़ा करने की कोशिश में लगा हूं.
शहर के पुराने कारोबारी गोविंद कुमार गुलाटी ने कहा कि उनके पिता जी भी शराब की दुकान चलाते थे. विरासत में यही काम उन्हें भी मिला. करीब 40 वर्ष से शराब के कारोबार में थे. सालाना कारोबार करीब डेढ़ करोड़ रुपये का था. सरकार के एक फैसले से सब खत्म हो गया. अब पेट पालने के लिए पटना में डाकबंगला चौराहा के पास पाल स्वीट्स नाम की दुकान चला रहा हूं. परिवार को भी अपने साथ पटना ले आये. मिठाई की दुकान से शराब की तुलना में आमदनी बहुत कम है. लेकिन, परिवार की परवरिश सही तरीके से हो जाता है. सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि मन में अब शांति रहती है.
सिर्फ तीन दुकानदारों ने खोले सुधा दूध के काउंटर
शराबबंदी के बाद सुधा दूध का नया बूथ खोलने के प्रस्ताव का कोई खास असर जिले में नहीं दिख रहा है. इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि गया जिले में शराब की 133 दुकानें थीं, जिनमें मात्र तीन दुकानदारों ने ही बूथ आवंटित करने की इच्छा जतायी. मगध सुधा डेयरी के मार्केटिंग कामकाज से जुड़े अधिकारी मनोज कुमार बताते हैं कि नयी उत्पाद नीति को लेकर 133 शराब दुकानदारों को 23 फरवरी, 2016 को पत्र भेजा गया.
उनसे लगातार टेलीफोन पर भी संपर्क किया गया. लेकिन, इसके लिए सिर्फ तीन दुकानदार ही आगे आये. सुधा दूध का काउंटर खोलनेवाले केदार प्रसाद बताते हैं कि वह वर्ष 2000 से शराब के कारोबार से जुड़े थे. शराबबंदी हुई, तो आमदनी की चिंता सताने लगी थी. इस बीच, सरकार के प्रस्ताव के तहत दूध का काउंटर खोला. हालांकि इससे शराब जैसी आमदनी नहीं होती है, लेकिन सामाजिक प्रतिष्ठा में इजाफा हुआ है.
कई वर्षों तक शराब के कारोबार से जुड़े रहनेवाले पूर्व जिला पर्षद उपाध्यक्ष डॉ शीतल प्रसाद यादव ने बताया कि इसमें कोई दो राय नहीं है कि शराब की दुकानें बंद होने से काफी संख्या में लोग बेरोजगार हो गये. बेरोजगार हुए लोगों में कुछ तो अपने गांव लौट गये और कुछ किसी न किसी प्राइवेट एजेंसी में काम करने लगे. उन्होंने बताया कि गया कॉलेज मोड़ के पास स्थित एक शराब दुकान में जहानाबाद के शकूराबाद के पंडौल के रहनेवाले विनोद कुमार काम करते थे. शराबबंदी के बाद वह अब अपने गांव लौट गये. वहां खेती-बाड़ी में जुट गये.
बड़े कारोबारियों ने पकड़ी नेपाल-झारखंड की राह
सूबे में शराबबंदी भले ही लागू हो गयी है, लेकिन जिले के कारोबारियों का धंधा नहीं बदला है. यह अलग बात है कि शराब के कारोबार के लिए बड़े कारोबारियों ने नेपाल व झारखंड का रुख कर लिया है. वहीं छोटे शराब कारोबारियों ने अलग-अलग व्यवसाय व ठेकेदारी शुरू कर दी है. शराबबंदी के दस माह बाद भी जिले के किसी भी कारोबारी को सुधा दूध का बूथ नहीं मिल पाया है.
शराब की दुकानों की जगह एटीएम, जनरल स्टोर्स, हार्डवेयर, जूता व चप्पल की दुकानें दिख रही हैं. शराबबंदी के बाद सबसे ज्यादा परेशान शराब दुकानों में काम करने वाले स्टाफ हैं, जो अब भी रोजगार के लिए भटक रहे है. बड़े कारोबारी शराब के व्यवसाय में लगी पूंजी लेकर पड़ोसी राज्य झारखंड व पड़ोसी देश नेपाल के इलाकों में चले गये हैं. जहां शराब के कारोबार के जरिये ही खुद को स्थापित करने में लगे हैं. बड़े कारोबारी शराब के कारोबार में होने वाली कमाई को भूल नहीं पा रहे हैं. लिहाजा व्यवसाय छोड़ने के बजाय इलाके को ही छोड़ दिया है. हालांकि कुछ बड़े कारोबारियों ने कारोबार का ट्रेंड ही बदल लिया है. मसलन कुछ ने सीमेंट, बालू, छड़ आदि भवन निर्माण सामग्री की दुकानें खोल ली हैं, तो कुछ कारोबारी अनाज आढ़त के कारोबार में लग गये है. जिले में देसी, विदेशी व कंपोजिट समेत कुल 228 शराब दुकानों के ठेके चलते थे. जहां से उत्पाद विभाग को हर माह करोड़ों की आय होती थी.
रियल स्टेट व कंस्ट्रक्शन के क्षेत्र में फैलाया पांव
पूर्वी चंपारण जिले में शराबबंदी के बाद यहां के व्यापार में बड़ा बदलाव हुआ है. वर्षों पुराने शराब के व्यवसाय के बंद होने के बाद आज दर्जनों व्यवसायी दूसरे व्यापार में अपना हाथ अाजमा रहे हैं. इस व्यवसाय से जुड़े शहर की एक बड़ी हस्ती बुलबुल सिंह एंड कंपनी जिले ही नहीं, बल्कि सूबे के लिए जाना पहचाना नाम है. अरबों के ट्रांजेक्शन में शराब का कारोबार करनेवाली इस कंपनी के पार्टनरों ने विभिन्न क्षेत्रों में अपना अलग-अलग व्यवसाय खड़ा कर लिया है. बुलबुल सिंह ने भी शराबबंदी के बाद रियल स्टेट एवं कंस्ट्रक्शन के क्षेत्र में अपना पांव फैलाया है, तो उनके अनुज राजू सिंह ने स्कूली शिक्षा की ओर रुख कर लिया है. शहर से सटे ढाका रोड में करोड़ों की लागत से आधुनिक विद्यालय का निर्माण कार्य जारी है.
इसके अलावा राजू ने अपने पुराने व्यवसाय पथ एवं भवन निर्माण में ठेकेदारी का काम भी शुरू किया है. शराबबंदी से पूर्व बेगूसराय, नवादा, सहरसा, पटना सहित दर्जनों जिलों में शराब निर्माण एवं बिक्री के क्षेत्र में यह कंपनी बड़े पैमाने पर सरकारी लाइसेंसी शराब का कारोबार करती थी. शराबबंदी के बाद बेरोजगारी दूर करने के लिए सुधा दूध का बूथ खोलने की सरकारी घोषणा हवा-हवाई ही रही. बताया गया कि शराबबंदी के बाद जिले में एक भी सुधा दूध के बूथ नहीं खोले गये हैं. इससे स्पष्ट है कि किसी शराब कारोबारी को सुधा दूध का बूथ आवंटित नहीं हुआ है.

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