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कभी पॉकेट सीट, अब पत्नी लड़ेगी; कोई फिर से मैदान में

आरक्षण के खेल में निगम राजनीति की धूरी रहनेवाले लगातार तीन बार वार्ड 52 के पार्षद व शहर के मेयर अफजल इमाम की सीट महिला के लिए आरक्षित हाेगयी हैं, जो पिछली बार सामान्य के लिए आरक्षित थी. वार्ड की जनसंख्या 23,172 है. लगभग 80 फीसदी मुसलिम आबादी है. मेयर का वार्ड होने के कारण […]

आरक्षण के खेल में निगम राजनीति की धूरी रहनेवाले लगातार तीन बार वार्ड 52 के पार्षद व शहर के मेयर अफजल इमाम की सीट महिला के लिए आरक्षित हाेगयी हैं, जो पिछली बार सामान्य के लिए आरक्षित थी. वार्ड की जनसंख्या 23,172 है. लगभग 80 फीसदी मुसलिम आबादी है. मेयर का वार्ड होने के कारण खासा चर्चा में है.
इस वार्ड की जनसंख्या 38,260 है. इस वार्ड में एससी 4,641 है. पॉस क्षेत्र बोरिंग रोड, एसकेपुरी, बोरिंग केनाल रोड आदि पड़ता है. पिछली बार अनुसूचित वर्ग महिला के लिए आरक्षित था. अब सामान्य वर्ग महिला के लिए हो गया है. बीते चुनाव में अनुसूचित वर्ग महिला होने से छह उम्मीदवार चुनाव लड़े थे. लेकिन, इस बार सामान्य महिला होने से उम्मीदवारों की संख्या बढ़ेगी, जो चुनौती भरी होगी.
वर्तमान पार्षद गुलफिशां जबीं को कोई विशेष अंतर नहीं पड़ रहा है. वार्ड की जनसंख्या 23,172 है. एसी वर्ग की जनसंख्या 1,170 है. पिछली बार इस वार्ड का आरक्षण नहीं था. इस वार्ड में यादव, कायस्थ व भूमिहार की जनसंख्या 65 फीसदी है. वहीं, मुसलिम जनसंख्या 35 फीसदी के करीब है. इस बार के चुनावी समीकरण में पिछली बार के प्रतिद्वंदी ही आमने-सामने रहेंगे. काम का दावा किया जा रहा है.
लेकिन, आरक्षण के आधार व जातीय समीकरण ही असल वजह होगी.
आरक्षण में बदलाव के कारण वो अपनी पत्नी डॉक्टर महजबीं शाहिन को लड़ाने की तैयारी में हैं. तीन बार से पार्षद और रिकार्ड वोटों से जीतने के बाद अब पत्नी को लड़ना मजबूरी है. उनका दावा है कि वोट लिए पत्नी को पहचान बनाने की जरूरत नहीं होगी.
इसराइल रजा कहते हैं कि कोई भी चुनाव में लड़े. इसका फायदा तो बाद में पता चलेगा. अभी वार्ड 52 महिला के लिए आरक्षित हुआ है, जो एक महिला सशक्तिकरण के लिए बेहतर कदम है. महिला उम्मीदवार रहने से आदर्श वार्ड बनाने में और मदद होगी. अफजल इमाम मेयर हैं, इसलिए पूरे शहर की जिम्मेवारी अब महिला पार्षद पर रहेगी.
गुलफिंशा जबीं अब अपनी बहन शमा परवीन को इस वार्ड से चुनाव लड़ाने की तैयारी में है. इस वार्ड को पहली बार महिला के लिए आरक्षित होने का फायदा मिल रहा है. मुसलिम जनसंख्या होने से जीत का दावा किया जा रहा है.
चुनौती से फर्क नहीं पड़ता. महिला को ही इस वार्ड की बागडोर मिलेगी. पिंकी कुमारी के अनुसार पिछली बार पिछड़ा वर्ग महिला के लिए था, अब सामान्य वर्ग महिला का है. फायदा या नुकसान वाली कोई बात नहीं है. हालांकि, इस पर चर्चा होती रही है
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प्रमोद कुमार निराला का कहना है कि महिला आरक्षण से वार्ड के लोगों को एक फायदा मिलता है. विधवा व वृद्धा पेंशन बनवाने में महिलाएं विशेष तत्पर रहती हैं. सामान्य महिला को सीट मिला है, तो जाहिर तौर पर उम्मीदवारी बढ़ेगी.
2002 में पार्षद रहे व 2007 में अपनी पत्नी मंजू राय को लड़ाने वाले विनोद कुमार कहते है कि किसी भी स्तर पर चुनाव लड़ने की तैयारी है. अगर पुरुष वर्ग के खाते में सीट जाता, तो मैं लड़ता. लंकिन, अब पत्नी को चुनाव लड़ाना हैं. क्षेत्र में मेरी पूरी पकड़ है. शुरू से इस क्षेत्र के लिए लड़ता रहा हूं. मेरे वर्ग से आनेवाले लोग इस वार्ड में अधिक है. इस बार पूरी तैयारी है.
गुलफिशा जबीं की छवि एक सशक्त महिला के रूप में है. सामान्य वर्ग का सीट होने के बावजूद उन्होंने चुनाव लड़ा था और जीत भी मिली थी. पहले मेयर को समर्थन और बाद में विरोध के लिए काफी चर्चा में रहीं. उनका कहना है कि आरक्षण से कोई फर्क नहीं पड़ता.
इधर वार्ड 53 के रहनेवाले मोहन कुमार का कहना है कि महिला होने से कोई फर्क नहीं पड़ता. चुनाव तो वहीं लोग लड़ेंगे, जो राजनीति में हैं. पुरुष का सीट नहीं होने से उनकी महिला चुनाव लड़ेंगी. लोगों को महिला नेता को वोट देना चाहिए, तथा उन्हें आगे बढ़ने का मौका मिले. चुनाव में जीत या हार किसी की हो, हमें तो अपने वार्ड में विकास चाहिए.
राजकपूर यादव कहते हैं कि आरक्षण महिलाओं के लिए हो गया है. इसलिए पत्नी को चुनाव लड़ा रहा हूं. अगर आरक्षण महिला के लिए नहीं होता, तो मैं खुद चुनाव लड़ता. उनका कहना है कि महिला उम्मीदवार रहने से कम लोग चुनाव मैदान में उतरेंगे.

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