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सहकारिता बैंकों में पुराने नोट के लेन-देन पर पाबंदी का विरोध, मंत्री ने पीएम को लिखा पत्र

पटना : राज्य के सहकारिता मंत्री आलोक मेहता ने देशभर के सहकारिता बैंकों में 500 और हजार रुपये के पुराने नोटों के लेन-देन पर पाबंदी लगाने के केंद्र सरकार के फैसले की निंदा की है. बुधवार को नये सचिवालय स्थित अपने कार्यालय में आयोजित प्रेस वार्ता में इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए उन्होंने केंद्र से तत्काल […]

पटना : राज्य के सहकारिता मंत्री आलोक मेहता ने देशभर के सहकारिता बैंकों में 500 और हजार रुपये के पुराने नोटों के लेन-देन पर पाबंदी लगाने के केंद्र सरकार के फैसले की निंदा की है. बुधवार को नये सचिवालय स्थित अपने कार्यालय में आयोजित प्रेस वार्ता में इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए उन्होंने केंद्र से तत्काल प्रभाव से इस फैसले को वापस लेने की मांग की है.
इस मसले पर उन्होंने प्रधानमंत्री, केंद्रीय वित्त मंत्री, केंद्रीय कृषि मंत्री और आरबीआइ के गवर्नर को पत्र भी लिखा है. उन्होंने कहा कि सहकारिता बैंकों को अन्य वाणिज्य बैंकों की तरह ही सभी तरह की सुविधा प्रदान की जाये. ताकि वे किसानों के हितों में खुलकर काम कर सकें. सहकारिता मंत्री ने केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली के उस बयान की भी कड़ी निंदा की है, जिसमें कहा गया था कि सभी सहकारिता बैंक नेताओं के बैंक हैं.
आलोक मेहता ने कहा कि यह सामाजिक और प्रजातांत्रिक बैंक है, जिसमें तकरीबन सभी खाते किसानों के ही होते हैं. मंत्री ने कहा कि इस तरह के प्रतिबंध से राज्य में धान की अधिप्राप्ति नहीं हो पायेगी. अगर राज्य में इस बार धान अधिप्राप्ति में किसी भी तरह की कमी आती है, तो इसका मुख्य कारण सिर्फ नोटबंदी ही होगी. पिछले वर्ष इस समय तक सहकारिता बैंकों के माध्यम से साढ़े तीन हजार करोड़ रुपये की धान अधिप्राप्ति की जा चुकी थी, लेकिन इस वर्ष अभी तक यह शुरू तक नहीं हो सका है. उन्होंने कहा कि राज्य में मौजूद 22 सहकारिता बैंकों की 300 से ज्यादा शाखाएं हैं, जिनमें 1.17 करोड़ किसानों के बैंक खाते हैं. केंद्र के इस फैसले से इतनी बड़ी संख्या में किसानों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.
इन बैंकों से किसान सीधे तौर पर जुड़े रहते हैं. ऐसे में यह फैसला उन्हें हर तरह से प्रभावित कर रहा है. रबी की बुआई, धान की कटनी और अधिप्राप्ति हर कृषि कार्य हर तरह से चौपट हो जायेंगे. उन्होंने कहा कि किसानों के पास नकदी पैसे ही होते हैं, जिनकी बदौलत वह अपना कारोबार करते हैं. अकेला सहकारिता बैंक ही उनका सहारा होता है. ऐसे में केंद्र का इस तरह का निर्णय काफी दुखद है.

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