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राज्य में बैंकों की उदासीनता से योजनाओं की रफ्तार सुस्त
एसएलबीसी की बैठक. बैंकों का सीडी अनुपात घटा 15 लाख किसानों को केसीसी देने का लक्ष्य रखा गया है, जिसमें 19.54 प्रतिशत की उपलब्धि हासिल हुई है. पटना : राज्य में बैंकों के सितंबर 2016 तक के प्रदर्शन की समीक्षा करने के लिए आयोजित एसएलबीसी (स्टेट लेबल बैंकर्स कमेटी) की 58वीं बैठक में बैंकों का […]
एसएलबीसी की बैठक. बैंकों का सीडी अनुपात घटा
15 लाख किसानों को केसीसी देने का लक्ष्य रखा गया है, जिसमें 19.54 प्रतिशत की उपलब्धि हासिल हुई है.
पटना : राज्य में बैंकों के सितंबर 2016 तक के प्रदर्शन की समीक्षा करने के लिए आयोजित एसएलबीसी (स्टेट लेबल बैंकर्स कमेटी) की 58वीं बैठक में बैंकों का कर्ज देने के प्रति बेहद उदासीन रवैया सामने आया. बिहार में बैंकों का सीडी रेसियो (साख-जमा अनुपात) पिछली बार से घट गया. पिछली बार यह 44.99 था, जो इस बार गिरकर 43.95 तक पहुंच गया. जबकि सीडी रेशियो का राष्ट्रीय औसत 78 प्रतिशत है. भोजपुर, सारण और सीवान जिले का सीडीआर 30 प्रतिशत से भी कम है.
सभी बैंकों को मौजूदा वित्तीय वर्ष 2016-17 के लिए एक लाख हजार करोड़ के वार्षिक साख योजना (एसीपी) का लक्ष्य दिया गया है, जिसमें अभी तक महज 42 फीसदी की उपलब्धि हासिल हुई है. किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) में 15 लाख किसानों को देने का लक्ष्य रखा गया है, जिसमें 19.54 प्रतिशत की उपलब्धि हासिल हुई है. इसके अलावा 11 लाख पुराने केसीसी का नवीनीकरण किया गया. एसएलबीसी की बैठक में यह बात भी सामने आयी कि विमुद्रीकरण के कारण पांच सौ और हजार के नोट बंद हुए हैं, इसकी वजह से बैंकों का सीडी रेशियो ज्यादा गिरने की संभावना है.
ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार ने कहा कि जीविका योजना को सुचारु ढंग से चलाने में बैंकों की रुचि नहीं है. इस वर्ष बनाये गये 44 हजार नये स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) में सिर्फ 500 के ही खाते खोले और ऋण दिये गये हैं. जबकि पिछले वर्ष यह आंकड़ा 1.40 लाख था. एसएचजी को बैंकों से मिलने वाले ऋण की राशि को 75 हजार से बढ़ा कर 1.50 लाख कर दिया गया है. उन्होंने कहा कि इस मामले में एसबीआइ जैसे बड़े बैंकों से ज्यादा अच्छी स्थिति उत्तर बिहार और मध्य बिहार ग्रामीण बैंकों की है.
बैंक नहीं कर रहे सहयोग : अवधेश
पशुपालन एवं मत्स्य संसाधन मंत्री अवधेश कुमार सिंह ने कहा कि पशुपालकों, मछली पालकों या डेयरी के क्षेत्र में बैंक ऋण देने में सबसे ज्यादा उदासीन हैं. एससी-एसटी तबके को ऋण देने में इनकी लापरवाही सबसे ज्यादा है. महज 13 फीसदी दलितों को ही ऋण मिला है.
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