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पैसे का आना धीमा, घटेगा योजना आकार

केंद्रीय पूल की तरफ से अब तक सात किस्तें आयीं पटना : पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में मौजूदा वित्तीय वर्ष 2016-17 के बजट में योजना आकार में करीब 35 फीसदी की बढ़ोतरी तो कर दी गयी. परंतु अब केंद्र की तरफ से रुपये के आने की रफ्तार बेहद कम होने की वजह से इसमें […]

केंद्रीय पूल की तरफ से अब तक सात किस्तें आयीं

पटना : पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में मौजूदा वित्तीय वर्ष 2016-17 के बजट में योजना आकार में करीब 35 फीसदी की बढ़ोतरी तो कर दी गयी. परंतु अब केंद्र की तरफ से रुपये के आने की रफ्तार बेहद कम होने की वजह से इसमें कटौती होने की आशंका है. अगर पैसे के आने की रफ्तार मौजूदा स्थिति जैसी ही बनी रही, तो इस बार राज्य का योजना आकार 55 से 60 हजार करोड़ के बीच ही सिमट जायेगा. यानी इस बार निर्धारित योजना आकार करीब 71 हजार करोड़ के बराबर भी रुपये खर्च करने के लिए नहीं जुट पायेगा.

इसका खामियाजा सीधे तौर पर राज्य में चलने वाली योजनाओं को होगा. इस वित्तीय वर्ष में केंद्र प्रायोजित योजनाओं और अन्य योजना मद में करीब 32 हजार करोड़ रुपये देने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है, लेकिन इसमें अब तक केंद्र ने महज 11 हजार 660 करोड़ रुपये ही दिया है. इसी तरह बीआरजीएफ (बैकवर्ड रीजन ग्रांट फंड) के अंतर्गत निर्धारित छह हजार 500 करोड़ रुपये में एक रुपये भी नहीं आये हैं. केंद्रीय योजनाओं में रुपये का आवंटन नहीं होने और ग्रांट देने में कमी होने के कारण राज्य के समक्ष यह समस्या उत्पन्न हो गयी है.

वहीं, दूसरी तरफ केंद्रीय पूल की तरफ से निर्धारित 55 हजार 233 करोड़ रुपये में आधा आवंटन आ गया है. इस मद के रुपये के आने में कोई खास समस्या नहीं है. 14 किस्तों में ये रुपये राज्य को मिलते हैं, इसमें अब तक सात किस्तों में करीब 27 हजार 500 करोड़ रुपये प्राप्त हो चुके हैं. परंतु सबसे अहम जो केंद्रीय योजनाओं के ग्रांट के तहत रुपये आना है, वही नहीं आ रहा है. इस वजह से मनरेगा, पीएमजीएसवाय, दिन दयाल उपाध्याय विद्युतीकरण योजना, एनआरएचएम समेत अन्य अहम योजनाओं की रफ्तार बेहद धीमी हो गयी है. केंद्र सरकार पहले ही इन योनजाओं में राज्य और केंद्र के शेयरिंग पैटर्न को 90-10 से बदल कर 50-50 या 60-40 (60 फीसदी राज्य की हिस्सेदारी, 40 फीसदी केंद्र की हिस्सेदारी) कर दिया है. ऐसी योजनाओं को चलाने में पहले ही राज्यांश बढ़ा हुआ है. इस पर से केंद्र की तरफ से रुपये के आने की रफ्तार बेहद धीमी है. ऐसे में योजनाएं की रफ्तार फंसना लाजमी है. योजनाओं में आवंटन नहीं आने से योजना आकार भी काफी सिकुड़ जायेगा. मौजूदा वित्तीय वर्ष के खत्म होने में महज पांच महीने ही बचे हैं.

फिर भी रुपये आने की रफ्तार बेहद कम है. प्रधानमंत्री ने लोकसभा चुनाव के दौरान विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत एक लाख 40 हजार करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की थी. इसमें भी अब तक एक रुपये राज्य को नहीं मिले हैं. इसमें भी अगर कुछ रुपये राज्य को मिलते, तो काफी राहत हो जाती.

इसके अलावा राज्य सरकार ने अपने आंतरिक स्रोतों से इस वित्तीय वर्ष में 32 हजार करोड़ रुपये टैक्स संग्रह का लक्ष्य रखा है. इसमें अब तक 10 हजार 500 करोड़ रुपये आये हैं. अब तक लक्ष्य का एक तिहाई रुपये ही टैक्स संग्रह हो पाया है.

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