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दारोगा ही नहीं, नेता भी करते हैं बार बालाओं के साथ डांस

कोइलवर के दारोगा निलंबित कर दिये गये. उन पर बार बालाओं के साथ खुलेआम फूहड़ डांस करने का आरोप है. अधिकृत जानकारी के अनुसार जांच होगी. दोषी पाये जाने पर उन पर कार्रवाई होगी.फिलहाल तो उन्हें निलंबित होना ही चाहिए था. पर, ऐसा काम इस राज्य के कुछ नेतागण भी यदा-कदा करते पाये जाते हैं. […]

कोइलवर के दारोगा निलंबित कर दिये गये. उन पर बार बालाओं के साथ खुलेआम फूहड़ डांस करने का आरोप है. अधिकृत जानकारी के अनुसार जांच होगी. दोषी पाये जाने पर उन पर कार्रवाई होगी.फिलहाल तो उन्हें निलंबित होना ही चाहिए था. पर, ऐसा काम इस राज्य के कुछ नेतागण भी यदा-कदा करते पाये जाते हैं. बार बालाओं के साथ अश्लील डांस की उनकी तसवीरें चैनलों पर भी समय-समय दिखायी पड़ जाती है. ऐसे कारनामे को लेकर उत्तर बिहार के एक सत्ताधारी विधायक कुछ अधिक ही चर्चित रहे हैं. पर उन नेताओं पर उनके दल की ओर से किसी तरह की कार्रवाई की कोई खबर अब तक नहीं मिली है.

ऐसे नेताओं पर उनके दलों ने अनुशासनात्मक कार्रवाइयां की होती तो संभवत: कोइलवर के दारोगा जी को ऐसा भोंड़ा काम करने की हिम्मत नहीं होती. संभवत: कुछ लापरवाह अफसर यह समझते हैं कि जो सत्ताधारी दल के विधायक कर सकते हैं, वह काम करने में कोई हर्ज नहीं है. दरअसल विधायक, दारोगा और अंचल अधिकारी राज्य की सत्ता के तृणमूल स्तर पर प्रतिनिधि होते हैं. इनके ईमानदार, शालीन और कर्त्तव्य परायण होने मात्र से राज्य सरकार की छवि आम लोगों में निखरती है. यदि बातें इसके विपरीत हुईं तो समझ लीजिए कि राज्य की प्रशासनिक और राजनीतिक कार्यपालिका के बारे में संबंधित इलाके के लोग क्या सोचेंगे. कैसी धारणा बनायेंगे? बेहतर धारणा बने, इसलिए भी बार बालाओं के साथ ऐसे फूहड़ और अश्लील नाच करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करना जरूरी है.
क्योंकि सिर्फ थाना, अंचल या विधानसभा क्षेत्र स्तर पर शासन व राजनीति की शुचिता बनाये रखने का ही सवाल नहीं है. बल्कि इससे कुल मिलाकर राज्य शासन की भी प्रतिष्ठा जुड़ी हुई है.
49 रुपये मासिक पर फोन कनेक्शन कब तक बीएसएनएल ने गत अगस्त में यह घोषणा की थी कि मात्र 49 रुपये के मासिक किराये पर ग्रामीण के साथ-साथ शहरी क्षेत्रों में भी लैंडलाइन कनेक्शन दिया जा रहा है. इस घोषणा के बाद कनेक्शन की ऑनलाइन बुकिंग भी शुरू हो गयी. ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के मेरे अनेक परिचितों ने बुकिंग करायी. पर, उनमें से अब तक किसी परिचित के यहां कनेक्शन नहीं दिया जा सका है. वे लोग हैरान हैं. आखिर क्या हुआ? फिलहाल बीएसएनएल कहां कनेक्शन देने में व्यस्त है? कम से कम बीएसएनएल को लोगों को यह बताना चाहिए था कि कितनी संख्या में बुकिंग हो चुकी है और लोगों को कब तक कनेक्शन मिलेगा. उम्मीद है कि उपभोक्ताओं को जल्द ही ऐसी कोई सूचना मिलेगी.
अवसरवादिता की पराकाष्ठा
एक खबर आयी है कि चर्चित शेर सिंह राणा के एक करीबी रिश्तेदार को सपा ने विधानसभा का टिकट देने का फैसला किया है. शेर सिंह राणा फूलन देवी की हत्या के आरोप में जेल में है. याद रहे कि फूलन को सपा सरकार जेल से छुड़वा कर एमपी तक बनवा चुकी है.
सपा के ताजा फैसले का निषाद संघ विरोध कर रहा है. यदि टिकट देने के सपा के इस निर्णय की खबर पक्की है तो इसे आज की गिरती राजनीति की वास्तविक तसवीर ही माना जाएगा. याद रहे कि फूलन देवी कुछ दबंग लोगों के अत्याचार के कारण दस्यु बनी थी. उसने भी बदले में बेहमई गांव में 1981 में दबंग परिवारों के 22 लोगों का सामूहिक नर संहार कर दिया था. उस हत्याकांड को अनेक हलकों में ‘अत्याचार के खिलाफ विद्रोह’ करार दिया गया था. मुलायम सरकार ने फूलन देवी के खिलाफ चल रहे मुकदमों को 1994 में उठा लिया था. ग्यारह साल के बाद 1995 में वह जेल से बाहर आयीं. इतना ही नहीं सपा ने फूलन को 1996 में लोकसभा का उम्मीदवार बनाकर जितवा भी दिया.
उधर, बेहमई नर संहार का बदला लेने के लिए शेर सिंह राणा ने 2001 में दिल्ली में सपा सांसद फूलन देवी की हत्या कर दी. अब उसी शेर सिंह राणा के एक अत्यंत करीबी रिश्तेदार को सपा ने विधानसभा चुनाव में टिकट देने का फैसला किया है. इस खबर पर विश्वास तो नहीं होता, पर फिलहाल यह खबर आ ही गयी है तो उस पर इस देश के राजनीतिक लोगों और जनता को सोच-विचार कर ही लेना चाहिए. वैसे बेहतर होगा यदि निषाद मतों को ध्यान में रखते हुए सपा टिकट देने का अपना विचार इस बीच त्याग दे.
फूलन विरोधी को सपा टिकट!
पर, सपा ने शेर सिंह राणा के करीबी रिश्तेदार को टिकट देने के बारे में आखिर सोचा ही क्यों? दरअसल यह सपा की घबराहट की भी निशानी लग रही है. अगले विधानसभा चुनाव में उसे अपनी हार नजर आ रही है. उसे जीत में बदलने के लिए वह तरह-तरह की भावनाओं को उभारना चाहती है. शेर सिंह राणा के साथ भी एक तरह की भावना जुड़ी हुई है. वह एक समुदाय के कुछ लोगों का हीरो है. शेर सिंह राणा की 300 पेज की जेल डायरी भी छप चुकी है. याद रहे कि शेर सिंह राणा 2004 में तिहाड़ जेल से भाग निकला था.
वह बांग्लादेश होते हुए अफगानिस्तान पहुंच गया. वह पृथ्वीराज चौहान की समाधि का अवशेष लाने गया था. अवशेष के साथ लौटते समय वह कोलकाता में गिरफ्तार हो गया. वह उस अवशेष के आधार पर चौहान का भारत में स्मारक बनवाना चाहता था. क्या शेर सिंह राणा के साथ जुड़ी जन भावना को अब सपा भुनाना चाहती है? सपा फूलन देवी के साथ जुड़ी जन भावना को पहले ही भुना चुकी है. राजनीति में घोर अवसरवाद का यह नमूना है. ऐसे नमूने बिहार में भी मिल जाएंगे. बिहार के कम से कम ऐसे दो नेताओं को मैं जानता हूं जो बारी-बारी से सीपीआइ और भाजपा के विधायक रहे. कहां सीपीआइ और कहां भाजपा! पर, राजनीति में सब कुछ संभव है.
कछुए की चाल में नौकरशाही
केंद्र सरकार के कैबिनेट सचिव ने गत जून में सभी मंत्रालयोंऔर विभागों को यह निर्देश दिया कि वे अपने कामों का मासिक रिपोर्ट कार्ड सार्वजनिक करें. सरकार में पारदर्शिता लाने के लिए यह कदम उठाया गया. पर कछुए की चाल से चल रही केंद्रीय नौकरशाही का हाल कुछ और ही है. एक आकलन के अनुसार 92 प्रतिशत मंत्रालयों और 82 प्रतिशत विभागों ने कैबिनेट सचिव के निर्देश की अनदेखी कर दी. उधर. हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में एक खबर आयी है कि प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने एक दिन के लिए सरकारी काम से छुट्टी नहीं ली है.
इस देश का हाल यह है कि भले प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री बिना विश्राम के अनवरत काम करें, पर नौकरशाही कदम में कदम मिला कर नहीं चल सकती. ऐसे में इस देश का समुचित विकास कैसे होगा? सवाल है कि इसी देश में आपातकाल में रेलगाड़ियां भी समय पर क्यों चलती थीं? यह बात और है कि केंद्र और राज्यों में कुछ अफसरगण ऐसे जरूर हैं जो काम के बोझ से परेशान है. पर, यहां बात पूरी नौकरशाही की की जा रही है.
और अंत में
क्या आम लोग इस बात की कल्पना कर सकते हैं कि पटना के किसी ब्यूटी पार्लर की सेवा एक दफा लेने पर किसी को कितना खर्च आएगा? एक परिचित ने अनुभव के आधार पर सात हजार रुपये बताया. मेरे जैसे सामान्य व्यक्ति के लिए यह कल्पना से बाहर की बात है. पर ऐसा ही है. किसी अन्य पार्लर में यह राशि इससे अधिक भी हो सकती है. यानी बिहार जैसे गरीब राज्य में भी कुछ लोगों के पास अकूत पैसे आ गए हैं. ऐसे लोगों में राजनीति सहित कई पेशे के लोग हैं. इसे आप क्या कहेंगे?
सुरेंद्र किशोर
राजनीतिक विश्लेषक

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