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कैसे पूरा होगा मंडन मिश्र के गांव को संवारने का सपना

महिषी(सहरसा) pushyamitra@prabhatkhabar.in कहते हैं आदिगुरु शंकराचार्य जब पूर्व मीमांसा के प्रकांड विद्वान मंडन मिश्र से शास्त्रार्थ करने सहरसा के माहिष्मति(महिषी) गांव पहुंचे थे तो उनके द्वार पर उन्हें शुक-सारिकाएं(तोता-मैना) भी संस्कृत में शास्त्रार्थ करते नजर आये थे. आज भी आप अगर महिषी गांव जायेंगे तो आपको उग्रतारा मंदिर के बाहर प्रसाद सामग्री बेचने वाले की […]

महिषी(सहरसा)
pushyamitra@prabhatkhabar.in
कहते हैं आदिगुरु शंकराचार्य जब पूर्व मीमांसा के प्रकांड विद्वान मंडन मिश्र से शास्त्रार्थ करने सहरसा के माहिष्मति(महिषी) गांव पहुंचे थे तो उनके द्वार पर उन्हें शुक-सारिकाएं(तोता-मैना) भी संस्कृत में शास्त्रार्थ करते नजर आये थे. आज भी आप अगर महिषी गांव जायेंगे तो आपको उग्रतारा मंदिर के बाहर प्रसाद सामग्री बेचने वाले की दुकान मिलेगी जहां साइन बोर्ड संस्कृत में लिखा मिलेगा. महिषी गांव में संस्कृत और वेद अध्ययन की सुदीर्घ परंपरा रही है और इसी परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए कांचीपुरम के श्री कांची कामकोटि पीठम की ओर से वहां तीस सालों से बार-बार वेद अध्ययन केंद्र, आरोग्यशाला और पर्यटन केंद्र व अन्य संस्थानों की शुरुआत करने की कोशिश की जाती रही है. वे मंडन मिश्र को आदिगुरु शंकराचार्य का प्रमुख शिष्य और उत्तराधिकारी मानते हैं. मगर राज्य सरकार के सहयोग के अभाव में इस क्षेत्र का वेद अध्ययन और पर्यटन केंद्र के रूप में समुचित विकास नहीं हो पा रहा है.
महिषी के उग्रतारा मंदिर के पास ही एक अस्थायी झोपड़ीनुमा भवन में कांची पीठ द्वारा एक वेद अध्ययन केंद्र का संचालन 1993 से लगातार हो रहा है. इस केंद्र का संचालन एक स्थानीय व्यक्ति रमेश ठाकुर करते हैं. वे इस केंद्र के प्रधानाचार्य भी हैं. वे कहते हैं, 1987 में पहली दफा कांची पीठ ने सरकार को प्रस्ताव दिया था कि उन्हें कुछ जमीन लीज पर उपलब्ध करायी जाये ताकि वे मंडन मिश्र और उनकी पत्नी भारती के नाम से एक मंदिर, एक वेद पाठशाला और एक आयुर्वेद औषधशाला का निर्माण कर सकें. मगर सरकार की ओर से उन्हें जमीन उपलब्ध नहीं करायी गयी. फलतः एक स्थानीय भू-स्वामी से लीज पर एक एकड़ जमीन लेकर इस अस्थायी वेद विद्याकेंद्र का संचालन किया जा रहा है. 1998 से उन्हें कांची पीठ से एक छोटी सी राशि ग्रांट के रूप में मिल रही है. उनका दावा है कि महज 10 हजार रुपये प्रति माह के ग्रांट से वे छह शिक्षकों के साथ इस संस्थान को चला रहे हैं. उनके मुताबिक अभी केंद्र में 160 बच्चे पढ़ते हैं. हालांकि स्थानीय लोग कहते हैं कि बच्चों की संख्या 30-40 के आसपास ही है.
इस साल अप्रैल महीने में कांची पीठ की ओर से एक बार फिर सहरसा के डीएम को प्रस्ताव भेजा गया है कि वे कांची पीठ को महिषी के आसपास 50-60 एकड़ जमीन उपलब्ध करायें. वे वहां अपने पीठ का एक पारंपरिक औऱ सांस्कृतिक केंद्र स्थापित करना चाहते हैं. इस केंद्र में वेद पाठशाला, संस्कृत शिक्षकों का प्रशिक्षण केंद्र, और विभिन्न प्रशिक्षण संस्थान स्थापित होंगे. पीठ की ओर से बहुत जल्द मंडन मिश्र, उनकी पत्नी भारती और महिषी गांव के सुनहरे इतिहास को प्रकाश में लाने के लिए परियोजनाओं की श्रृंखला शुरू की जा रही है.

मगर इस प्रस्ताव को लेकर संभवतः जिला प्रशासन में बहुत उत्साह नहीं है. सहरसा के डीएम विनोद सिंह गुंजियाल कहते हैं कि एक तो जिला प्रशासन के पास महिषी गांव के पास इतनी जमीन नहीं है जो उन्हें दी जा सके और इसके अलावा कांची पीठ एक निजी संस्था है. अगर यह प्रस्ताव राज्य सरकार के किसी विभाग की तरफ से आया होता तो उनके लिए विचार करना सुविधाजनक होता.

सरकार की तत्परता के बिना काम आसान नहीं : मंडन मिश्र और उनकी पत्नी भारती संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे. कांची पीठ उन्हें शंकराचार्य का उत्तराधिकारी और अपनी पीठ का दूसरा पीठाधिपति मानता है. वह लगातार इस गांव में संस्कृत और वेद अध्ययन केंद्र और उनकी परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए प्रयासरत है. मगर जब तक सरकार औऱ प्रशासन तत्परता नहीं दिखाये यह काम आसान नहीं है. इस बीच मध्य प्रदेश के महेश्वर इलाके के लोगों का भी दावा है कि मंडन मिश्र और भारती उनके इलाके के थे और आदि गुरु शंकराचार्य से उनका प्रसिद्ध शास्त्रार्थ वहीं हुआ था. हालांकि कांची पीठ उनके दावे को स्वीकार नहीं कर रहा. पीठ से जुड़े लोग बताते हैं कि वे लोग बहुत जल्द सरकार के शिक्षा विभाग के अधिकारियों से संपर्क करने जा रहे हैं.
विद्यालय का भवन खंडहर में तब्दील
महिषी गांव की इस गौरवशाली परंपरा को आगे बढ़ाने में राज्य सरकार ने भी कभी बहुत उत्सुकता नहीं दिखायी. इसका नमूना है गांव में स्थित राजकीय संस्कृत उच्च विद्यालय. पिछले दिनों शिक्षा मंत्री अशोक कुमारी चौधरी जब इस विद्यालय का निरीक्षण करने पहुंचे तो पता चला कि 20 साल से अधिक समय से इस स्कूल में पढ़ाई नहीं हो रही है. इसकी वजह है कि स्कूल में एक भी शिक्षक नहीं है. सभी शिक्षक डेपुटेशन पर किसी और जगह काम कर रहे हैं. विद्यालय का भवन खंडहर में तब्दील हो चुका है. मंत्री महोदय के सक्रिय होने के बाद आनन-फानन में विद्यालय में एक या दो शिक्षक की प्रतिनियुक्ति की गयी. और एक अस्थायी भवन में कक्षाएं चालू हुईं. गांव में एक संस्कृत महाविद्यालय भी है, मगर उसकी स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है.

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