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एक-दो पैग पीने वालों के चक्कर में किसी को नहीं करेंगे बरबाद

पटना: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ताड़ी और शराबबंदी को लेकर अपने विरोधियों पर जमकर बरसे. उन्होंने कहा कि एक-दो पैग पीने वाले के चक्कर में सभी लोगों के जीवन को बरबाद नहीं करेंगे. राज्य के 98 फीसदी लोगों को शराबबंदी पसंद आ रही तो कुछ लोग क्यों बाधा डाल रहे हैं? विरोधी चाहे मेरा जितना कचरा […]

पटना: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ताड़ी और शराबबंदी को लेकर अपने विरोधियों पर जमकर बरसे. उन्होंने कहा कि एक-दो पैग पीने वाले के चक्कर में सभी लोगों के जीवन को बरबाद नहीं करेंगे. राज्य के 98 फीसदी लोगों को शराबबंदी पसंद आ रही तो कुछ लोग क्यों बाधा डाल रहे हैं? विरोधी चाहे मेरा जितना कचरा करना चाहे या मुझे कचरा बना दें, लेकिन जब यह शराबबंदी लागू हो गयी है तो वह जारी रहेगा. वे ताड़ वृक्ष आधारित उद्योग पर आयोजित राज्य स्तरीय प्रशिक्षण कार्यशाला में बोल रहे थे.

अधिवेशन भवन में मुख्यमंत्री ने कहा कि बहुत लोग ताड़ी को ही पौष्टिक बता रहे थे. वैसे लोग तो बहुत पीते हैं, उन्हें नशे में आनंद भी आता है, लेकिन शरीर को नीरा ही फायदा पहुंचाता है. यह आज की बात नहीं है. महात्मा गांधी के समय से बात आ रही है, तभी तो खादी ग्रामोद्योग में नीरा व उससे बने उत्पाद मिलते थे. जो लोग एक-दो पैग लेते थे वही इसका गलत प्रचार कर रहे हैं.

कुछ लोगों के हाथों में ताकत है कि वे बिगाड़ सकते हैं, तो बिगाड़िये ना. उन्होंने कहा कि जिन्हें एक-दो पैग लेते की आदत है, नीरा का ही सेवन करें. यह तो शरीर के लिए फायदेमंद है. शुरुआत में प्रयोग के तौर पर ही 10-15 दिन पीयें. उन्होंने कहा कि जिन पंचायतों व प्रखंडों में ताड़ के पेड़ ज्यादा हैं वहां सेंटर खोले जायें. साथ ही दो-चार पंचायतों या फिर जहां कम पेड़ हैं वहां प्रखंड स्तर पर सेंटर खोले जाये. जिस प्रकार कांफेड 100 किलोमीटर से दूध का कलेक्शन करता था उसी तरह ताड़ी का कलेक्शन किया जाये. इसके लिए नेटवर्क बनाना होगा. कांफेड को दूध की तरह नीरा को भी अपने हाथ में लेना होगा. इस मौके पर उद्योग मंत्री जयकुमार सिंह, कृषि मंत्री रामविचार राय, मुख्य सचिव, विकास आयुक्त, कृषि उत्पादन आयुक्त, उद्योग विभाग के प्रधान सचिव भी मौजूद थे.
अब कुछ लोग बाहर से आना ही नहीं चाहते हैं. कहते हैं कि आपने तो शराबबंद करवा दी है, कैसे काम चलेगा? अरे भाई, आना है तो दिन में आइए और शाम को निकल जाइए. जरूरत तो रात में ना होती है. शराबबंदी के बाद से तरह-तरह का मजाक झेलना पड़ता है. कुछ लोग तो कहते हैं कि घर-घर में हम ही शराब पहुंचाएं. ज्यादा शराब की दुकानें खुलने से दो नंबर का धंधा बंद हुआ था और इससे आमदनी बढ़ी थी. लेकिन सच में मुझे इससे अंदर से अच्छा नहीं लगता था. मुजफ्फरपुर में पता चला कि महिलाओं ने शराब भट्ठियों को तोड़ डाला तभी ये यह बात मन में बैठ गयी थी और एक समारोह में मांग उठने पर मैंने कह दिया कि अगली बार आऊंगा तो शराब बंद करूंगा. सरकार बनी तो शराबबंदी कर दी गयी, तो अब दिक्कत क्यों हो रही है. बाढ़ राहत शिविरों पर मुख्यमंत्री ने विरोधियों पर कहा कि वे फिल्ड विजिटर नहीं है, डेस्क राइटर हैं. कहां से क्या लिख देंगे पता नहीं चलता. उन्होंने कहा कि वे किसी के विरोध में काम नहीं करते है, लेकिन जब कोई बहुत कुछ कहता है तो जवाब जरूर देते हैं.
दूध की तरह पंचायत व प्रखंड में बने नीरा का कलेक्शन सेंटर
जीविका समूह की तरह ताड़ी उतारने वाले का समूह बनाकर नीरा को दूध की तरह बरतन में इकट्ठा कर प्रोसेसिंग प्लांट में पहुंचाना होगा. इसमें उसके चिलिंग (ठंडा करने) की व्यवस्था की जाये. इससे एक पे़ड़ से अभी जितनी आमदनी हो रही है उससे कम से कम दोगुणी होगी.
ताड़ के पेड़ वाले को भी मिलेगा हिस्सा
मुख्यमंत्री ने कहा कि बिहार में ताड़ किसी के खेत या फिर मेड़ में होती है. पासी समाज या फिर दूसरे समाज के लोग उसे उतारते हैं. सरकार ऐसे में जिनका पेड़ है और जो लोग उसे उतारते हैं उन्हें हिस्सा देगी. इसके लिए मुख्यमंत्री ने विकास आयुक्त व उद्योग विभाग के प्रधान सचिव को प्रस्ताव बनाने को भी कहा है. उन्होंने कहा कि 1990 से ताड़ के पेड़ों पर उनकी संख्या लिखनी बंद हो गयी. जिनके खेत में ताड़ का पेड़ है उसे रेगुलेट किया जा सकता है.
ताड़ी उतारने वालों को क्या आगे बढ़ने का नहीं है अधिकार?
सीएम नीतीश कुमार ने कहा कि क्या ताड़ी उतारने वाला जीवन भर ताड़ी उतारेगा. उसकी छाती व घुटना में घट्ठा पड़ा रहेगा. क्या उसके बेटे को पढ़ने व आगे बढ़ने का अधिकार नहीं है. देश तरक्की कर रहा है, लेकिन ताड़ी उतारने वालों का क्या तरक्की करने का अधिकार नहीं है. कुछ लोग इस समाज को पीछे व पिछड़ा रखना चाहते हैं. यह कौन सी भावना है. ताड़ी का व्यवसाय करने सम्मान नहीं मिलता है, लेकिन नीरा का व्यवसाय करने से सम्मान व इज्जत मिलेगी.
तमिलनाडु से ज्यादा बिहार में ताड़ के पेड़ों पर लगता है फल
बिहार में 92,19,000 ताड़ के पेड़ हैं, जबकि 40 लाख खजूर के और चार लाख नारियल के पेड़ हैं. तमिलनाडू के वैज्ञानिकों की माने तो उनके यहां के ताड़ के पेड़ में जितने फल लगते हैं उससे ज्यादा फल बिहार के ताड़ के पेड़ में लगते हैं. इससे यहां के लोगों की इसके व्यवसाय से आर्थिक स्थिति ज्यादा अच्छी होगी.

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