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सदन की कार्यवाही के लाइव प्रसारण से उठ रही समस्या
सुरेंद्र किशोर राजनीतिक िवश्लेषक संसद और विधान मंडलों की कार्यवाहियों के लाइव प्रसारण का यह दौर है. इस दौर में नये ढंग की समस्या पैदा हो रही है. इसे संवैधानिक उलझन भी कहा जा सकता है. इस पर विचार की जरूरत है. कल्पना कीजिए कि सदन में किसी माननीय सदस्य ने किसी ऐसे व्यक्ति के […]
सुरेंद्र किशोर
राजनीतिक िवश्लेषक
संसद और विधान मंडलों की कार्यवाहियों के लाइव प्रसारण का यह दौर है. इस दौर में नये ढंग की समस्या पैदा हो रही है. इसे संवैधानिक उलझन भी कहा जा सकता है. इस पर विचार की जरूरत है. कल्पना कीजिए कि सदन में किसी माननीय सदस्य ने किसी ऐसे व्यक्ति के खिलाफ आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल कर दिया जो वहां उपस्थित नहीं है.
उसका लाइव प्रसारण भी हो गया. पीठासीन पदाधिकारी ने उन शब्दों को कार्यवाही से निकाल देने का आदेश दे दिया. इस आदेश के बाद वह प्रिंट मीडिया में प्रकाशित नहीं होगा. पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के जरिये तो वह आपत्तिजनक बात लोगों तक पहले ही पहुंच गयी. उस व्यक्ति की मानहानि तो हो गयी. फिर सवाल है कि इसका परिमार्जन कैसे होगा?
पीड़ित व्यक्ति अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए क्या करे? संविधान के अनुच्छेद-194 की उप धारा-2 के प्रावधान के अनुसार सदन के भीतर कही गयी बातों को लेकर किसी सदस्य पर कोई केस नहीं हो सकता. पर, संविधान की यह धारा तो उन बातों पर लागू होती है जो सदन की कार्यवाही का हिस्सा बन चुकी है.
पर यदि किसी माननीय सदस्य की कथित आपत्तिजनक बातें सिर्फ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के जरिये आम लोगों तक पहुंची हैं, उस मामले में क्या हो? ऐसे मामले पर नये ढंग से विचार की जरूरत है. क्योंकि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया भी एक नया उपकरण है. संविधान निर्माताओं को तब इसकी कोई कल्पना नहीं थी. यदि ऐसा कोई मामला सुप्रीम कोर्ट में जाये तो वह शायद इस पर कुछ कहे. या फिर अखिल भारतीय पीठासीन पदाधिकारी सम्मेलन में इस नयी परिस्थिति पर विचार हो.
झामुमो सांसद रिश्वत कांड के बाद भी आयी थी समस्या : नब्बे के दशक में यह आरोप लगा था कि झारखंड मुक्ति मोरचा के कुछ सांसदों ने पैसे लेकर लोकसभा में नरसिंह राव की अल्पमत सरकार को गिरने से बचा लिया था. उन सांसदों के निजी बैंक खातों में पायी गयी धनराशि को रिश्वत का ही पैसा माना गया. यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया. पर सुप्रीम कोर्ट ने उन सांसदों के खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई करने से इनकार कर दिया था.
अदालत ने कहा था कि इस मामले में इस देश के संविधान ने हमारे हाथ बांध दिये हैं. संविधान के अनुच्छेद-122 में यह कहा गया है कि न्यायालयों द्वारा संसद की कार्यवाहियों की जांच नहीं की जा सकेगी. याद रहे कि चूंकि लोकसभा में वोट देने के लिए कुछ सांसदों ने रिश्वत ली थी, इसलिए इस गतिविधि को भी संसद की कार्यवाही का ही हिस्सा माना गया. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि खुद संसद को ही इस समस्या से निपटने का उपाय करना होगा. यानी संसद को ही ऐसी कोई संवैधानिक व्यवस्था करनी होगी ताकि कोई सांसद सदन में वोट देने के लिए रिश्वत लेकर भी सजा से बच न सके.
पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय आने के काफी समय बीत जाने के बाद भी सबसे बड़ी अदालत की इस महत्वपूर्ण सलाह पर संसद ने कोई कदम नहीं उठाया.
बारी से पहले नेताओं के बोल : इस देश में कुछ ऐसे नेता भी हैं जो कभी सवाल लिखकर संसद सचिवालय में नहीं देते. न तो वे शून्य काल में बोलने की पूर्व सूचना देते हैं और न ही उनकी कोई ध्यानाकर्षण सूचना रहती है. फिर भी वे जब चाहते हैं, सदन में खड़ा होकर दो-चार मिनट कुछ बोल देते हैं. कभी पीठासीन अधिकारी ने उन्हें ऐसा करने से रोकने की कोशिश की तो वे उनसे लड़ पड़ते हैं. लगता है कि वे संसद के कार्य संचालन नियमों से खुद को ऊपर मानते हैं.
उनका काम चल जाता है. इस बीच यह खबर आयी है कि अपने ‘बिहारी बाबू’ यानी फिल्म अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा ने हाल के सत्र में लोकसभा में न तो कोई प्रश्न पूछा और न ही किसी बहस में हिस्सा लिया. पर, एक बात के लिए बिहारी बाबू की तारीफ जरूर करनी पड़ेगी. वह संसद में बारी से पहले या फिर पीठासीन पदाधिकारी की इजाजत के बिना कुछ नहीं बोलते. वैसे भी बिहारी बाबू ‘अन्य कामों’ में इतना व्यस्त रहते हैं कि संसद के लिए सवाल तैयार करने की उन्हें फुर्सत कहां? अन्य कामों में अपनी ही पार्टी भाजपा को परेशान करते रहने का काम प्रमुख है.
सैनिकों को रक्षा मंत्रालय की सलाह : खबर है कि रक्षा मंत्रालय ने सैनिकों को सलाह दी है कि वे बिहार से गुजरते समय अपने साथ शराब नहीं रखें. कुछ सैनिकों की हाल में नशा विरोधी कानून के तहत बिहार में गिरफ्तारी की घटनाओं को ध्यान में रख कर यह सलाह दी गयी है. याद रहे कि सैनिकों और पूर्व सैनिकों को दानापुर छावनी एरिया में पीने की पूरी छूट है.
पत्रकार पेंशन नियमावली में संशोधन अपेक्षित
बिहार पत्रकार पेंशन योजना नियमावली, 2015 में यह कहा गया है कि ‘राज्य सरकार समय-समय पर इस नीति के कार्यान्वयन की समीक्षा करेगी और आवश्यकता के अनुसार संशोधन कर सकेगी.’ नियमावली के रचयिता ने सोचा होगा कि शायद कभी बाद में संशोधन की जरूरत पड़ेगी. पर, लगता है कि इस योजना के शुरुआती दौर में ही इसमें संशोधन की जरूरत महसूस की जा रही है.
नीतीश सरकार ने गत साल पहली बार पत्रकारों की पेंशन योजना पर ठोस पहल की. इससे पत्रकार जगत में अच्छा संदेश गया है. याद रहे कि पत्रकार समुदाय प्राय: कम आर्थिक साधन वाला स्वाभिमानी जमात है. पर, पत्रकार पेंशन नियमावली फिलहाल इस योजना के लाभ को सभी जरूरतमंद पत्रकारों तक पहुंचाने में सहायक नहीं हो पा रही है.
मौजूदा नियमावली को कायम रखा जाये तो काफी कम पत्रकारों को इस योजना का लाभ मिल पायेगा. जितने पत्रकारों को खुद मुख्यमंत्री अपने लंबे सार्वजनिक जीवन काल में व्यक्तिगत रूप से जानते रहे हैं,उतने लोगों को भी लाभ नहीं मिल सकेगा. पुराने अनुभवी पत्रकारगण बेहतर ढंग से सरकार को बता सकेंगे कि नियमावली में किस तरह के बदलाव किये जाने चाहिए. दरअसल पत्रकारों का पेशा अन्य आम नौकरियों से अलग तरह का है. पत्रकार नौकरी के साथ-साथ सार्वजनिक भूमिका भी निभाता है. कई बार विचारों के मतभेद के कारण उन्हें नौकरियां बदलनी पड़ती हैं. अनेक पत्रकारों की नौकरियों में सरकारी नौकरियों की तरह स्थिरता और निरंतरता भी नहीं होती. इसलिए इनकी पेंशन योजना पर कुछ अलग ढंग से विचार करने की जरूरत है.
स्वतंत्रता सेनानियों और जेपी सेनानियों की पेंशन योजना : नियमावलियां तय करते समय सरकारों ने बड़ा दिल दिखाया जिन जेपी सेनानियों ने आवेदन नहीं किया था और जिन्हें राजनीतिक कार्यपालिका जानती थी,उन्हें भी पेंशन ऑफर की गयी. कुछ उसी तरह की उदारता पत्रकार पेंशन योजना में भी बरती जाये तो चौथे स्तम्भ का सम्मान बरकरार रहेगा.
इससे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने इस उद्देश्य में भी सफल होंगे कि राज्य सरकार की ओर से इस पेशे के जरूरतमंद लोगों की भी मदद होनी चाहिए.
और अंत में: पटना के राजापुर पुल से उत्तर कई नये अपार्टमेंट और मकान नजर आते हैं. वे इन दिनों पानी में हैं.शायद गंगा मइया अतिक्रमण हटाओ अभियान चला रही हैं. नियम-कानून को ताक पर रख कर इस निकम्मी सिस्टम ने बाढ़ सुरक्षा बांध के उत्तर अपार्टमेंट का निर्माण होने दिया. यदि अगली दो-तीन बरसातों में भी गंगा मइया अपनी जमीन को इसी तरह जलप्लावित करती रहीं तो गैरकानूनी अपार्टमेंट का निर्माण बंद हो जायेगा. क्योंकि जलप्लावन से वहां की मिट्टी नरम पड़ जायेगी. भूकंप के समय नरम मिट्टी पर बने मकानों पर अधिक खतरा रहता है. जो काम सरकारी तंत्र नहीं कर रहा ,वह गंगा मइया कर देंगी.
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