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बिहार बंटवारे के बाद ठप पड़ा पर्यावरण शोध कार्य

अनुपम कुमारी पटना : पेड़ पौधों को बढ़ावा देने और अलग-अलग वनस्पतियों और उनके प्रजातियों को विकसित करने संबंधी पर्यावरण एवं वन विभाग द्वारा शोध कार्य किये जाने हैं, लेकिन बिहार में यह शोध 16 वर्षों बाद भी शुरू नहीं हो सका है. इससे बिहार में वन क्षेत्र में विकसित पौधे, ज्यादातर बिहार के ही […]

अनुपम कुमारी
पटना : पेड़ पौधों को बढ़ावा देने और अलग-अलग वनस्पतियों और उनके प्रजातियों को विकसित करने संबंधी पर्यावरण एवं वन विभाग द्वारा शोध कार्य किये जाने हैं, लेकिन बिहार में यह शोध 16 वर्षों बाद भी शुरू नहीं हो सका है. इससे बिहार में वन क्षेत्र में विकसित पौधे, ज्यादातर बिहार के ही हैं. शोध के अभाव में दूसरे राज्यों के वनस्पतियों को बढ़ावा नहीं मिल पा रहा है.
अनुवांशिकी, रोपण तकनीक व प्रबंधन पर होना है शोध :
पेड़ों की अनुवांशिकी, रोपण तकनीक और पौधारोपण स्थापना और
प्रबंधन पर अनुसंधान कार्य किया जाना है, लेकिन अधिकारियों और कर्मचारियों के अभाव में शोध कार्य नहीं हो सका है. इसके लिए विभाग की ओर से अलग से पटना प्रमंडल में शोध एवं प्रशिक्षण एवं जनसंपर्क इकाई भी संचालित है. पूर्व में रांची में रिसर्च डिवीजन के जरिये शोध कार्य किया जाता था. बिहार झारखंड अलग होने के बाद वर्ष 2000 के बाद रांची रिसर्च डिविजन अलग हो गया. इसके बाद बिहार में कोई दूसरा रिसर्च डिविजन नहीं शुरू हो सका. वहीं झारखंड अलग होने के बाद वन क्षेत्र का पूरा हिस्सा अलग हो गया.
वन कर्मचारियों की है कमी
अधिकारियों की मानें, तो पूरे प्रदेश में वनपाल वनरक्षी समेत 2094 पद रिक्त हैं. ऐसे में शोध एवं प्रशिक्षण एवं जन संपर्क इकाई में 24 स्वीकृत पदों के एवज में मात्र तीन ही कार्यरत है. ऐसे में अधिकारियों और कर्मचारियों के अभाव में शोध कार्य नहीं हो पा रहा है.
स्वीकृत पदों की संख्या
पदों के नाम स्वीकृत कार्यरत
रेंज ऑफिसर 06 00
वनपाल 13 01
लिपिक 04 02
बड़ा बाबू 01 00
कर्मचारियों के िबना कार्य संभव नहीं
अधिकारियों और कर्मचारियों की कमी के कारण अब तक शोध कार्य नहीं किया जा सका है. कई बार इसके लिए प्रयास किया गया पर संभव नहीं हो पा रहा है.
अवधेश कुमार ओझा, डीएफओ, शोध एवं प्रशिक्षण एवं जनसपंर्क

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