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बाढ़पीड़ितों ने कहा- डीएम साहब चूड़ा-चीनी बहुत लेट से मिलता है
अधूरी तैयारी. पटना में चल रहे बाढ़पीड़ितों के शिविर में हैं कई परेशानियां िशविर में रहने वाले बाढ़पीड़ितों ने अधिकारियों से िशकायत की िक समय पर खाना नहीं िमलता. पटना : मंगलवार को दोपहर साढ़े बारह बजे का वक्त. सदाकत आश्रम परिसर स्थित बिहार विद्यापीठ भवन में लगे कैंप में बढ़िया चावल, दाल और आलू […]
अधूरी तैयारी. पटना में चल रहे बाढ़पीड़ितों के शिविर में हैं कई परेशानियां
िशविर में रहने वाले बाढ़पीड़ितों ने अधिकारियों से िशकायत की िक समय पर खाना नहीं िमलता.
पटना : मंगलवार को दोपहर साढ़े बारह बजे का वक्त. सदाकत आश्रम परिसर स्थित बिहार विद्यापीठ भवन में लगे कैंप में बढ़िया चावल, दाल और आलू परवल की सब्जी बनकर तैयार हो गयी थी. तीन सौ से ज्यादा लोग लाइन में लग कर खाने का इंतजार कर रहे थे. सदर एसडीएम माधव सिंह, एक्जिक्यूटिव मजिस्ट्रेट राजीव मोहन सहाय प्रशासनिक अधिकारियों के साथ डीएम एसके अग्रवाल का इंतजार कर रहे थे. इसी बीच अधिकारियों से लोगों ने शिकायत करते हुए कहा कि चूड़ा-चीनी तो बहुत बाद में मिलता है, सर. राजीव सहाय समझाते हुए कहते हैं कि आप लोगों के लिए खाना तैयार हो गया है चलिये बैठ जाइए. सब लोग लाइन में पंगत में बैठ जाते हैं.
इसी बीच दोपहर पौने एक बजे डीएम एसके अग्रवाल पहुंचते हैं. उन्होंने राहत कैंप में पहले लाेगों से बात की, उन्हें खाना परोसा फिर क्वालिटी चेक करने के लिए खुद भी खाना खाने लगे. इस बीच लोगों से बातचीत भी जारी रहती है. कहिए, समय पर खाना मिल रहा है ना? सर खाना तो मिल रहा है, लेकिन थोड़ी देर हो जाती है. बच्चा भी भूखा रहता है. अच्छा ठीक है अब व्यवस्था सुधर गया है.
सब जगह पर समय पर खाना मिल जायेगा. इधर खाना खाने के बाद कुर्जी बिंद टोली के रामपवित्र महतो और उर्मिला देवी कहती हैं कि हम लोग को तो खाना मिल गया, लेकिन जानवर बहुत भूखे हैं. उसकी भी व्यवस्था करिये. बाद में डीएम ने मीडिया से बातचीत के क्रम में बताया कि पटना शहर में चारे की कमी है, लेकिन पांच किलो प्रति मवेशी हमने जानवरों को देने के लिए कहा है. यह सबको दिया जायेगा. जीविका की दीदियां कैंपों में बच्चों और महिलाओं को शिक्षा देगी.
कुर्जी कैंप में भीड़ थी पाटीपुल कैंप से पूरा खत्म
कुर्जी के मीडिल स्कूल कैंप में दोपहर डेढ़ बजे का वक्त. यहां भी तीसरा पंगत खाना चल रहा होता है. कैंप में खाने के बाद भीड़ हो गयी. एसडीओ और नोडल अधिकारी माथापच्ची कर रहे थे कि कैसे यहां पर भीड़ कम की जाये. इसके ठीक बगल में कन्या मध्य विद्यालय कैंप में महिला सामाजिक कार्यकर्ता बिस्किट बांट रही थीं. इधर पाटीपुल कैंप तो दोपहर दो बजे तक पूरी तरह खत्म हो गया था. पानी घटने के बाद यहां के पचास से ज्यादा लोग फिर से दियारा में जा रहे थे. नाव पूरी तरह तैयार थी और सुभाष राय, सन्नू साव, प्रमोद, किशोर, नंदू सहित दर्जनों लोग वापस लौट रहे थे. सुभाष राय ने कहा कि हमारे जानवर वहां भूखे हैं. खाना खिलाने जा रहे हैं.
पटना. स्वास्थ्य विभाग ने बाढ़ प्रभावित 12 जिलों के सिविल सर्जनों के साथ समीक्षा बैठक कर स्थिति का जायजा लिया. विभाग के प्रधान सचिव आर के महाजन ने सिविल सर्जनों को निर्देश दिया की सभी तरह की आवश्यक दवाएं सुनिश्चत करें. सांप, बिच्छू, कै-दस्त व बुखार सहित सभी तरह की दवाएं प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तक उपलब्ध रखना चाहिए. इसके लिए आवश्यक हो तो दवाओं की स्थानीय स्तर पर खरीद भी की जानी चाहिए.
बक्सर, भोजपुर, पटना, वैशाली, सारण, बेगूसराय, समस्तीपुर, लखीसराय, खगड़िया, मुंगेर, भागलपुर और कटिहार जिला के सिविल सर्जनों को निर्देश दिया गया कि अपने जिले में आवश्यकता अनुसार चिकित्सकों व एंबुलेंसों की तैनाती भी सुनिश्चित करें.
बाढ़पीड़ितों के लिए कंफेड दे रहा शुद्ध पानी का पाउच
पटना. दूध और दूध आधारित उत्पादन बेचने के लिए चर्चित कंफेड इन दिनों बाढ़ पीड़ितों को पानी पहुंचा रहा है. इस सुविधा के कारण राज्य के कई जिलों के बाढ़ पीड़ितों को शुद्ध पेयजल सुलभ हो गया है. फिलहाल कंफेड राज्य के चार बाढ़ग्रस्त जिलों को पानी का पाउच दे रहा है. समस्तीपुर के बाढ़ पीड़ितों के लिए सबसे अधिक 25 हजार लीटर पानी का पाउच भेजा जा रहा है. कंफेड के एमडी सीमा त्रिपाठी ने बताया कि राज्य सरकार के निर्देश पर पानी का पाउच उपलब्ध कराया जा रहा है.
पेयजल व शौचालय की निगरानी करेंगे अभियंता
पटना. बाढ़ पीड़ितों के लिए बनाये गये गये राहत शिविरों में पेयजल व शौचालय की व्यवस्था की निगरानी अभियंता करेंगे. पीएचइडी ने सात अभियंताओं को विभिन्न जिले में तैनात किया है. अधीक्षण अभियंता अरविंद प्रकाश रंजन पटना पूर्व, अशोक कुमार सिंह पटना पश्चिम व अरुण कुमार सिंह को बेगूसराय, खगड़िया व लखीसराय में बने राहत शिविरों की निगरानी करेंगे.
बख्तियारपुर व फतुहा में भेजे गये चार पानी टैंकर
पटना. बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में बने राहत शिविरों में शुद्ध पानी मुहैया कराने के लिए पानी टैंकरों को भेजा जा रहा है. पीएचइडी ने मंगलवार को बख्तियारपुर व फतुहा में बने राहत शिविरों के लिए अतिरिक्त चार पानी टैंकरों को भेजा है. इसके साथ ही राहत शिविरों में पहले से रखे गये टैंकरों में पानी भरने का काम हुआ. राहत शिविरों में पेयजल की व्यवस्था को लेकर विभागीय मंत्री कृष्णनंदन प्रसाद वर्मा ने जानकारी ली. उन्होंने पेयजल की व्यवस्था के लिए बनाये गये नोडल अधिकारी से पानी टैंकर की उपलब्धता के बारे में पूछा.
बाढ़पीड़ितों से मिले पूर्व सीएम मांझी व चौरसिया
पटना. बाढ़ राहत कैंपो का निरीक्षण पूर्व सीएम जीतन राम मांझाी और दीघा के विधायक सह बीजेपी प्रदेश महामंत्री डॉ संजीव चौरसिया ने मंगलवार को किया. दीघा स्थित पोस्ट ऑफिस रोड, पाटीपुल में आई भीषण बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों का भ्रमण करते हुए दोनों ने सरकार से मांग की दियारा में जो लोग अब भी अपने घर में फंसे हैं उन्हें जल्द से जल्द सुरक्षित स्थान पर लाया जाय तथा उनका प्राथमिक उपचार किया जाय.
दियारा के लोगों को पीने का स्वच्छ पानी, मोमबत्ती, किरोसीन, खाने का सामान तथा अन्य राहत समाग्री के साथ साथ मवेसियों के लिए चारा जल्द से जल्द पहुंचाया जाय. शिविरों में रह रहे लोगों के लिए भी स्वच्छ पानी, मोमबत्ती, खाने का समान राहत समाग्री तथा वहां रह रहें मवेशियों के लिए चारा उपलब्ध कराने की मांग की. विधायक के साथ जिला योजना समिति के उपाध्यक्ष सह वार्ड पार्षद संजय कुमार सिंह, मुखिया भागिरथ जी, पुरूषोतम आदि लोग शामिल थे.
राहत वितरण केंद्र पर दो गुटों के बीच पथराव
बाढ़: बाढ़पीड़ितों के बीच वितरित किये जा रहे खाद्य सामग्री को लेकर दो गुटों के बीच बाढ़ के इब्राहिमपुर पंचायत के जलगोविंद चौक के पास जम कर मारपीट हुई. इस दौरान पथराव हुआ, जिससे एनएच 31 पर भगदड़ मच गयी. वहीं कर्मचारियोें को हमलावरों ने खदेड़ दिया. जानकारी के अनुसार बाढ़ प्रभावित परिवारों के बीच चूड़ा और गुड़ का पैकेट लेकर अंचल कार्यालय से कर्मचारी जलगोविंद चौक के पास पहुंचे और चाय दुकान के सामने सामग्री वितरित करने लगे. इसी दौरान कुछ लोगो ने पॉलीथिन सीट वितरण करने को लेकर हंगामा करने लगे. विवाद बढ़ गया और दो पक्षों के बीच जम कर पथराव शुरू हो गया और डंडे चले. कर्मचारी को भी मौके पर से भागना पड़ा .करीब एक घंटे तक एनएच 31 पर रोड़ेबाजी होती रही.
बाद में मौके पर पुलिस ने पहुंच कर स्थिति को नियंत्रित किया. ग्रामीण विनोद राय ने बताया कि राजनीतिक साजिश के तहत हंगामा किया गया है. वहीं कुछ लोगों ने गोलीबारी किये जाने का भी आरोप लगाया, लेकिन पुलिस ने इससे इनकार किया है.
14 हजार लोगों को सुरक्षित स्थानों पर ला चुकी है एनडीआरएफ टीम
पटना : आपदा और एनडीअारफ एक दूसरे के पर्याय हैं. जहां आपदा वहां उससे निबटने के लिए एनडीआरफ यानी नेशनल डिजास्टर रेस्क्यू फोर्स. इस बार बिहार में बाढ़ प्रभावित क्षेत्र काफी बड़ा है.
राज्य के 12 जिले बाढ़ से प्रभावित हैं. बीते शनिवार से बाढ़ में फंसे लोगों को बचाने में एनडीआरएफ की नौ बटालियन लगी है. चेन्नई से आयी और टीमों को बाढ़ राहत में लगाया गया है. मंगलवार को वीरचंद पटेल पथ स्थित जिला अतिथिशाला में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में एनडीआरएफ के डीआइजी सुरजीत सिंह गुलेरिया ने बिहार में बाढ़ राहत पर एनडीआरएफ की भूमिका की जानकारी दी. उन्होंने बताया कि बीते पांच दिनों में टीम ने विभिन्न जिलों में बाढ़ में फंसे 14 हजार से अधिक लोगों को रेस्क्यू ऑपरेशन के तहत बाहर निकाला है.
सम्मेलन में बिहार में 9 बटालियन के कमांडेंट विजय सिन्हा भी मौजूद थे.
नौ सौ से अधिक जवान चला रहे हैं ऑपरेशन
अभी एनडीआरएफ की 16 की टीम बिहार में रेस्क्यू ऑपरेशन चला रही है. पांच और टीमों को भटिंडा से एयरलिफ्ट किया गया है, जो बुधवार से ऑपरेशन में लग जायेगी. डीआइजी ने जानकारी दी कि एक टीम में 40 से 45 जवान हैं, जो एक अनुभवी गोताखोर के साथ फर्स्ट एड जैसी जरूरतों को देने में सक्षम हैं. इसके अलावा टीम में पांच सौ लाइफ ब्वॉय, 84 ड्राइवर और अन्य प्रशिक्षित लोग भी हैं.
एनडीआरफ की 100 नाव और राज्य सरकार की दस बड़ी नावों को इस काम में लगाया गया है. एक हजार लाइफ जैकेट का उपयोग किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि एनडीआरएफ वाटर एंबुलेंस के साथ डाॅक्टरों की टीम भी सहयोग कर रही है.
इन जगहों पर चल रहा है रेस्क्यू ऑपरेशन
बक्सर, मनेर, दानापुर, कुर्जी, छपरा, वैशाली, सोनपुर, बख्तियारपुर, भागलपुर, दीदारगंज, बेगूसराय, राघोपुर दियारा
इन चुनौतियों का सामना कर रही है टीम
– गंगा में धारा तेज है.
– जानवरों को निकालने में हो रही है परेशानी.
– दियारा में गांवों का लोकेशन ठीक से नहीं मिलना.
– रात में काम करने में परेशानी.
पीएमसीएच में गर्भवतियों के लिए पांच बेड सुरक्षित
पटना. बाढ़ पीड़ित गर्भवतियों के लिए पीएमसीएच में अलग से पांच बेड सुरक्षित रखे गये हैं. पीएमसीएच प्रशासन ने स्त्री एवं प्रसूति विभाग को अलर्ट कर दिया है. स्त्री एवं प्रसूति विभाग में सुरक्षित इन बेड पर अलग से महिला डॉक्टरों की ड्यूटी भी लगायी गयी है. किसी तरह की कोई परेशानी नहीं हो इसके लिए विभाग के दवा काउंटर पर सभी तरह की दवाएं रखने का आदेश दिया गया है. अस्पताल प्रशासन का कहना है कि बाढ़ में सबसे अधिक परेशानी गर्भवती महिलाओं को हो रही है. इस हालत में उन्हें उपचार सही मिले, इसके लिए अलग से बेड की व्यवस्था की गयी है.
सांप डसने के दो मरीज पहुंचे अस्पताल : वहीं दूसरी ओर, पीएमसीएच में सांप डसने के दो मरीज अस्पताल पहुंचे. इनमें एक मरीज सोमवार की रात, तो दूसरे मरीज को मंगलवार दोपहर में छुट्टी दे दी गयी. हालांकि, इलाज के बाद दोनों मरीज ठीक हो गये हैं.
डॉक्टरों की मानें तो मरीज को विषैला सांप नहीं काटा था, ऐसे में तुरंत दवा देकर उन्हें छोड़ दिया गया. अस्पताल के प्रिंसिपल डॉ एसएन सिन्हा ने बताया कि बाढ़ को देखते हुए पीएमसीएच प्रशासन अलर्ट है. 10 बेड पहले से ही सुरक्षित हैं. अस्पताल के डॉक्टरों की छुट्टियां रद्द कर दी गयी हैं. दवा, स्लाइन आदि की व्यवस्था कर ली गयी है.
भीड़ प्रबंधन में प्रशासन रहा नाकाम राहत कैंप में बाहरियों का जमावड़ा
पटना : बिहार विद्यापीठ परिसर में लगाये गये बाढ़ राहत कैंप में साेमवार की देर रात प्रशासन ने भोजन कराने में एक प्रयोग किया. पीड़ितों का टेस्ट चेंज करने के लिए पूरी और सब्जी बनायी गयी थी. बिहार विद्यापीठ परिसर में राहत कैंप में 330 लोग रजिस्टर्ड हैं, लेकिन जब खाना खिलाने की बारी आयी तो संख्या 500 से ज्यादा हो गयी. बाहर से आये लोगों ने कैंप में वितरित किये जा रहे पूरी और सब्जी को लूट लिया. नतीजतन खाना घट गया और बाढ़ के कारण जो सीधे तौर पर पीड़ित लोग थे उनको भोजन मिला ही नहीं. इस वजह से हंगामा हो गया. आनन-फानन में एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट राजीव मोहन सहाय द्वारा चावल, दाल, सब्जी बनाया गया जिससे पीड़ितों को खाना नसीब हुआ. यही हाल मंगलवार को कुर्जी के मध्य विद्यालय में लगाये गये कैंप का था.
यहां पर भी दोपहर में चावल, दाल, सब्जी तो बनाया गया लेकिन इतने स्थानीय लोग आ गये कि नोडल पदाधिकारी मिथिलेश कुमार सिंह को दोबारा खाना तैयार कराना पड़ा. पटना में बाढ़ राहत के लिए लगाये गये पांच कैंपों में प्रशासन भीड़ प्रबंधन करने में शुरुआती क्रम में ही पूरी तरह फेल हुआ है और इसी का परिणाम है कि राहत कैंपों में बाहरियों का जमावड़ा है और सही लोगों तक लाभ नहीं पहुंच पा रहा है.
राहत कैंपों में पीड़ितों को रजिस्टर्ड तो किया गया है लेकिन लोगों को खाना खिलाने के क्रम में न तो उनकी गिनती हो रही है और न ही उनको बारी-बारी से खाना या फूड पैकेट ही दिया जा रहा है. यही नहीं आसपास के लोगों को पहचानने के लिए स्थानीय लोगों या जनप्रतिनिधियों की भी मदद नहीं ली गयी है.
इधर कुछ जनप्रतिनिधियों ने खैरख्वाही में कई लोगों को कैंपों में जुटा दिया है जो उन कैंपों में रजिस्टर्ड नहीं हैं. प्रखंड और अंचल स्तर के अधिकारी भी इस दिशा में कोई ठोस कार्ययोजना नहीं बना सके हैं.
राहत कैंपों में यह परेशानी अक्सर आ जाती है. कभी लोग दूसरे कैंप में चले जाते हैं तो कभी स्थानीय लोग कैंपों में पहुंच जाते हैं. हमने पीड़ितों से अपील की है कि लोग अपने नजदीकी कैंप में ही जायें. इससे परेशानी नहीं होगी. अधिकारियों को निबंधित बाढ़ पीड़ितों को ही लाभ पहुंचाने के लिए कहा गया है.
समाचार दिल दहलाने वाला था, धड़क उठा था पटना के लोगों का कलेजा
1975 की बाढ़
जलप्लावित पटना में ‘नजरबंद’ फणीश्वरनाथ रेणु की बाढ़ पर रिपोर्ट
शाम के साढ़े सात बज चुके थे और आकाशवाणी के पटना केंद्र से स्थानीय समाचार प्रसारित हो रहा था. पान की दुकानों के सामने खड़े लोग चुपचाप उत्कर्ण होकर सुन रहे थे…‘पानी हमारे स्टुडियो की सीढि़यों तक पहुंच चुका है और किसी भी क्षण स्टुडियो में प्रवेश कर सकता है.’
समाचार दिल दहलाने वाला था. कलेजा धड़क उठा. मित्र के चेहरे पर भी आतंककी कई रेखाएं उभरीं. किंतु हम तुरंत ही सहज हो गये, यानी चेहरे पर चेष्टा करके सहजता ले आये, क्योंकि हमारे चारों ओर कहीं कोई परेशान नजर नहीं आ रहा था.
पानी देख कर लौटे रहे लोग आम दिनों की तरह हंस बोल रहे थे, बल्कि आज तनिक अधिक ही उत्साहित थे. हां, दुकानों में थोड़ी हड़बड़ी थी. नीचे के सामान ऊपर किये जा रहे थे. रिक्शा, टमटम, ट्रक और टेंपो पर सामान लादे जा रहे थे. खरीद बिक्री बंद हो चुकी थी. पानवालों की बिक्री अचानक बढ़ गयी थी. आसन्न संकट से कोई प्राणी आतंकित नहीं दिख रहा था.
…पान वाले के आदमकद आईने में उतने लोगों के बीच हमारी ही सूरतें ‘मुहर्रमी’ नजर आ रही थी. मुझे लगा अब हम यहां थोड़ी देर भी ठहरेंगे तो वहां खड़े लोग किसी भी क्षण ठठाकर हम पर हंस सकते थे- ‘जरा इन बुजदिलों का हुलिया देखो ! ’क्योंकि वहां ऐसी ही बातें चारों ओर से उछाली जा रही थीं –‘एक बार डूब ही जाये ! …धनुष कोटि की तरह पटना लापता न हो जाये कहीं ! …सब पाप धुल जायेगा…चलो गोलघर के मुंड़ेरे पर ताश की गड्डी लेकर बैठ जाये …
बिस्कोमान बिल्डिंग की छत क्यों नहीं ? भई यही माकूल मौका है. इनकम टैक्स वालों को ऐन इसी मौके पर काले कारबारियों के घर पर छापा मारना चाहिए. आसामी बा–माल …’ राजेंद्र नगर चौराहे पर मैगजिन काॅर्नर की आखिरी सीढ़ियों पर पत्र पत्रिकाएं पूर्ववत बिछी हुई थीं. सोचा एक सप्ताह का खुराक एक ही साथ ले लूं. क्या-क्या ले लूं?
हेडली चेज, या एक ही सप्ताह में फ्रेंच जर्मन सिखा देने वाली किताबें, अथवा यानी योग सिखाने वाली कोई सचित्र किताब ? फ्लैट पहुंचा ही था कि जनसंपर्क की गाड़ी भी लाउडस्पीकर से घोषणा करती हुई राजेंद्र नगर पहुंच चुकी थी. एलान किया जाने लगा, ‘भाइयों ….! ऐसी संभावना है ….कि बाढ़ का पानी …रात्रि के करीब बारह बजे तक ..लोहानी पुर ,कंकड़बाग ..और राजेंद्र नगर में ..घुस जाये. अत: आपलोग सावधान हो जायें ! मैंने गृह स्वामिनी से पूछा-‘गैस का क्या हाल है.’ ‘बस उसी का डर है. अब खतम होने ही वाला है. कोयला है, स्टोव है, मगर केरोसिन एक ही बोतल …’ फिलहाल, बहुत है …..बाढ़ का भी यही हाल है-मैंने कहा. सारे राजेंद्र नगर में सावधान…सावधान की ध्वनि देर तक गूंजती रही.
ब्लॉक के नीचे वाली दुकानों से सामान हटाये जाने लगे. मेरे फ्लैट के नीचे के दुकानदार ने पता नहीं क्यों इतना कागज इकट्ठा कर रखा था. एक अलाव लगाकर सुलगा दिया. हमारा कमरा धुएं से भर गया. बिजली ऑफिस के ‘वाचमैन साहेब’ ने पश्चिम की ओर मुंह करके ब्लॉक नंबर एक के नीचे जमी मंडली के किसी सदस्य से ठेठ मगही में पूछा- ‘का हो ? पनिया आ रहलौ है ?’
जवाब में एक कुत्ते ने रोना शुरू किया. फिर दूसरे ने सुर में सुर मिलाया. फिर तीसरे ने. करूण आंर्त्तनाद की भयोत्पादक प्रतिध्वनियां सुन कर सारी काया सिहर उठी. किंतु एक साथ करीब एक दर्जन मानव कंठों से गालियों के साथ प्रतिवाद के शब्द निकले-‘मार स्साले को अरे चुप…चौप !!’ कुत्ते चुप हो गये.
किंतु आने वाले संकट को वे अपने सिक्स्थ सेंस से भांप चुके थे… अचानक बिजली चली गयी. फिर तुरंत ही आ गयी….शुक्र है ! भोजन करते समय मुझे टोका गया-‘ की होलो? खाच्छो ना केन ?’ खाच्छि तो ….खा तो रहा हूं’. मैंने कहा, ‘ याद है, उस बार जब पुनपुन का पानी आया था तो सबसे अधिक इन कुत्तों की दुर्दशा हुई थी.’ हमें भाइयों, भाइयों संबोधित करता हुआ जनसंपर्क वालों का स्वर फिर गूंजा. इस बार ऐसी संभावना है के बदले ऐसी खतरा और होशियार दो नये शब्द जोड़ दिये गये थे.
आशंका ! खतरा ! होशियार !…. रात साढ़े दस – ग्यारह बजे तक मोटर गाडि़यों रिक्शा, स्कूटर, सायकिल और पैदल चलने वालों की आवाज ही कम नहीं हुई. और दिन तो अब तक सड़क सूनी पड़ जाती थी ! …पानी अब तक आया नहीं ? सात बजे शाम काे फ्रेजर रोड से आगे बढ़ चुका था. ‘का हो राम सिंगार, पनिया आ रहलौ है ?न आ रहलौ है? सारा शहर जगा हुआ है।पच्छिम की ओर कान लगाकर सुनने की चेष्टा करता हूं… हां, पीर मुहानी या सालिमपुर अहरा अथवा जनक किशोर रोड की ओर से कुछ हलचल की आवाज आ रही है.
लगता है कि एक डेढ़ बजे तक पानी राजेंद्र नगर पहुंचेगा. सोने की कोशिश करता हूं. लेकिन नींद आयेगी भी ? नहीं, कांपोज की टिकिया अभी नहीं.
किंतु क्या लिखूं ? कविता? शीर्षक-बाढ़ की आकुल प्रतीक्षा? धत्त ! नींद नहीं, स्मृतियां आने लगीं. एक-एक कर चल चित्र के बेतरतीब दृश्यों की तरह ! सन 1947, तब के पूर्णिया जिले के मनिहारी और गुरु जी सतीनाथ भादुड़ी की स्मृतियां !
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