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सिस्टम का बोझ दवाओं की खरीद पर पड़ा भारी
पटना : राज्य के सरकारी अस्पतालों में मिलने वाली मुफ्त दवाओं में कमी आयी है. मुफ्त दवाओं की सूची से अधिसंख्य दवाएं दवा भंडारों से गायब है. कारण है दो साल से बिहार चिकित्सा एवं आधारभूत संरचना निगम लिमिटेड द्वारा दवाओं के रेट का निर्धारण ही नहीं किया गया है. निगम में एक प्रबंध निदेशक […]
पटना : राज्य के सरकारी अस्पतालों में मिलने वाली मुफ्त दवाओं में कमी आयी है. मुफ्त दवाओं की सूची से अधिसंख्य दवाएं दवा भंडारों से गायब है. कारण है दो साल से बिहार चिकित्सा एवं आधारभूत संरचना निगम लिमिटेड द्वारा दवाओं के रेट का निर्धारण ही नहीं किया गया है. निगम में एक प्रबंध निदेशक का पद है जो 2014 से स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव को अतिरिक्त प्रभार में सौंप दिया गया है. निगम के पहले प्रधान सचिव ब्रजेश मेहरोत्रा को बनाया गया. वर्तमान में स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव आरके महाजन प्रबंध निदेशक के प्रभार में है.
सरकार द्वारा तैयार किये गये व्यवस्था का परिणाम है कि दवाओं की खरीद के लिए निगम सिर्फ कवायद कर रहा है. दो वर्षों से संचिकाएं दौड़ लगा रही है पर दर का निर्धारण नहीं किया जा रहा है. दवाओं की खरीद पहले राज्य स्वास्थ्य समिति द्वारा की जाती थी. वर्ष 2013 से यह अधिकार बिहार चिकित्सा एवं आधारभूत संरचना निगम लिमिटेड को सौंप दिया गया. बीएमएसआइसीएल द्वारा पहला टेंडर 27 मई 2013 को जारी किया गया और उसके आधार पर दवाओं और उपकरणों की खरीद की गयी. इन दवाओं के निगम द्वारा तैयार फतुहा, मुजफ्फरपुर और कसबा के वेयर हाउसों में भंडारण कर अस्पतालों में आवश्यकता के अनुसार आपूर्ति की गयी. आपूर्ति के समय ही इसमें विवाद खड़ा हो गया.
इसके बाद निगरानी और आनंद किशोर कमेटी द्वारा जांच आदि की प्रक्रिया आरंभ की गयी.इसके बाद 2015 में दूसरी बार टेंडर जारी किया गया. निगम के प्रबंधन निदेशक स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव को बनाये जाने व टेंडर की गहन छानबीन शुरू की गयी. नतीजन एक भी कंपनी दवा के टेंडर में क्वालिफाइ नहीं कर सकी. उसके बाद फिर से रिटेंडर किया गया जिसमें कुछ वैसी कंपनिया शामिल हो गयी जिनके ऊपर लगाये गये आरोप पर कोई निर्णय नहीं लिया गया था.
दवाओं की खरीद में बीएमएसआइसीएल और सरकार के बीच दौड़नेवाली फाइलों के बीच विभाग ने एक आसान रास्ता निकाला. मुख्यालय स्तर पर दवा खरीद में अक्षम साबित हो रहे बीएमएसआइसीएल की जिम्मेवारी सिविल सर्जनों पर डाल दी गयी.
स्वास्थ्य विभाग ने नवंबर 2014 में एक आदेश निकाल दिया कि जब तक दवाओं का रेट निर्धारित नहीं हो जाता है तब तक जिला के सिविल सर्जनों द्वारा स्थानीय स्तर पर दवाओं की खरीद कर आपूर्ति की जायेगी. कुछ सिविल सर्जनो द्वारा दवाओं की खरीद सिर्फ इमरजेंसी सर्विस चलाने के लिए किया गया. अधिसंख्य लोगों ने दवा खरीद में हाथ डालना उचित ही नहीं समझा.
नतीजा है कि कारपोरेशन सफेद हाथी बनकर रह गया है.
राज्य सरकार द्वारा आवश्यक दवाओं की तैयार की गयी सूची
प्राथमिक अस्पताल से जिला अस्पतालों तक
ओपीडी मरीजों के लिए – 33 प्रकार की दवाएं
भर्ती मरीजों के लिए – 112 प्रकार की दवाएं
राज्य के मेडिकल कॉलेजों के दवाओं की सूची
ओपीडी मरीजों के लिए 65 प्रकार की दवाएं
भर्ती मरीजों के लिए – 120 प्रकार की दवाएं
ऑपरेशन थियेटर के लिए उपकरण- 43 प्रकार के
सैंपल लेने वाले नहीं है एक भी ड्रग इंस्पेक्टर
राज्य में औषधि नियंत्रण प्रशासन के तहत काम करनेवाले आयुष दवाओं के सैंपल लेनेवाला एक भी ड्रग इंस्पेक्टर नहीं है. आयुर्वेदिक, होमियोपैथी और यूनानी दवाओं के सैंपल जांच की जिम्मेवारी स्वास्थ्य विभाग ने एलोपैथिक ड्रग इंस्पेक्टरों के जिम्मे सौंप दिया है. इसी तरह से मिलावटी खाद्य पदार्थों की रोकथाम करने वाले फूड सेफ्टी ऑफिसरों के भी 91 पद रिक्त हैं.
स्वास्थ्य विभाग के तहत गठित राज्य औषधि प्रशासन में औषधि संवर्ग में कुल 175 पद सृजित किये गये हैं. कुल पदों में औषधि प्रशासन ने आयुर्वेद दवाओं की जांच और छापेमारी करने के लिए 10 औषधि निरीक्षकों का पद सृजित किया गया है. राज्य में आयुर्वेदिक दवाओं की कुल निबंधित कंपनियों की संख्या 156 है. इसी तरह से होमियोपैथिक दवाओं की जांच व छापेमारी के लिए एक ड्रग इंस्पेक्टर का पद जबकि यूनानी दवाओं की जांच के लिए भी ड्रग इंस्पेक्टर का एक पद सृजित किया गया है.
होमियोपैथ की 42 कंपनियां जबकि यूनानी की 22 कंपनियां यहां निबंधित है. खाद्य औषधि प्रशासन के लिए सरकार द्वारा कुल 105 पद सृजित किये गये हैं. इसमें 14 फुड सेफ्टी ऑफिसर कार्यरत हैं जबकि 91 पद रिक्त हैं. उधर, एलोपैथ के ड्रग इंस्पेक्टरों के सृजित कुल 163 पदों में वर्तमान में 124 कार्यरत हैं.
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