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दबंगई: गंगा में मच्छरदानी से मार रहे हैं मछली का जीरा, मछुआरों ने किया प्रदर्शन

पटना सिटी: गंगा व सहायक नदियों में जल दस्यु के निशाने पर जलीय जीव-जंतु हैं. मच्छरदानी व कपड़े के जाल से मछली के जीरा को मारा जा रहा है. मछली मारने का धंधा दबंगों की ओर से चल रहा है. स्थिति यह है कि पटना, हाजीपुर व सोनपुर में गंगा नदी में मछली का शिकार […]

पटना सिटी: गंगा व सहायक नदियों में जल दस्यु के निशाने पर जलीय जीव-जंतु हैं. मच्छरदानी व कपड़े के जाल से मछली के जीरा को मारा जा रहा है. मछली मारने का धंधा दबंगों की ओर से चल रहा है. स्थिति यह है कि पटना, हाजीपुर व सोनपुर में गंगा नदी में मछली का शिकार कर पुश्तैनी कार्य में लगे मछुआरों को जीविकोपार्जन में मुश्किलें आ रही हैं.

गंगा मुक्ति आंदोलन के संयोजक कुमार सुरेश बताते हैं कि मछली का प्रजनन काल आषाढ़ माह से आरंभ होता है, लेकिन जीरों को कपड़ा व मच्छरदानी के जाल में फंसा कर नष्ट करने का काम धड़ल्ले से दबंगों द्वारा किया जा रहा है. भद्र घाट से लेकर बाढ़, बख्तियारपुर व मोकामा के बीच में सैकड़ों जगह पर कपड़ा व मच्छरदानी का जाल दिख जायेगा. गंगा में मछली के जीरा को मारने पर प्रतिबंध लगे, इसके लिए रविवार को गंगा मुक्ति आंदोलन से जुड़े मछुआरों ने गंगा तट पर नाव लगा कर विरोध प्रदर्शन किया.

चार फीसदी ही जीवित रह पाते हैं
मछुआरों ने बताया कि जाल बिछा कर मछली के बच्चे को फंसाया जाता है, इसमें महज पांच फीसदी रेहु व कतला प्रजाति वाली मछलियों के जीरा जीवित रहते हैं, जबकि 95 फीसदी दूसरे प्रजाति की मछलियों व जीव- जंतु के जीरा जाल में ही दम तोड़ देते हैं, उसे नदी तट पर ही फेंक दिया जाता है. इतना ही नहीं जीवित बचे रेहु व कतला प्रजाति की छोटी मछलियों को तालाब संचालकों के हाथों बेचा जाता है. इस तरह से जलीय जीवों पर संकट आ गया है. इतना ही नहीं मछली के साथ केकड़ा, सितुआ, घोंघा, झींगा,कछुआ व डॉल्फिन समेत कई जलीय जीव भी मर रहे हैं. दबंगों द्वारा संगठित होकर यह काम किया जा रहा है. यह काम गंगा के साथ गंडक व पुनपुन समेत अन्य सहायक नदियों में भी चल रहा है. मछली के प्रजनन समय को देखते हुए माफिया द्वारा जीरा मारने का अभियान चल रहा है.
मछुआरों को मिला था अधिकार
संयोजक कुमार सुरेश ने बताया कि राज्य सरकार ने गंगा व सहायक नदियों में मुछआरों को मुक्त शिकार मत्स्य अधिसूचना (1906) 30 जून, 1990 को दिया गया. इसके लिए मत्स्य विभाग ने अधिकार पहचानपत्र भी निर्गत किया था, लेकिन गंगा में गश्ती की व्यवस्था नहीं होने से बेरोटोक माफिया कार्य को अंजाम दे रहे हैं.

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