18.4 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

सूत कातना आज भी एक राजनीतिक कर्म

रुचिरा गुप्ता @ruchiragupta मोतिहारी में बृजकिशोर सिंह ने मुझे घर के बुने धागे की माला पहनायी. पूर्वी चंपारण के गांधी संग्रहालय के वह निदेशक हैं. उनकी उम्र सत्तर साल से अधिक है. हमलोग खादी आश्रम के एक छोटे से कमरे में चौकी पर बैठे थे. चौकी पर खादी की सफेद चादर बिछी थी. कमरे में […]

रुचिरा गुप्ता
@ruchiragupta
मोतिहारी में बृजकिशोर सिंह ने मुझे घर के बुने धागे की माला पहनायी. पूर्वी चंपारण के गांधी संग्रहालय के वह निदेशक हैं. उनकी उम्र सत्तर साल से अधिक है. हमलोग खादी आश्रम के एक छोटे से कमरे में चौकी पर बैठे थे. चौकी पर खादी की सफेद चादर बिछी थी. कमरे में हवा आने-जाने के लिए कई खिड़कियां और दरवाजे थे. मैं यह जानने को उत्सुक थी कि बृज बाबू आज भी क्यों सूत कातते हैं. आजादी के बाद भारत के पास अपना औद्योगिक आधार है. बृज बाबू के बच्चे डॉक्टर और इंजीनियर हैं.
उनके पास खेती की जमीन और कोल्ड स्टोरेज है. गांधीजी ने मैनचेस्टर की मिलों में बने कपड़ों की जगह कताई का प्रचार किया था. हम मैनचेस्टर में बने कपड़े पहनने के लिए बाध्य नहीं हैं. मेरा उनसे और खादी आश्रम में जुटे दूसरे गांधीवादियों से बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ता है, तब मुझे समझ में आता है कि सूत कातना आज भी एक राजनीतिक कर्म है.
यह देशी उत्पादन के प्रति प्रतिबद्धता और भारत की परिश्रम करनेवाली आबादी के साथ संघीभाव का अहसास दिलाता है. बृज बाबू कहते हैं, अगर प्रत्यक्ष पूंजी निवेश फिर से भारत में आता है, तो हमलोग फिर से उपनिवेश बनने को बाध्य होंगे. सूत कात कर हम लोगों को यह स्मरण करायेंगे कि कैसे ब्रिटिश राज में विदेश में बने कपड़े ने हमारे टेक्सटाइल बेस को तबाह किया. इसने कैसे हमें शारीरिक और अाध्यात्मिक दृष्टि से कंगाल बना दिया.मैं पूछती हूं कि हमें खुद से सूत कातने की क्या जरूरत है? हमलोग खादी खरीद क्यों नहीं सकते हैं‍? हम सिर्फ खादी भवन से ही खादी क्यों खरीदें, किसी प्राइवेट दुकान से क्यों नहीं?
खादी आश्रम के एक युवा कर्मचारी ने इस पर कहा, क्योंकि खादी सत्याग्रह है. सत्याग्रह का मतलब सत्य के लिए जिद करना. उसकी बातों पर मंथन करने के दौरान मुझे याद आया कि गांधीजी ने सत्याग्रह को कैसे खादी और कताई से जोड़ा था. उन्हें यह शब्द सबसे पहले दक्षिण अफ्रीका में छात्रों की एक प्रतियोगिता में मिला था. बाद में उन्होंने इसे अंतरात्मा का सच कहा. उन्होंने पहला सत्याग्रह 1917 में मोतिहारी में किया था. उन्होंने इसका विकास किया, जो बाद में, 1942 में, भारत छोड़ो आंदोलन के रूप में सामने आया. यह सबसे बड़ा सत्याग्रह था, जिसने विश्व इतिहास में एक बहुत बड़ी आबादी को दासता से मुक्ति दिलायी.
गांधीजी के लिए सत्याग्रह का मतलब था नकारात्मक काम के लिए लोकवादी आह्वान, जिसमें सकारात्मक आह्वान के साथ निष्क्रिय प्रतिरोध हो. इसे वह ‘रचनात्मक प्रोग्रामिंग’ कहते थे.उदाहरण के लिए, अहिंसा के उनके आह्वान में युद्ध में घायलों की मदद भी शामिल था.
समाज से अछूतों को हटाने के लिए उन्होंने उन्हें हरिजन कहा और दूसरों से हरिजन बस्तियों में नालियां साफ करने को कहा. अमीर-गरीब, महिला-पुरुष, अधिकारी और वंचित सभी उनके आह्वान पर आगे आये. एक-दूसरे के प्रति अपनी परंपरागत मान्यताओं को चुनौती देते हुए उन्हें हमेशा के लिए बदला. ऊंची जाति के युवाओं ने हरिजन बस्तियों में काम किया. गृहिणियों ने सूत काता और अपनी कीमती विदेशी सामान को आग के हवाले कर दिया. पुरुषों और महिलाओं ने घायल सैनिकों की मदद की. अभिजात वर्ग के लोगों ने अपनी पदवियों का त्याग कर दिया. फैक्टरियों के मालिकों ने भी दान दिया और स्कूलों-अाश्रमों में निजी तौर पर काम किया.इससे सिर्फ गरीब ही नहीं बदले, संपन्न लोगों में भी बदलाव आया. भारत के लिए रचनात्मक प्रोग्रामिंग ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ एक राजनीतिक हथियार बन गया. घायल सैनिकों की मदद ने युद्ध की पाशविकता को उजागर किया. हरिजन काॅलोनियों में काम ने जाति व्यवस्था के क्रम को चुनौती दी. खादी सत्याग्रह का अभिन्न हिस्सा था, जो विदेशी कपड़ों के बहिष्कार और जलाने के खिलाफ सकारात्मक कदम था.
गांधीजी का मानना था कि किसी भी अनुचित काम के खिलाफ कोई भी एक्शन लोगों को संतुष्ट नहीं कर पायेगी. अगर एक्शन लोगों को संतुष्ट करने में सफल होता है, तो एक अनुचित काम का स्थान दूसरा अनुचित काम ले लेगा, क्योंकि सकारात्मक तरीके से जीना सीखा ही नहीं है.
गांधीजी ने यहां तक कहा था कि बिना किसी रचनात्मक कोशिश के सविनय अवज्ञा आंदोलन बेकार से भी ज्यादा खराब है. इसलिए गांधीजी ने वैसे सामान का बहिष्कार किया, जिसका कच्चा माल भारत से इंगलैंड गया और वहां की फैक्टरियों में तैयार सामान भारत में ऊंची कीमत पर बिकने के लिए आ गया. इसके साथ ही वे सूत कातने, खादी के इस्तेमाल को बढ़ावा देने और गांव के कारीगरों से सामान खरीदने के लिए कहते थे. मेरे पिता, जिनकी उम्र 80 वर्ष से अधिक है, खद्दर की धोती और कुरता पहनते हैं.
उनका रूमाल भी खादी भंडार से ही खरीदा जाता है. हर दो अक्तूबर को गांधी जयंती के अवसर पर वह एक साल का अपना स्टाॅक खरीद लेते हैं. मैं भी खादी पसंद करती हूं, लेकिन फैब इंडिया से. यह निजी रिटेल चेन है, जिसे विलियम बिस्सेल चलाते हैं. वह अमेरिकी पिता और भारतीय मां की संतान हैं.सत्याग्रह के विचार ने मुझे प्रेरित किया है, लेकिन इसका अनुशासन के अनुरूप आचरण करना बहुत मुश्किल है. कदाचित यह बदलाव समय के साथ ही आयेगा. आखिरकार गांधीजी ने भी कटि वस्त्र को बाद में अपनाया था. इंगलैंड में युवा गांधी थ्री पीस सूट पहनते थे. फाक्सत्रोट का नृत्य करना भी सीखा था.
इंगलैंड आने वाले भारतीयों के लिए उन्होंने एटिकेट्स पर किताब भी लिखी थी. उसमें बताया गया था कि सूट कैसे पहनें, क्या खाएं, कैसे खाएं आदि. दक्षिण अफ्रीका में जब उन्हें ट्रेन से बाहर फेंका गया, तब वह सूट पहने हुए थे. बदलाव उस समय शुरू हुआ होगा, जब उन्होंने अपनी सूट पर से धूल को झाड़ा होगा. जब वह भारत लौटे, तब वह भारतीय कपड़े पहनने लगे. जब वह चंपारण पहुंचे थे, तब वह कच्छ के कपड़े पहने हुए थे. इसके बाद उन्होंने साधारण धोती-कुरता पहनना शुरू किया. फिर खादी का धोती-कुरता पहनने लगे. इसके बाद कुरता को हटा कर वह सिर्फ कटि वस्त्र पहनने लगे. इसमें वर्षों लगे. पटना के गांधी संग्रहालय के रजी साहब ने समझाया, गांधीजी द्वारा शुरू किया गया बदलाव आज भी महत्व रखता है, क्योंकि यह नियमित रूप से चलने वाला है.
यह एक्शन सबसे नीचे के भाग में बहुत छोटा दिख सकता है, लेकिन इसका सकारात्मक प्रतिक्रिया संक्रामक है. ये जरूरी नकारात्मक विरोधों का भी संतुलन बना कर रखती हैं. ये हमें जीना सिखाती हैं और दिखाती हैं कि सरकार क्या कर सकती है. इसे उन्होंने ‘एक्सपेरिमेंट्स विद ट्रूथ’ कहा, वह हमारे जीवन की सकारात्मक पहल है.
कदाचित,मोतिहारी और देश के दूसरे छोटे शहरों में सूत कातने वालों का छोटा-सा समूह बाहर से आने वाले सामान के सामने महत्वहीन लगता है, लेकिन जैसे वह सूत कातते हैं, वह अस्तित्व में है. वह अस्तित्व में हैं, इसलिए अपनी बात कह रहे हैं. मैंने भी सूत कातना सीखने का मन बना लिया है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें