27.4 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

औद्योगिक प्रस्तावों की कब्रगाह बन गया बोर्ड

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड. नौ माह से पेंडिंग हैं 2222 प्रस्ताव, अध्यक्ष भी नहीं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की स्थिति खराब हो गयी है. स्टाफ की कमी के कारण लोगों का कोई काम नहीं हो रहा है. पुष्यमित्र पटना : इन दिनों जब राज्य सरकार नयी औद्योगिक प्रोत्साहन नीति लाने और उसे लागू करने के प्रति अपना […]

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड. नौ माह से पेंडिंग हैं 2222 प्रस्ताव, अध्यक्ष भी नहीं
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की स्थिति खराब हो गयी है. स्टाफ की कमी के कारण लोगों का कोई काम नहीं हो रहा है.
पुष्यमित्र
पटना : इन दिनों जब राज्य सरकार नयी औद्योगिक प्रोत्साहन नीति लाने और उसे लागू करने के प्रति अपना निश्चय जारी कर रही है, दरभंगा निवासी विद्यानंद भारती कभी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड तो कभी उद्योग मित्र कार्यालय का चक्कर लगा रहे हैं. वे अपने गांव में एक छोटा सा मिनरल वाटर प्लांट स्थापित करना चाहते हैं. वे चाहते हैं कि अपने इलाके में लोगों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराएं और अपनी आजीविका कमाएं, मगर दो साल से उनके प्रस्ताव को मंजूरी नहीं मिल रही. जबकि, यह ऐसा उद्योग है, जिसे दो-तीन महीने में ही आसानी से शुरू किया जा सकता था. उनका आवेदन पिछले दो साल से प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में फंसा है.
ऐसा भी नहीं है कि बोर्ड को कोई आपत्ति है. उसे बस कंसेंट लेटर जारी करना है, मगर एक तो पहले से ही बोर्ड में स्टाफ की कमी है, उस पर से तकरीबन दो महीने से वहां कोई अध्यक्ष भी नहीं है. लिहाजा बिहार का प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड औद्योगिक प्रस्तावों के लिए कब्रगाह बन गया है.
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और उद्योग भवन का चक्कर लगानेवालों में विद्यानंद भारती अकेले नहीं हैं. कई राइस मिल और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग लगाने वाले न जाने कब से इस कोशिश में जुटे हैं, मगर तकनीकी कारणों से उनका प्रस्ताव आगे नहीं बढ़ पा रहा है.
काम अधिक, स्टाफ कम
स्थिति यह है कि बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में पिछले साल के सितंबर माह से अब तक 2222 आवेदन पेंडिंग पड़े हैं. यह आंकड़ा उस अंतराल का है, जब से आवेदन ऑनलाइन लिये जाने लगे हैं. ऑफ लाइन आवेदनों की संख्या तो इससे काफी अधिक है. यह कितनी है, इसका पता बोर्ड के अधिकारियों को भी नहीं है. बोर्ड के नये मेंबर सेक्रेटरी एस चंद्रशेखर इसका आकलन करा रहे हैं.
वे जून में ही बोर्ड में नियुक्त किये गये हैं. वे बताते हैं कि काम इतना अधिक है कि समझ नहीं आ रहा कि कहां से शुरू किया जाये और इसे कैसे निबटाया जाये. सबसे बड़ी बात है कि इन आवेदनों को मंजूरी देने का अधिकार महज बोर्ड के अध्यक्ष को है, जबकि 16 मई को ही दूसरे बोर्डों के साथ प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष से इस्तीफा ले लिया गया है. वे कहते हैं कि चेयरमैन का न होना तो एक वजह है ही, स्टॉफ की कमी भी कम बड़ी वजह नहीं है.
स्वीकृत पद 198, 62 कार्यरत
एस चंद्रशेखर बताते हैं कि 198 स्वीकृत पदों के एवज में यहां आज की तारीख में सिर्फ 62 लोग काम कर रहे हैं. वे इस कोशिश में हैं कि यहां स्टॉफ की संख्या बढ़ायी जाये और काम को ऑनलाइन किया जा सके. बिहार में उद्योग लगाये जाएं, आर्थिक गतिविधियां बढ़े, इसके लिए सरकार द्वारा छह माह पहले उद्योग मित्र के रूप में सिंगल विंडो सिस्टम शुरू किया गया है, ताकि उद्योगपतियों और उद्योग लगाने के इच्छुक लोगों की समस्याओं का तमाम समाधान एक ही जगह से हो जाये. इन छह महीनों में यहां जो 33 आवेदन आये हैं, उनमें से 19 का ही समाधान हो पाया है.
तो कारोबारी आने से कतरायेंगे
यह स्थिति उस राज्य की है, जो लगातार अपने यहां पूंजी निवेश और उद्योगों को आकर्षित करने की कोशिश कर रहा है.एनसीएइआर नामक संस्था ने स्टेट इनवेस्टमेंट पोटेंशियल इंडेक्स जारी किया है. इसके मुताबिक निवेश मित्र राज्यों की सूची में बिहार सबसे खराब राज्यों में है. संस्था ने यह इंडेक्स पांच मानकों के आधार पर तैयार की है. ये हैं श्रम, आधारभूत संरचना, आर्थिक माहौल, राजनीतिक स्थिरता, सुशासन और अच्छा व्यापारिक माहौल. पहले से ही खराब छवि से जूझ रहा बिहार अगर इन परेशानियों से उबर नहीं पाया, तो यहां निवेश करने के इच्छुक कारोबारी कतरायेंगे ही.
सिंगल सिस्टम की शुरुआत : सरकार ने उद्योग मित्र के रूप में सिंगल विंडो सिस्टम की शुरुआत भी की है, मगर औद्योगिक प्रस्ताव जिस तरह कभी पर्यावरण बोर्ड, तो कभी बिजली विभाग के पास फंस जाते हैं, पुराने उद्योगपति यहां कारोबार शुरू करने की हिम्मत नहीं कर पाते.
अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि नयी सरकार के कार्यकाल में कोई बड़ा औद्योगिक प्रस्ताव बिहार को हासिल नहीं हुआ और उसकी यही वजह है. खासतौर पर जब तक राज्य की नयी औद्योगिक नीति लागू नहीं होगी और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के कामकाज को स्मूथ नहीं किया जायेगा, शायद ही कोई नया प्रस्ताव यहां आये. पुरानी औद्योगिक नीति जून महीने में ही एक्सपायर कर गयी है, और नयी औद्योगिक नीति अभी लागू नहीं हुई है, इसलिए भ्रम की स्थिति बनी हुई है.
इस पर से गड़बड़ यह हो गयी कि जब राजनीतिक कारणों से सभी बोर्डों और समितियों के अध्यक्षों से इस्तीफा मांग लिया गया, तो उसमें प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष को भी शामिल कर लिया गया. अब दो महीने से अध्यक्ष नहीं होने का खामियाजा राज्य में कारोबार शुरू करने को इच्छुक लोगों को उठाना पड़ रहा है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें